पंजाब सरकार स्थिति स्पष्ट करे

पंजाब में सिंचाई के लिए उपयोग किये जाते नहरी पानी के संबंध में एक नया आश्चर्यजनक समाचार यह सामने आया है कि पंजाब का सिंचाई विभाग नहरी पटवारियों से सर्वेक्षण करवा कर एक ऐसी रिपोर्ट तैयार कर रहा है, जिसका उद्देश्य यह दर्शाना है कि राज्य में ज्यादातर ज़मीन की सिंचाई नहरी पानी से होती है तथा पंजाब के किसानों को नहरी पानी की कोई कमी नहीं है। सम्भव है कि केन्द्र सरकार के दबाव अधीन यह रिपोर्ट तैयार करवाई जा रही हो ताकि सतलुज-यमुना सम्पर्क नहर का विवाद हल न होने की स्थिति में आगामी समय में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की रौशनी में केन्द्र सरकार द्वारा पंजाब पर इस संबंध में कोई फैसला थोपने के लिए आधार तैयार किया जा सके। पंजाब में नहरी पानी का अधिक उपयोग दर्शाने संबंधी सिंचाई विभाग की ओर से नहरी पटवारियों पर दबाव डाल कर इच्छानुसार एकत्रित किये जा रहे आंकड़ों संबंधी मीडिया को जानकारी किसान नेता सरबजीत सिंह संधू की ओर से दी गई है। यह भी बताया गया है कि नहरी पटवारियों को डरा-धमका कर तथा उनके वेतनों में कटौती का भय दिखा कर उनसे उन ज़मीनों संबंधी भी ़गलत आंकड़े लिये जा रहे हैं, जिन्हें कभी भी नहरी पानी नहीं लगा। यह भी कहा जा रहा है कि नहरी पटवार यूनियन के प्रधान जसकरण सिंह को इसी दबाव के चलते निलम्बित भी कर दिया गया है।
जबकि कड़वी सच्चाई यह है कि प्रदेश में 70 प्रतिशत से अधिक सिंचाई के लिए ट्यूबवैलों द्वारा भूजल का उपयोग किया जा रहा है तथा 30 प्रतिशत से भी कम क्षेत्रफल के लिए नहरी पानी का उपयोग हो रहा है। नैशनल ग्राऊंड वाटर बोर्ड तथा नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की ओर से पंजाब के संबंध में बार-बार ऐसी चेतावनियां जारी की जाती रही हैं कि प्रदेश को आगामी 15-20 वर्ष के दौरान पानी के बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार यदि मौजूदा की तरह भूजल का निरन्तर उपयोग जारी रहा तो 2039 तक पंजाब में भूमिगत जल एक हज़ार फुट से भी गहरा चला जाएगा। इस समय 143 ब्लाकों में पंजाब के 117 ब्लाक ऐसे हैं, जिनमें वार्षिक पानी की होती पूर्ति से कहीं अधिक पानी निकाला जा रहा है। इन ब्लाकों में जल स्तर निरन्तर नीचे जा रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार आगामी समय में यदि पंजाब को पानी के संकट से बचाना है तो इसके लिए यह बेहद ज़रूरी है कि नहरी सिंचाई अधीन क्षेत्रफल बढ़ाया जाये तथा ट्यबूवैलों पर निर्भरता कम की जाये। पंजाब को इस समय जितना भी नहरी पानी प्राप्त है, उसका सिंचाई के लिए अधिक से अधिक कुशलता के साथ उपयोग किया जाये। सतलुज-यमुना सम्पर्क नहर के विवाद के सन्दर्भ में भी यह बेहद ज़रूरी है कि पंजाब नहरी पानी में से अपना बनता पूरा-पूरा हिस्सा हर हालत में प्राप्त करे। यदि केन्द्र के दबाव अधीन पंजाब की सरकार कोई ऐसा फैसला स्वीकार करती है, जोकि आगामी समय में पंजाब के नहरी पानी में से हिस्सा और भी कम करने का कारण बन सकता है, तो प्रदेश के लिए ऐसा फैसला बेहद नुक्सानदायक साबित हो सकता है।
इस सन्दर्भ में हमारा यह स्पष्ट विचार है कि पंजाब के सिंचाई विभाग को शीघ्र यह स्पष्टीकरण देना चाहिए कि उसकी ओर से प्रदेश में नहरी पानी के उपयोग संबंधी बढ़ा-चढ़ा कर रिपोर्टें क्यों तैयार करवाई जा रही हैं? इनका उद्देश्य क्या है तथा ये रिपोर्टें किसके निर्देशों पर तैयार की जा रही हैं? पंजाब की राजनीतिक पार्टियों तथा समूह किसान संगठनों को, इस समाचार को गम्भीरता से लेना चाहिए तथा इस संबंध में पंजाब सरकार से स्पष्टीकरण हासिल करना चाहिए। यदि इस संबंध में पंजाब सरकार कोई सन्तोषजनक जवाब नहीं देती तो राजनीतिक पार्टियों तथा किसान संगठनों को यह मामला लोगों के समक्ष रखना चाहिए तथा पंजाब के हितों की रक्षा के लिए लोकसभा चुनावों के संबंध में इसे एक चुनावी मुद्दा बनाने से भी संकोच नहीं करना चाहिए। हमें पूरी आशा है कि प्रदेश के सभी हितैषी इस समाचार को गम्भीरता से लेंगे तथा प्रदेश सरकार को इस संबंध में स्पष्टीकरण देने के लिए विवश करेंगे।