नितीश का प्रयास, विपक्षी एकता का आगाज़

 

बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने लालू यादव से हाथ मिलाने के बाद राष्ट्रीय राजनीति में अपने कदम बढ़ा दिए हैं। नितीश ने एक बार फिर दिल्ली जाकर राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, वामपंथी नेता सीताराम येचुरी, डी राजा, ‘आप’ सांसद संजय सिंह और सुधींद्र कुलकर्णी सरीखे नेताओं से मुलाकात कर विपक्षी एकता को धार देने की अपनी चर्चित मुहिम तेज़ कर दी है। नितीश ने घोषणा की है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पराजित करने के लिए विपक्ष की सभी पार्टियों को एक झंडे के नीचे लाया जायेगा। 
इसके लिए सभी संभव प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। जनता दल (यू) के नेता के. सी. त्यागी ने कहा कि लगभग सभी दलों से बातचीत हो चुकी है और शीघ्र ही इसके परिणाम देखने को मिलेंगे। एक के सामने एक के फार्मूले पर बहुत जल्द ही मुहर लगाने वाले हैं। दूसरी ओर एनसीपी नेता शरद पवार ने भी कांग्रेसी नेताओं से मुलाकात कर विपक्षी एकता पर बल दिया है। इसी बीच उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने मोदी के खिलाफ  मोर्चा बनाने पर ज़ोर देते हुए कांग्रेस से क्षेत्रीय पार्टियों को समर्थन देने को कहा है।
 राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि हालांकि लोकसभा चुनाव अभी दूर हैं मगर भाजपा के खिलाफ  विपक्षी एकता की खिचड़ी फिर पकने लगी है। ताज़ा घटनाक्रम बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के दिल्ली दौरे से जुड़ा है। नितीश कुमार विपक्षी एकता की धुरी बने गए हैं। उन्होंने अपने दिल्ली दौरे के दौरान राहुल गांधी सहित अनेक विपरीत विचारधारा के नेताओं से भेंट कर 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। 2019 में लोकसभा चुनाव में हार से हताश विपक्ष को नितीश कुमार साधने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। आरजेडी जहां नितीश को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बता रही है, वहीं प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की दौड़ से नितीश खुद को अलग दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि बंगाल में ममता और कांग्रेस, केरल में सीपीएम और कांग्रेस, आंध्र में वाईएसआर कांग्रेस और कांग्रेस, तेलंगाना में केसीआर और कांग्रेस, तमिलनाडु में द्रमुक और अन्ना द्रमुक, पंजाब और दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी और कांग्रेस में गठजोड़ की सम्भावना नहीं के बराबर है।  बिहार में सियासी उलटफेर के बाद भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बढ़ते आभामंडल को धूमिल करने के प्रयास शुरू हो गए हैं। नितीश कुमार के पाला बदलकर संप्रग खेमे में जाने के बाद वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र देश में एक बार फिर विपक्ष की एकता के लिए ज़ोरदार प्रयास किये जा रहे हैं। नितीश को विपक्षी एकता का मेटेरियल बताया जाने लगा है। इससे बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर असर पड़ने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। ईडी और सीबीआई की मार से आहत संप्रग, केजरीवाल और आरजेडी खेमा इससे बेहद खुश है। इस घटनाक्रम को लेकर विपक्ष में खुशी की लहर है।
वर्तमान में विपक्ष कांग्रेस नीत संप्रग के साथ गैर-कांग्रेस और गैर-भाजपा की सियासत करने वाले दलों में विभाजित है। विपक्ष पहले से ही कई गुटों में विभाजित है। गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेस का नारा बुलंद करने वाले तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्र शेखर राव और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लाख प्रयासों के बाद भी अब तक कोई सशक्त मोर्चा बन नहीं पाया है। ममता बनर्जी और चंद्र शेखर राव 2024 में नरेंद्र मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्षी एकता की कवायद में जुटे हैं। ममता बनर्जी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए भाजपा विरोधी और कांग्रेस विरोधी गठबंधन बनाने का आह्वान किया है। सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव के सम्बन्ध भी कांग्रेस से अच्छे नहीं हैं। राजद के तेजस्वी यादव भाजपा के खिलाफ  बनने वाले किसी भी मोर्चे का आंख मूंद कर साथ देने को तैयार हैं। उड़ीसा के मुख्यमंत्री पटनायक और आंध्र के मुख्यमंत्री फिलहाल किसी मोर्चे के साथ नहीं हैं। हालांकि इन दोनों की भाजपा के साथ नरमी किसी से छिपी नहीं है। दिल्ली के बाद पंजाब में  सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी भाजपा के सख्त खिलाफ  है। वाम मोर्चे की हालत सांप-छुछुंदर जैसी है। अन्य क्षेत्रीय दल भी आपस में बंटे हुए हैं। 
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वर्तमान में भाजपा विरोधी एक मोर्चा बनने की संभावना कम है। इसका मुख्य कारण वे क्षेत्रीय पार्टियां हैं जिन्होंने अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस का वोट बैंक हथिया कर उसे सत्ताच्युत किया है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव, तेलंगाना में मुख्यमंत्री केसीआर, आंध्र में मुख्यमंत्री जगमोहन रेड्डी और बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टियां कांग्रेस से मेल मिलाप की इच्छुक नहीं हैं। जबकि बिहार में तेजस्वी यादव, महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे, तमिलनाडु में मुख्यमंत्री स्टालिन की पार्टियां कांग्रेस से हाथ मिलाकर चल रही हैं। वामपंथी भी कांग्रेस के साथ हैं। इनमें कांग्रेस का वोट बैंक हथियाने वाली पार्टियां नहीं चाहती कि कांग्रेस उनके राज्यों में पांव पसारे, वहीं अन्य पार्टियां जिनके राज्यों में कांग्रेस प्रभावहीन है, वे कांग्रेस को अपने साथ रखने की पक्षधर हैं।