विश्व बैंक ने भी बताया, सुस्त हो रही दुनिया

वर्ष 2020 उज्जवल युग की शुरुआत होगा। इसका दशकों से इंतजार था। यहां तक कि पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी इस उज्जवल दशक की शुभ कल्पना लेकर इंडिया 2020 का एक खाका और उस पर एक पुस्तक लिखी थी। दुनिया भी 21वीं शताब्दी की इस दशक को आशा भरी नजरों से देख रही थी, क्योंकि तकनीकी स्तर पर बहुत तेजी से बदलाव हो रहे थे लेकिन पूरे दुनिया की इस टकटकी को न दिखाई देने वाले अति सूक्ष्म जीव कोरोना वायरस ने जमींदोज कर दिया। चट्टान जैसी ताकतवर दुनिया और उसके हौंसले को एक इस छोटे से वायरस ने ऐसी पटकनी दी कि आज विश्व बैंक को भी कहना पड़ रहा है कि ऐसा लगता है कि बीते दशकों कि उपलब्धियों पर पानी फिर गया है। विश्व बैंक की यह रिपोर्ट तब आई है जब डेविड मलपास वर्ल्ड बैंक के प्रेसीडेंट पद से हटने वाले हैं और भारतीय मूल के अजय बंगा उनकी जगह लेने वाले हैं। कुल मिला के यह अजय बंगा के लिए एक वेलकम चुनौती है जिसका सामना उन्हें करना है।
विश्व बैंक ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी कर बताया है कि बीते एक दशक में दुनिया के स्तर पर हमने जो भी कुछ हासिल किया, वह सब डूबने के कगार पर है और यह बीता एक दशक लास्ट डिकेड साबित होने जा रहा है और यह चिंता उसने मुद्रास्फीति की चिंता को ना शामिल करते हुए जाहिर की है । रिपोर्ट के अनुसार सन 2030 तक दुनिया की आर्थिक विकास दर की स्पीड लिमिट इस शताब्दी के शुरुआत से लगायत 2030 तक खत्म हो रहे तीन दशकों में अपने निचले स्तर तक जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन दशकों में ग्रोथ और समृद्धि को बढ़ावा देने वाली लगभग सभी आर्थिक ताकतें कमजोर हो गई हैं।  हालांकि यह तो इस दशक के प्राथमिक आर्थिक आपदाओं के असर का अध्ययन है लेकिन इकानमी के मेटाइकोनॉमिक्स प्रभाव के कारण ग्लोबल मंदी या ग्लोबल फाइनैंशियल क्र ाइसिस की चिंताओं को शामिल करें तो ग्लोबल आर्थिक विकास दर में और भी गिरावट देखने को मिल सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार कोविड के पहले से ही वैश्विक स्लोडाउन के संकेत प्राप्त हो रहे थे जिस कारण लंबी अवधि में आर्थिक विकास को लेकर चिंताएं बढ़ने भी लगी थी। आज इनवेंस्टमेंट ग्रोथ कमजोर हुआ,ग्लोबल लेबर फोर्स स्लो है, कोरोना महामारी के चलते ह्यूमन रिसोर्स कैपिटल में बदलाव हुआ है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि मुश्किल से जीडीपी ग्रोथ रेट से मेल खा रही है। विश्व बैंक के अनुसार अगर आज हम मिलकर कोई व्यापक नीति नहीं बनाएंगे तो आज की तारीख से लेकर  2030 के बीच  वैश्विक औसत जीडीपी विकास दर 2.2 प्रतिशत सालाना ग्रोथ लेवल तक जा सकता है जो अब तक के तीन दशकों में सबसे कम होगा हालांकि विश्व बैंक ने कहा है कि अगर सरकारें व्यापक नीति को अपनाती हैं तो इसे खींच कर 2.9 प्रतिशत किया जा सकता है।
अगर पीछे देखें तो 21वीं शताब्दी के पहले दशक 2001 से लेकर 2011 के दौरान ग्लोबल जीडीपी ग्रोथ रेट 3.5 प्रतिशत और 2011-21 के दूसरे दशक में 2.6 प्रतिशत रहा था और लगातार तीसरे दशक ने गिरते हुए 2.2 पर आने की सम्भावना है। कम्प्यूटर युग की सदी के नाम और 42 के की आशंकाओं के बीच शुरू हुई इस शताब्दी का 30 साल का इतिहास काफी उथल पुथल रहा है। इसका असर विकासशील देशों के आर्थिक विकास पर पड़ने वाला है और इन देशों का विकास दर 4 प्रतिशत के आसपास रहने की सम्भावना है जबकि सदी के पहले दशक में यह 6 प्रतिशत था।
हालांकि वैश्विक जैविक, आर्थिक और सामरिक हमलों के बीच सीमा रेखा में बंटे देशों जिनका अपना अपना राष्ट्रवाद है और उससे प्रभावित नीतियां हैं, जिसकी छाप सीओपी या जी-20 की मीटिंग पर भी हावी हो जाता है, ऐसे दौर में यह तो होना ही था। हमने मेटा इकानामिक्स के अध्ययन पर बहुत निवेश नहीं किया है और जो थोड़ी बहुत वैश्विक संस्थायें बनाई भी हैं जो राष्ट्र और राष्ट्रवाद के परे जाकर चिंतन करें तो वह अधिकार सम्पन्न नहीं हैं, उनके ऊपर किसी न किसी का राष्ट्रवाद हावी ही हो जाता है।  शताब्दी के पहले दशक में लेहमन ब्रदर्स ने प्रभावित किया तो दूसरे दशक में ब्रेक्सिट और ग्लोबल वार्मिंग ने तो इस दशक की शुरुआत ने कोरोना, कोरोना के बाद रूस यूक्र ेन युद्ध और फिर उसके बाद महंगाई फिर मंदी फिर ब्याज दरों का बढ़ना एक के बाद एक मार पड़ रही है इससे इस दशक में इकानमी सस्टेन कर जाए, वही लक्ष्य संभव दिख रहा है। 
अमरीका और यूरोप के बैंकिंग संकट ने दुनिया भर के बाजारों को झकझोर दिया है। अमरीका में दो बैंकों पर ताला लग गया है और कई दूसरे बैंकों पर भी इस संकट का साया गहराता नजर आ रहा है। इन सब आशंकाओं के बीच भारत जी-20 का आयोजक देश भी है, ऐसे में भारत के पास मौका है कि भारत के अर्थ दर्शन सनातन अर्थशास्त्रा से दुनिया को अवगत कराते हुए भारत द्वारा दी गई वसुधैव कुटुंबकम से दुनिया को परिचित कराये और बताये कि कैसे यह ब्रेक्सिट या डंकल या वैश्वीकरण के अन्य माडल से अलग है। (युवराज)