दुनिया की आधी आबादी पर मंडराता डेंगू का खतरा

आज राष्ट्रीय डेंगू दिवस पर विशेष

डेंगू का प्रकोप अब साल-दर-साल न केवल भारत बल्कि दुनिया के कई देशों के लिए घातक होता जा रहा है। दरअसल दुनिया के कई देशों में डेंगू के मामले निरंतर बढ़ रहे हैं और यह संक्रमण गंभीर से अति गंभीर होता जा रहा है। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में बताया गया कि वैश्विक स्तर पर 3.9 अरब लोगों को डेंगू वायरस का खतरा है यानी दुनिया की आधी आबादी इसकी चपेट में आ सकती है।
 डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट के मुताबिक डब्ल्यूएचओ ने जिन 80 देशों को डेंगू से अधिक प्रभावित देश घोषित कर रखा है, उनमें पिछले साल डेंगू के 65 लाख से अधिक मामले सामने आए और डेंगू से 7300 से अधिक मौतें हुई। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक अफ्रीका, अमरीका, दक्षिण-पूर्व एशिया सहित सौ से ज्यादा देश डेंगू से गंभीर रूप से प्रभावित हैं और डेंगू अब यूरोप, पूर्वी भूमध्यसागरीय तथा अमरीका के नए क्षेत्रों में भी पांव पसारने लगा है। यदि डेंगू के खतरे को भारत के संदर्भ में देखें तो पिछले साल स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट में बताया गया था कि देश में डेंगू के एक साल में हर दिन औसतन 600 से अधिक मामले सामने आए और सभी राज्यों में कुल मामलों की संख्या करीब ढ़ाई लाख थी। रिपोर्ट में यह चिंताजनक तथ्य भी सामने आया कि 1996 में डेंगू के पहले बड़े प्रकोप के बाद से भारत में डेंगू का प्रसार 1312 प्रतिशत अधिक बड़ा है।
डेंगू के कारण भारत में अब प्रतिवर्ष सैंकड़ों लोगों की मौत हो जाती है। दरअसल डेंगू भी अन्य घातक बीमारियों की ही भांति ऐसी गंभीर बीमारी बन चुका है, जिसके जोखिम को नज़रअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। डेंगू उन घातक बीमारियों में से एक है, जिसका यदि समय से इलाज नहीं मिले तो यह जानलेवा हो सकता है। डेंगू के बढ़ते खतरों को देखते हुए लोगों में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से ही स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रतिवर्ष 16 मई को ‘राष्ट्रीय डेंगू दिवस’ मनाया जाता है। मानसून के साथ डेंगू और चिकनगुनिया फैलाने वाले मच्छरों के पनपने का मौसम शुरू होता है, इसीलिए इस बीमारी को लेकर लोगों में व्यापक जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा इसके लिए मानसून के आगमन से पहले 16 मई का दिन निर्धारित किया गया। इस वर्ष यह दिवस ‘डेंगू रोकथाम, सुरक्षित कल के लिए हमारी जिम्मेदारी’ थीम के साथ मनाया जा रहा है। पिछले साल भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बेंगलुरु के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया था कि पिछले कुछ दशकों में भारत में डेंगू वायरस का नाटकीय रूप से उभार हुआ है और देश में पाए जाने वाले इसके स्वरूपों के प्रसार को रोकने के लिए टीका विकसित किए जाने की आवश्यकता है। अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक विगत 50 वर्षों में डेंगू के मामलों में खासतौर से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में लगातार वृद्धि हुई है। अध्ययनकर्ता वैज्ञानिकों के अनुसार वे यह समझने का प्रयास कर रहे थे कि डेंगू वायरस के भारतीय स्वरूप कितने अलग हैं और उन्होंने पाया कि वे टीके विकसित करने के लिए इस्तेमाल किए गए मूल स्वरूपों से बहुत अलग हैं।
आईआईएससी बेंगलुरु के वैज्ञानिकों के मुताबिक डेंगू वायरस की चार व्यापक श्रेणियां ‘सीरोटाइप (डेंगू 1, 2, 3 और 4)’ हैं और उन्होंने जांच की कि इनमें से प्रत्येक ‘सीरोटाइप’ अपने पैतृक अनुक्रम से, एक-दूसरे से और अन्य वैश्विक अनुक्रमों से कितना अलग हुआ। अध्ययन के दौरान पाया गया कि अनुक्रम बहुत ही जटिल बनावट में बदल रहे हैं। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार भारत में 2012 तक ‘डेंगू 1 और 3’ प्रमुख स्वरूप थे लेकिन हाल के वर्षों में ‘डेंगू 2’ समूचे देश में ज्यादा प्रभावी हो गया है जबकि कभी सबसे कम संक्रामक माना जाने वाला ‘डेंगू 4’ दक्षिण भारत में अपनी जगह बना रहा है। अध्ययन के दौरान वर्ष 1956 और 2018 के बीच संक्रमित रोगियों से एकत्र किए गए डेंगू वायरस के भारतीय स्वरूपों के सभी उपलब्ध 408 आनुवंशिक अनुक्रमों की पड़ताल की गई। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि डेंगू महामारी फैलने के बढ़ते खतरे के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें सबसे बड़ा कारण एडीज एजिप्टी और एडीज एल्बोपिक्टस मच्छर का बदला स्वरूप है। एंटीबायोटिक के अत्यधिक सेवन के बाद से मच्छरों ने भी खुद को दवाईयों के अनुकूल बना लिया है, जिससे मामलों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पिछले साल अल नीनो घटना और जलवायु परिवर्तन से बढ़ते तापमान तथा अधिक बारिश से भी इन मच्छरों की तादाद बढ़ रही है।
डेंगू से हुई दर्जनों मौतों का अध्ययन करने के बाद स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि डेंगू अब इतना खतरनाक हो गया है कि कुछ मामलों में यह पीड़ित को इतनी बुरी तरह से चपेट में लेता है कि शरीर के अधिकांश अंग कार्य करना बंद कर देते हैं और उसकी मौत हो जाती है। डेंगू के कुछ मरीज अब ऐसे भी सामने आते हैं, जिनमें डेंगू के साथ मलेरिया के भी लक्षण होते हैं। यदि डेंगू और मलेरिया एक साथ हो जाएं तो ऐसे मरीज की किडनी, फेफड़े और मस्तिष्क को भी नुकसान पहुंचने की संभावना रहती है और इन दोनों बीमारियों का एक साथ होना कुछ मामलों में प्राणघातक हो सकता है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार पहले जहां डेंगू का असर 15.20 दिनों बाद शरीर के अन्य अंगों पर शुरू होता थाए, वहीं अब यह एक सप्ताह के अंदर ही किडनी, लीवर और आंतों तक पहुंच जाता है और शरीर के अंग कार्य करना बंद कर देते हैं। 
डेंगू के अब कुछ ऐसे मरीज भी सामने आने लगे हैं, जिनमें आमतौर पर नज़र आने वाले लक्षण ही नज़र नहीं आते। दरअसल अब डेंगू के कई ऐसे रोगी भी अस्पताल पहुंचते हैं, जिनमें बुखार तथा सिरदर्द जैसे लक्षण नदारद होते हैं, उनमें केवल शारीरिक कमजोरी तथा प्लेटलेट्स कम होने के लक्षण ही देखे जाते हैं। डेंगू से पीड़ित व्यक्ति को प्राय: तेज़ सिरदर्द होता है और लगातार बुखार आता है, जो 100 डिग्री के आसपास बना रहता है लेकिन अस्पताल में भर्ती हुए डेंगू के कई मरीजों में बुखार, सिरदर्द जैसे लक्षण नदारद होते हैं। केवल थकान और कमजोरी की शिकायत करने वाले ऐसे मरीजों में डेंगू की पहचान करना मुश्किल होता है। 
डेंगू के लक्षणों में आ रहे इन बड़े बदलावों को लेकर किए गए अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि एडीज मच्छर के वायरस और स्ट्रेन में बदलाव के कारण ही ऐसा हो रहा है। डेंगू के इलाज के लिए कोई दवा, एंटीबायोटिक या टीका उपलब्ध नहीं है, अत: इसका इलाज इसके लक्षणों का इलाज करके ही किया जाता है। इसीलिए डेंगू से बचाव के लिए स्वच्छता और सजगता पर ही विशेष जोर दिया जाता है इसीलिए डेंगू के इलाज से बेहतर है, इससे बचे रहने के उपाय करना।