मानवता के लिए मार्गदर्शक है श्री गुरु अर्जन देव जी की शहादत

आज शहीदी दिवस पर विशेष
पांचवें पातशाह श्री गुरु अर्जन देव जी की शहादत विश्व के धर्म इतिहास में एक इन्कलाबी मोड़ थी। इस शहादत ने जहां धार्मिक कट्टरता के नाम पर मानवीय अत्याचार की प्रवृत्ति को शीर्ष चुनौती दी, वहीं मानवता को ज़ुल्म के मुकाबले के लिए भय मुक्त भी किया। सिख इतिहास में पांचवें पातशाह की शहादत एक क्रांतिकारी पृष्ठ के रूप में अंकित है, जिसकी प्रेरणा आज भी प्रत्येक सिख के लिए मार्ग-दर्शक है। गुरु साहिब की इस शहादत ने सिखों को ज़ुल्म से टक्कर लेने, अकाल पुरख की रज़ा में रहने तथा सब्र, संतोष, दृढ़ता से अपने अधिकारों की रक्षा करने का मार्ग दिखा कर सिखी के महल की नींव को इतना पक्का व मज़बूत कर दिया कि ज़ुल्म की आंधियां इसका कुछ न बिगाड़ सकीं। इस पवित्र शहादत ने सिख योद्धाओं को हक-सच की खातिर कुर्बान होने का ऐसा तरीका बताया कि उन्होंने शहादतों की एक लम्बी शृंखला का सृजन कर दिया। शहादतों की यह शृंखला सिख इतिहास की उपलब्धि है।  
शहीद तथा शहादत अरबी भाषा के शब्द हैं। किसी ऊंचे-सच्चे उद्देश्य के लिए निष्काम रह कर कुर्बानी देने वाला शहीद कहलाता है। सिख धर्म में ‘शहादत’ शब्द बहुत ही सम्मान भरे शब्दों में सामने आता है। सिखी में इस शब्द का इस्तेमाल सत्य की आवाज़ को बुलंद रखने के लिए दी गई कुर्बानी की गवाही देता है और यह गवाही कोई आम नहीं, अपितु सामाजिक परिप्रेक्ष्प के साथ-साथ रूहानियत से भी भरपूर है। शहीद की शहादत हमेशा सत्य के लिए होती है, इस कारण सत्य तथा शहादत का रिश्ता भी अटूट है। सिख धर्म में सत्य पर चलने तथा सत्य की खातिर आवश्यकता पड़ने पर शहादत देने का मार्ग प्रथम पातशाह श्री गुरु नानक देव जी ने उजागर किया था। आप जी ने गुरुवाणी में हुक्म किया :
जउ तउ प्रेम खेलन का चाउ।। सिरु धरि तली गली मेरी आओ।।
इतु मारगि पैरु धरीजै।। सिरु दीजै काणि न कीजै।।
(श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी, अंग : 1412)
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहादत ने पहले पातशाह द्वारा दर्शाये गये इस मार्ग को और पक्का किया। पांचवें पातशाह जी का पूरा जीवन परोपकार तथा ऊंचे आदर्शों के लिए व्यतीत हुआ। आप के गुण बेअंत हैं, परोपकार एवं प्रशंसाएं भी बेशुमार हैं।
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहादत सिख इतिहास में पहली तथा विश्व के इतिहास में लासानी एवं बेमिसाल है। श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के वास्तविक कारण जहांगीर बादशाह की धार्मिक कट्टरता तथा संकीर्णता थी। पांचवें पातशाह जी के दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे तेज प्रताप को सहन कर पाना इस्लामिक सरकार, उसके साम्प्रदायिक बादशाह एवं कट्टरपंथी ठेकेदारों के लिए मुश्किल हो चुका था। पांचवें पातशाह जी के चढ़दी कला, बेबाक बयान और निर्भीक ऐलान जहां उनके धर्म-कर्म की विलक्षणता, आचार-सदाचार का अनूठापन, कथनी-करनी की स्वतंत्रता, स्वभाव की निर्भयता और सिख लहर के आगे बढ़ने का सूचक थे, वहीं कर्मकांडी साम्प्रदायिक शख्सियत को भारी चुनौती थे। गुरु घर के प्रति संगतों में बढ़ रही श्रद्धा के बारे में सुन पाना शासकों को पूर्णतया अस्वीकार्य था। वास्तव में जहांगीर मौके की तलाश में था कि उसको कब कोई बहाना मिले और वह सिख लहर को खत्म कर दे और सिखों के गुरु श्री गुरु अर्जन देव जी को या तो मुसलमान बना दे या शहीद कर दे। इस बात का ज़िक्र वह अपनी आत्म-कथा ‘तुज़के जहांगीरी’ में भी करता है। उसे बहाने की तलाश थी जो उसको खुसरो की ब़गावत से मिला। इसके अलावा और भी कई कारण सहायक बने। 
जहांगीर ने गुरु साहिब को यासा-ए-सियासत के अधीन सज़ा दी जिसका अभिप्राय है यातनाएं देकर मारना। इस तरह जहांगीर के आदेश के अनुसार श्री गुरु अर्जन देव जी को शहीद किया गया। गुरु साहिब को शहीद करने के समय कई तरह की असह्य एवं अकल्पनीय यातनाएं दी गईं। ज़ालिमों द्वारा तीव्र गर्मी के मौसम में भी आप जी को उबलती देग में बिठाया गया, गर्म तवी पर चौकड़ी लगवाई गई और पावन शीश पर गर्म रेत डाली गई। सब शारीरिक कष्टों को बड़े सहज ढंग से सहारते हुए इसे करतार की मज़र्ी समझ कर निर्भीक रहे। इस प्रकार अनेक यातनाएं देकर सन् 1606 ई. में आप जी को शहीद कर दिया गया। इस महान् शहादत वाले स्थान पर रावी दरिया के किनारे लाहौर में गुरुद्वारा डेरा साहिब स्थित है।
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहादत ने सिख कौम में ज़बर जुल्म के विरुद्ध संघर्ष के लिए अथाह जोश भर दिया। पांचवें पातशाह जी की शहादत के बाद छठे पातशाह श्री गुरु हरिगोबिंद साहिब ने मीरी पीरी की दो तलवारें धारण कीं और अकाल पुरुख का तख्त हमेशा रहने वाले ‘अकाल तख्त’ की स्थापना की। छठे पातशाह द्वारा मीरी पीरी की तलवारें पहनना, शस्त्र इकट्ठे करना, किले बनवाना, शाही सेना का डटकर सामना करना और उनको करारी हार देना इस शहादत के फलस्वरूप ही अस्तित्व में आए थे। इस तरह गुरु साहिब जी की शहादत हमारे लिए मार्ग दर्शक है, जिस पर चलकर हमें अपने धर्म के सुनहरे असूलों की खातिर अत्याचार के मुकाबले के लिए हमेशा तैयार रहना है। सच की खातिर संघर्षशील रहना है और झूठ, अन्याय आदि की जड़ उखाड़ने के लिए कभी भी पीछे नहीं हटना।

-प्रधान, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, श्री अमृतसर।