कांग्रेस की केजरीवाल नीति उसी के लिए घातक साबित हो रही

दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। इस इस्तीफे के पीछे बड़ी वजह दिल्ली कांग्रेस प्रभारी महासचिव दीपक बाबरिया के साथ उनकी अनबन को बताया जा रहा है। उन्होंने बाबरिया पर उनको काम न करने देने का आरोप लगाया और कहा कि उन्हें एक भी नियुक्ति नहीं करने दी गई है। उनका कहना है कि दिल्ली कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के हर फैसले को बाबरिया वीटो कर देते हैं। इसके अलावा उन्होंने कन्हैया व उदित राज को टिकट देने पर भी सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि गठबंधन में लड़ने के लिए सिर्फ तीन सीटें मिलीं और उसमें से दो बाहरी उम्मीदवारों को दे दी गई हैं। वो लोग केजरीवाल की इतनी तारीफ कर रहे हैं कि ऐसा लग रहा है कि वे केजरीवाल के उम्मीदवार हैं। दिल्ली कांग्रेस को पता तक नहीं और उम्मीदवारों की घोषणा कर दी गई।  
उन्होंने कांग्रेसाध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को लिखे पत्र में आम आदमी पार्टी के साथ हुए कांग्रेस के गठबंधन को लेकर भी कई सवाल खड़े किये। उनका कहना है कि उन्होंने टिकट न मिलने की वजह से इस्तीफा नहीं दिया है। वो अपने उसूलों और कांग्रेस का हर कार्यकर्ता जिस पीड़ा को महसूस करता है, उसका जिक्र करते हुए इस्तीफा दिया है। दिल्ली कांग्रेस के ज्यादातर नेता ‘आप’ के साथ गठबंधन के खिलाफ थे क्योंकि इस पार्टी ने कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के झूठे आरोप लगाये थे और आज इस पार्टी के आधे मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में बंद हैं। इसके बावजूद आलाकमान ने इस पार्टी के साथ गठबंधन किया है लेकिन हमने फैसले का सम्मान किया। उन्होंने कहा, मैं केजरीवाल की गिरफ्तारी की रात सुभाष चोपड़ा और संदीप दीक्षित के साथ उनके घर भी गया हालांकि यह मेरे उसूलों के खिलाफ था।
उन्होंने कन्हैया कुमार पर आरोप लगाया कि वो पार्टी लाइन और स्थानीय कार्यकर्ताओं की मान्यताओं को दरकिनार करते हुए मीडिया में केजरीवाल की झूठी प्रशंसा कर रहे हैं। असलियत और दिल्ली की जनता की पीड़ा के विपरीत कन्हैया कुमार शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और बिजली को लेकर ‘आप’के झूठे प्रचार का समर्थन कर रहे हैं और गलत तरीके से केजरीवाल का बचाव कर रहे हैं। देखा जाये तो लवली के पत्र और उनकी बातों से पता चल गया है कि दिल्ली कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता गठबंधन से खुश नहीं हैं। यह गठबंधन दिल्ली कांग्रेस पर आलाकमान द्वारा थोप दिया गया है और उनसे पूछा तक नहीं गया। राहुल गांधी पूरी दुनिया में शोर मचाते हैं कि मोदी तानाशाह हैं लेकिन वो कितने बड़े तानाशाह हैं, ये लवली के इस्तीफे से पता चल जाता है। जो आदमी अपनी पार्टी के नेताओं की नहीं सुनता, वो भला देश की जनता की कैसे सुनेगा। 
इस इस्तीफे से यह भी पता चलता है कि कांग्रेस आलाकमान और प्रदेश इकाइयों के बीच संवाद खत्म हो गया है और राहुल गांधी अपनी मनमर्जी के फैसले सब पर थोप रहे हैं। क्यों एक-एक करके कांग्रेस नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, यह बात भी सामने आ गई है। कांग्रेस की यह हालत हो गई है कि पता नहीं कौन कब पार्टी छोड़कर चला जाए? कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए बड़ी समस्या यह है कि जिन लोगों के खिलाफ वो अभी तक विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, अब उनके लिए ही वोट मांगना पड़ेगा। उनके लिए समस्या यह है कि दिल्ली की जनता से आंखें कैसे मिलायें और उनके सवालों का क्या जवाब दें कि जिन्हें वे अभी तक चोर बता रहे थे, वो अब ईमानदार कैसे हो गये। जनता के बीच काम करने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं की मुसीबत हवा में उड़ने वाले नेता नहीं समझ सकते। क्या यह सच नहीं है कि अरविंदर सिंह लवली, अजय माकन, अलका लाम्बा और संदीप दीक्षित जैसे दिल्ली कांग्रेस के नेताओं ने ‘आप’ के खिलाफ बहुत बड़ी लड़ाई लड़ी है और अब उन्हें उनके साथ खड़े होने के लिए मजबूर किया जा रहा है, वो भी उस जगह पर जहां गठबंधन के बावजूद कोई भी सीट जीतना संभव दिखाई नहीं दे रहा है।
वास्तव में कांग्रेस ने केजरीवाल के प्रति आत्मघाती नीति अपनाई है। 2014 में कांग्रेस की बड़ी हार के लिए सबसे ज्यादा इंडिया अगेंस्ट क्रप्शन का अन्ना आंदोलन और उस आंदोलन से बनी ‘आप’ जिम्मेदार थी। अन्ना आंदोलन व ‘आप’ के प्रचार के कारण कांग्रेस देश में सबसे भ्रष्ट पार्टी के रूप में स्थापित हो गई। कांग्रेस की छवि ऐसी बिगड़ी कि अभी तक संवर नहीं पाई है। इसी धारणा के कारण देश की जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने का निर्णय लिया और वो विकल्प की तलाश में जुट गई। ‘आप’ को बेशक विधानसभा में दिल्ली की जनता ने सत्ता सौंपी लेकिन देश की सत्ता सौंपने के लिए उसे कांग्रेस के विकल्प के रूप में सिर्फ भाजपा नज़र आई। अन्ना आंदोलन व ‘आप’ ने देश का माहौल ऐसा बना दिया था कि जनता किसी भी हालत में कांग्रेस को बर्दाश्त नहीं करना चाहती थी। आंदोलन से निकले नेता और नई बनी पार्टी पर जनता इतनी जल्दी कैसे भरोसा कर सकती थी कि उसे देश की सत्ता सौंप देती।
अन्ना आन्दोलन के कारण ही भाजपा को 2014 में बड़ी जीत हासिल हुई और इसमें ‘आप’ का बहुत बड़ा हाथ था। कांग्रेस यह भूल गई है कि दिल्ली और पंजाब में ‘आप’ ही उसको सत्ता से बाहर करके सत्ता में आई है। दिल्ली से तो उसने कांग्रेस को विपक्ष से भी बाहर करके तीसरे नम्बर की पार्टी बना दिया है। पंजाब में आज बेशक कांग्रेस दूसरे नम्बर की पार्टी है लेकिन लोकसभा चुनाव के परिणाम बतायेंगे कि कांग्रेस पंजाब में कितने नम्बर पर आती है। गुजरात में भी कांग्रेस की शर्मनाक हार के लिए कहीं न कहीं ‘आप’ ही जिम्मेदार है। इसके अलावा गोवा में क्या हुआ है, हम सबने देखा है। वास्तव में कांग्रेस की बर्बादी के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार ‘आप’ को बर्बाद करके खत्म करने का मौका कांग्रेस को मिला था लेकिन कांग्रेस ने उस मौके को गंवा दिया है। कांग्रेस को सोचना होगा कि उसकी भाजपा से बड़ी दुश्मन ‘आप’ पार्टी है। भाजपा उसे सत्ता से हटाकर विपक्ष में पहुंचा सकती है लेकिन ‘आप’ उसे विपक्ष से हटाकर खत्म कर देगी। वास्तव में कांग्रेस का जनता से संवाद खत्म हो गया है और वो जनता के मन की बात भी नहीं जान पाती है। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस आलाकमान ने जनता के बीच काम करने वाले कार्यकर्ताओं की बात सुनना बंद कर दिया है। देश की जनता ने अभी तक ‘आप’ को सिर्फ दिल्ली में सरकार चलाने के लायक समझा है। इससे ज्यादा हैसियत ‘आप’ की नहीं है। पंजाब में ‘आप’ ने सत्ता हासिल नहीं की है बल्कि कांग्रेस ने अपनी मूर्खताओं से थाली में परोस कर उसे सत्ता दे दी है।