बंगले पर 45 करोड़ का खर्च मामला सामने आने के बाद केजरीवाल की बढ़ीं मुश्किलें

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पूरी तरह से खामोश हो गए हैं। जब से उनके सरकारी आवास की साज-सज्जा पर 45 करोड़ रुपये खर्च होने की खबर आई तब से वह चुप हैं और उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों से भी दूरी बना रखी है। यहां तक कि कर्नाटक चुनाव में प्रचार के लिए भी वह नहीं गए, जबकि चुनाव की घोषणा के पहले उन्होंने कर्नाटक के कई दौरे किए थे और पूरी ताकत से चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। बहरहाल अपने बंगले को लेकर चल रही कहानियों या उससे जुड़े रिकॉर्ड जब्त करने के उप-राज्यपाल के आदेश या हर बार सुनवाई में मनीष सिसोदिया की ज़मानत खारिज होने जैसे मसले पर भी वह कुछ नहीं बोल रहे हैं। उलटे उनके पुराने वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें वह खुद को आम आदमी बता कर सादगी से रहने की कसमें खा रहे हैं। उनका एक पुराना ट्वीट भी वायरल हुआ है, जिसमें उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के घर में 10 एसी लगे होने पर सवाल उठाया था और हैरानी जताई थी कि कोई कैसे इतने आलीशान घर में रह सकता है। अब उनके घर की साज-सज्जा पर 45 करोड़ रुपये खर्च होने के दस्तावेज सामने आ गए हैं। इससे केजरीवाल की आम आदमी वाली छवि को जो धक्का लगा है उसे ठीक करना उनके और पूरी पार्टी के लिए मुश्किल हो रहा है। 
अब गालियों गिनाते हैं मोदी! 
करीब छह महीने पहले तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गालियों को तौला करते थे लेकिन अब गालियों की गिनने लगे हैं। उन्होंने 12 नवम्बर, 2022 को तेलंगाना में एक सभा को संबोधित करते हुए उनको मिलने वाली गालियों का वजन बताया था। उन्होंने कहा कि उन्हें रोज़ाना दो-तीन किलो गालियां मिलती हैं, लेकिन उनके शरीर की बनावट ऐसी है कि उसे इन गालियों से ऊर्जा मिलती है और इसीलिए उन्हें थकान महसूस नहीं होती है। अब छह महीने बाद मोदी कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करने गए तो शायद उन्हें किसी ने अल्लामा इकबाल का यह शे’अर याद दिला दिया ‘जम्हूरियत इक तज़र्-ए-हुकूमत है कि जिसमें बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते।’ इसीलिए उन्हें लगा होगा कि जब जम्हूरियत में बंदों को गिना जाता है तो गालियों को भी गिना ही जाना चाहिए। गिनने का वजन ज्यादा होता है और उसका असर भी। और सचमुच जब उन्होंने रोज़ाना दो-तीन किलो गालियां खाने की बात कही थी तो लोगों ने उसे मज़ाक समझा था और उस पर हंसे थे। लेकिन अब जबकि उन्होंने गिन कर बताया कि कांग्रेस ने उन्हें अब तक 91 मर्तबा गालियां दी हैं तो लोगों को इसकी गंभीरता समझ में आई और कांग्रेस को भी समझ में आया कि प्रधानमंत्री कार्यालय में गालियों को गिनने की भी चाकचौबंद व्यवस्था है, इसलिए सोच-समझ कर बोलना चाहिए।
 सेबी का टालमटोल
अडानी समूह को लेकर आई हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच के मामले में बड़ा दिलचस्प घटनाक्रम हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच के लिए एक विशेषज्ञ कमेटी बनाई है और साथ ही शेयर बाज़ार की नियामक संस्था सेबी को भी इसकी जांच के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को दो महीने में स्टैट्स रिपोर्ट देने के लिए कहा था, जिसकी अवधि दो मई को पूरी हो गई है। इससे पहले सेबी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह जांच बहुत जटिल है और जो 12 संदिग्ध लेन-देन हुए हैं उनकी जांच में बहुत समय लगेगा। इस आधार पर सेबी ने सुप्रीम कोर्ट से जांच के लिए छह महीने का समय और मांगा है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि सेबी ने जो अनुरोध पत्र सुप्रीम कोर्ट को दिया है उसमें कहा है कि उसने पहले ही बताया हुआ है कि उसको इसकी जांच में 15 महीने का समय लग सकता है। इस तरह से सेबी ने अपनी पोजिशनिंग कर दी है। सब जानते हैं कि सेबी यह टालमटोल किसके इशारे पर कर रही है। सेबी का रिकॉर्ड रहा है बड़े और जटिल मामलों में उसकी जांच सालों साल चलती रही है। अगर उसने छह महीने के बाद फिर समय मांगा और 15 महीने में जांच पूरी करने की बात कही तो इसका मतलब है कि उसकी रिपोर्ट अगले लोकसभा चुनाव के बाद आएगी। ज़ाहिर है विपक्ष के हाथ से एक बड़ा मुद्दा निकल जाएगा। आखिर सरकार यही तो चाहती है। 
शरद पवार की वापिसी
शरद पवार के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से लेकर उसे वापस लेने तक के घटनाक्रम को लेकर कई तरह के निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं। ज्यादातर विश्लेषक मान रहे हैं कि यह उनका मास्टरस्ट्रोक था और वह अब पहले से बड़े नेता हो गए हैं। लेकिन यह निष्कर्ष तभी सही साबित होगा जब पार्टी पर उनकी पूरी पकड़ बने। अगर अजित पवार के साथ किसी मसले पर समझौता करना पड़ा तो उससे शरद पवार की ताकत घटेगी। फिर इसका असर राज्य की राजनीति में भी दिखेगा और राष्ट्रीय राजनीति में भी, जहां वह पहले ही अपनी भूमिका काफी हद तक गंवा चुके हैं। देश की दूसरी विपक्षी और एनसीपी की सहयोगी पार्टियों को भी अजित पवार पर भरोसा नहीं है। 
उनको लगता है कि वह कभी भी भाजपा के साथ जा सकते हैं। पिछले दिनों उनके भाजपा के सम्पर्क में होने की कई खबरें सामने आई थीं और उन्होंने भी प्रधानमंत्री की सार्वजनिक तौर पर तारीफ  की थी। इसीलिए शरद पवार के इस्तीफे के तुरंत बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने सुप्रिया सुले को फोन किया और इस्तीफे का कारण जानना चाहा। राहुल और स्टालिन ने सुप्रिया से यह भी कहा कि वे शरद पवार को इस्तीफा वापस लेने के लिए तैयार करें, यह विपक्षी एकता के लिए ज़रूरी है।
स्मार्ट सिटी प्रोजैक्ट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार कह चुके हैं कि वह जिस परियोजना का शिलान्यास करते हैं, उसका उद्घाटन भी करते हैं, जबकि पहले परियोजनाएं दशकों तक लटकी रहती थीं। सवाल है कि अगर मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री नहीं बन पाते हैं तो वह अपने ड्रीम प्रोजेक्ट यानी स्मार्ट सिटी का उद्घाटन कैसे करेंगे? इस प्रोजेक्ट का ऐलान मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद किया था और उसके अगले साल इस परियोजना को लांच किया था। निर्धारित समय सीमा के मुताबिक जून 2023 में यह परियोजना पूरी हो जानी चाहिए थी, लेकिन अब सरकार की ओर से बताया गया है कि यह परियोजना जून 2024 में पूरी होगी। उससे पहले मई 2024 में लोकसभा चुनाव के नतीजे आ जाएंगे।
 सरकार ने बताया है कि यह परियोजना 2015 में लांच हुई थी और उसके बाद यह तय करने में तीन साल लग गए थे कि वे कौन से 100 शहर होंगे, जिनको स्मार्ट बनाना है।  2016 से 2018 तक शहरों का चुनाव हुआ। उसके बाद पांच साल की समय सीमा तय की गई थी। लेकिन कुछ जगहों पर अभी 75 फीसदी काम ही पूरा हो पाया है तो कुछ जगह बताया जा रहा है कि 90 फीसदी काम हो चुका है। यह कुल मिला कर 71 हज़ार करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट है, जिसमें 38 हज़ार करोड़ रुपये केन्द्र के हैं और बाकी खर्च राज्यों व स्थानीय निकायों का है। इसमें से 90 फीसदी पैसा इस्तेमाल हो चुका है।