जंग-ए-आज़ादी यादगार को विवाद का मुद्दा न बनाया जाए

 

कई स्मारक ऐसे होते हैं जिनका संबंध न सिर्फ इतिहास से होता है, अपितु वे किसी कौम की आत्मा भी बन जाते हैं। महात्मा गांधी ने जलियांवाला बाग के साके को मानवता का साका बताया था। करतारपुर स्थित जंग-ए-आज़ादी यादगार ऐसे शहीदों तथा स्वतंत्रता सेनानियों की यादों को सम्भालने वाली तथा महात्मा गांधी के शब्दों की तर्जुमानी करने वाली है। इस यत्न का मैं चश्मदीद गवाह हूं। मेरा यहां का दौरा अज़ीम था। इस दौरे से पंजाबियों के आज़ादी के संघर्ष में डाले गए बेमिसाल योगदान को पुन: जानने का अवसर मिला। इस भावना को उजागर करने वाले स्मारक को किसी भी रूप में संकीर्ण राजनीति या किसी भी अन्य ढंग से विवाद का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। इसके निर्माण में ‘अजीत प्रकाशन समूह’ के मुख्य सम्पादक डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द की ओर से डाले गये योगदान के लिए उनकी प्रशंसा होनी चाहिए, न कि उनकी छवि बिगाड़ने की कोशिश की जाए। आशा है कि शासक इसे समझेंगे। 
माडल देहाती लाइब्रेरी भड़ी 
खन्ना-संघोल मार्ग पर पड़ते गांव भड़ी में पंजाबी साहित्य सभा नई दिल्ली द्वारा विशेष प्रयास किया गया है। इस गांव में  पहले ही हायर सैकेंडरी स्कूल का गांव की आबादी से बाहर होना इसके पक्ष में जाता है। वैसे भी यह गांव पंथ प्रकाश के कर्ता रत्न सिंह भंगू के होने के कारण गांव वासियों ने उनके आवास पर एक प्रकार का यादगारी भवन स्थापित किया था। इसमें गांव वासियों के लिए लाइब्रेरी का होना अधिक आयु के पुरुषों एवं महिलाओं के लिए ज़रूरी समझा गया है। गांव वासियों का उत्साह इस बात से जाना जा सकता है कि लाइब्रेरी की स्थापना की घोषणा होते ही 48 जीवन भर के सदस्य बन गए तथा उन्होंने 48 हज़ार रुपये लाइब्रेरी के खाते में डाल दिए हैं। बड़ी बात यह कि 14 अप्रैल को लाइब्रेरी का उद्घाटन करने वालों में साहित्य तथा संस्कृति के महारथी निर्मल दत्त भड़ी, सुखजीत सिंह माछीवाड़ा, बलविन्दर ग्रेवाल बूथ गढ़, मुख्तयार सिंह तथा पवन दीप खन्ना निवासी शामिल थे। 
वैसे तो चाहे इस यादगारी भवन का प्रबंध पहले ही प्रसिद्ध गणमान्यों के ज़िम्मे है, परन्तु लाइब्रेली की स्थापना के लिए 21 सदस्य नौजवानों की कौंसिल, 11 सदस्यीय प्रबंधकीय कमेटी तथा तीन सदस्यीय कार्यकारिणी बनाई गई है। प्रतीत होता है कि भड़ी निवासियों का यह प्रयास ज़िला मुक्तसर की तहसील मलोट के गांव सरावां बोदला के बराबर का हो जाएगा। वह संस्था भी इस समय नई दिल्ली पंजाबी साहित्य सभा की लगभग 200 ग्रामीण लाइब्रेरियों की माडल लाइब्रेरी कही जा सकती है। इस लाइब्रेरी में सिख भी इतिहास तथा बच्चों के साहित्य को प्राथमिता दी जाएगी। यह भी फैसला लिया गया कि सोमवार को लाइब्रेरी बंद रहेगी और शेष दिन सुबह 9 बजे से 11 बजे तथा शाम 4 बजे से 6 बजे तक खुली रहेगी। 
याद रहे कि यह माडल प्रयास भड़ी निवासी सेवामुक्त पी.सी.एस. अधिकारी दलजीत सिंह भंगू के यत्नों से हुआ है, जो अपने क्षेत्र के विकास के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। यह भी बता दूं कि भड़ी गांव के निकट चार गांवों का गोत्र भंगू है और यह सभी मस्सा रंगड़ को मारने वाले बुगुज़र्ों के वारिस के रूप में जाने जाते हैं।  मारने वाला मीरां कोटियां महताब सिंह था जिसने यर कुर्बानी दी। 
शिव कुमार बटालवी के पगचिन्हों पर चलने वाले
इन दिनों में शिव कुमार बटालवी के पगचिन्हों पर चलते हुए उसके शहर बटाला से कंवलजीत सिंह एडवोकेट तथा उपदेश सिंह मुझे मिलने आए। विशेष रूप से शिव को याद करते हुए यह बताने कि शिव की पत्नी अरुण अपनी बेटी पूजा के पास अमरीका है परन्तु शिव की सुरीली आवाज़ ‘एक्क कुड़ी जीहदा नाम मुहब्बत गुम है, गुम है, गुम है’ अभी भी गलियों में गूंजती है। शिव के ही एक और गीत की भांति जिसके बोल  हैं, ‘माये नी माये मैं शिकरा यार बनाया। उस एक्क उडारी ऐसी मारी कि मुड़ वतनी न आया।’ और या फिर उसके उन शब्दों को सिजदा करें जिनमें ‘मैं कंडियाली थोहर वे सज्जना उग्गी विच्च उजाड़ा’ का दर्द शामिल है। यह मुलाकात बड़ी सुखद रही। शिव बटालवी अभी भी लोगों के मन में बसते हैं और बसते रहेंगे। शिव बटावली ज़िन्दाबाद!
अंतिका
(हरिभजन सिंह)
मैं चुम्म ही लिया जा के लहिरां दा जोबन 
अड़े मेरे पैरीं किनारे बड़े ने।