बर्लिन की चर्च में मस्जिद के दर्शन

बर्लिन के ऑल्ट-मोअबिट पर 1835 की विनीशियन गोथिक चर्च अपने ताम्बे के घंटाघर के साथ अनेक कहानियां सुनाती है। आज यह तुर्किश-बहुल पड़ोस के बीच में है, जहां एक तरफ मोअबिट जेल व विशाल कोर्टहाउस है और दूसरी तरफ क्लेइनेर टियरगार्टन (राज्य पार्क) है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हवाई हमलों में इस बिल्डिंग को काफी नुकसान पहुंचा था। 1950 के दशक में पुननिर्मित हुई सेंट जोहन्निसकिरचे की जेब में कुछ अति दिलचस्प कहानियां हैं, जिनमें से एक यह भी है कि इसके भीतर मस्जिद है। 
जून 2017 में मानवाधिकार वकील व एक्टिविस्ट सेयरन अटेस ने इस प्रोटेस्टेंट चर्च की बिल्डिंग के एक कमरे में इब्ने रुशद गेटे मस्जिद की स्थापना की ताकि उदार मुस्लिमों को जर्मन समाज में शामिल व एकत्र किया जा सके। ज़ाहिर है मस्जिद की स्थापना करना आसान न था, अनेक अड़चने सामने आयीं। इस मस्जिद की प्रेस अधिकारी मरलेने लोहर ने बताया, ‘मुस्लिम समलैंगिक पुरुष इस बात को लेकर तो प्रसन्न थे कि वह जैसे हैं, वैसे ही उन्हें स्वीकार किया जा रहा है, लेकिन वह इस बात से सहमत नहीं थे कि बिना हेडस्कार्फ की महिलाएं उनके साथ प्रार्थना कर रही थीं।’
यह मस्जिद शुक्रवार व रविवार को खुलती है और इसका नाम मध्य युग के स्पेनी दार्शनिक इब्ने रुशद और जर्मन कवि व विचारक जोहन्न वुल्फगैंग गेटे, जिनका इस्लाम के प्रति गहरा झुकाव था, के नाम पर रखा गया है। बर्लिन में मुस्लिमों की अच्छी खासी संख्या है, लेकिन उनके लिए एकत्र होने की जगह को तलाश पाना कठिन हो रहा था। मदद चर्च से आयी, जिसने बर्लिन की अन्य प्रोटेस्टेंट गिरजाघरों से अपील की कि जिन कमरों का इस्तेमाल नहीं हो रहा है, उनमें मुस्लिमों को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी जाये। ऐसा लोहर ने बताया, जिन्होंने 2011 में इस्लाम धर्म अपनाया था। आज जहां मस्जिद खड़ी है, वहां सेंट जोहन्निसकिरचे का क्वायर प्रैक्टिस करता था, अब वह चर्च के भीतर चला गया है।
बर्लिन के हौप्तबह्ह़ोफ रेलवे स्टेशन से 20-मिनट की वाक या 7-मिनट के बस के सफर के बाद यह चर्च आ जाती है। अगर आप करीबी एयरपोर्ट टेगेल पर हैं तो वहां से कैब के ज़रिये 15 मिनट में चर्च तक पहुंचा जा सकता है, और 10-22 यूरो लगते हैं। मस्जिद बिल्डिंग के उत्तर-पश्चिम सिरे पर है और उसका प्रवेश द्वार चर्च के मुख्य द्वार से भिन्न है। मस्जिद के अंदर बड़ी खिड़कियों से प्राकृतिक रोशनी अंदर आती है। दीवारें व छत सफेद रंग की हैं और इससे मैच करता हुआ सफेद रंग का कालीन ही फर्श पर बिछाया हुआ है। लकड़ी से बने अर्द्ध-चंद्रमा से काबा की दिशा मालूम हो, मुस्लिम लोग उसी रुख की ओर अपना मुंह करके नमाज़ अदा करते हैं। कमरे के दूसरे सिरे पर छोटी सी लाइब्रेरी है, जिसमें धार्मिक पुस्तकें रखी हुई हैं। कमरा छोटा अवश्य है, लेकिन सभी को जगह देने का वायदा करता है। यहां केवल महिलाओं व पुरुषों के लिए ही दरवाज़े खुले हुए नहीं हैं बल्कि शिया, सुन्नी, अल्वी आदि सभी आ सकते हैं और सभी कानूनी यौन झुकावों व पहचानों के लिए हर लिहाज़ से पूर्ण सम्मान व स्वागत है। नमाज़ की विभिन्न शैलियों को लेकर शुरूआती टकराव हुआ, जिसे आपसी विचार विमर्श से हल कर लिया गया।
शुक्रवार को बड़ी नमाज़ का आयोजन होता है, जिसमें खुतबा (उपदेश) भी होता है। कभी-कभी चर्च के पादरी भी इसमें शामिल होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे मस्जिद के सदस्य चर्च के संडे मास में सम्मिलित होते हैं। विषय से संबंधित जिसे भी पर्याप्त जानकारी है, वह मस्जिद में साप्ताहिक खुतबा या उपदेश दे सकता है। अतीत में ऐसे विषय बहुत पसंद किये गये हैं जर्मनी भाषा में इस्लाम का इतिहास, इस्लाम का सुनहेरी युग और ‘सुपथ’ पर होने का अर्थ क्या है?
इस मस्जिद में पाकिस्तानी मूल का इमाम है और सदस्यों की संख्या लगभग 100 है। मस्जिद में महिला व पुरुष साथ नमाज़ अदा करते हैं, नमाज़ की इमामत महिला भी करती है। महिलाएं बिना हेडस्कार्फ के भी नमाज़ अदा कर सकती हैं। लोहर का कहना है कि ऐसे साक्ष्य मिलते हैं कि पैगम्बर के समय में भी महिलाएं इमामत करती थीं। पैगम्बर की दो पत्नियों ने अपने पड़ोस में नमाज़ में इमामत की। लोहर के अनुसार, ‘महिला व पुरुष साथ नमाज़ अदा करते थे। लेकिन इन रिपोर्ट्स को अब छुपा दिया गया है; क्योंकि शक्तिशाली पुरुष नहीं चाहते कि यह बातें दुनिया को मालूम हों।’ गौरतलब है कि अपनी पहली वर्षगांठ पर इस मस्जिद ने जमीदा टीचर को आमंत्रित किया था। यह वही महिला हैं जिन्होंने केरल की मस्जिद में नमाज़ की इमामत की थी। बर्लिन की मस्जिद निकाह के ज़रिये अंतर-धार्मिक विवाहों को भी समर्थन व वैधता प्रदान करती है। दुनियाभर के उदार मुस्लिमों के लिए यह स्वागतयोग्य कदम है।


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