वर्तमान रूस-चीन संबंध और भारत 

समय और बदली परिस्थितियां निष्ठाएं भी बदल सकती हैं। अगर युद्ध या क्रांति का वातावरण हो तो चीज़ें और भी तेज़ी से बदलती हैं। इस समय रूस यूक्रेन के साथ जबरदस्त युद्ध में फंसा हुआ है। युद्ध आरम्भ करना किसी हद तक आसान हो सकता है परन्तु युद्ध के परिणाम और कैसे खत्म हो, यह किसी के भी बस में नहीं होते। शुरू में सभी लोगों को लगता था कि कुछ ही दिनों में या ज्यादा से ज्यादा एक महीने में युद्ध समाप्त हो जाएगा परन्तु ऐसा हुआ नहीं। भारी नुकसान उठा कर भी आज तक युद्ध का कोई ओर छोर नज़र नहीं आता। इस युद्ध में रूस को चीन से काफी मदद मिली है और दोनों मुल्क मित्रता कर नया अध्याय लिख रहे हैं। 
गोवा में शंघाई को-आप्रेशन आर्गेनाइजेशन (एस.सी.ओ.) की विदेश मंत्री स्तरीय बैठक ने पै्रस के लिए फोटो तो खिंचवा लिए परन्तु बंद कमरों में हुई आपसी बातचीत एक परिणाम तक पहुंचने वाली रही। भारत की इस सबमें क्या स्थिति हो। यही विचारणीय प्रश्न है। सभी जानते हैं कि ‘एस.सी.ओ.’ चीन की पहलकदमी से बड़ा संगठन है, बेशक वैसा दिखता नहीं हो। इसका नेतृत्व भी चीन ही कर रहा है। पिछले लगभग 20 वर्षों में जो संगठन उभरे हैं। इस प्रकार हैं- 1. ब्रिक्स ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका। 2. आर.आई.सी. रूस, भारत, चीन का फोरम। इन दोनों में तीन देश प्रमुख रूप से शामिल हैं वे हैं-चीन, रूस और भारत। इन तीनों में आज की तारीख में चीन की प्रमुखता जग-जाहिर है और भारत थोड़ा पीछे है।
सभी सरकारें शिखर बैठक का अलम्बरदार बनने को हरदम तैयार रहती हैं। इससे विश्व स्तरीय चर्चा का अवसर बना रहता है। इंदिया गांधी के प्रधानमंत्री काल के बाद नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री काल में इन समारोहों में ज्यादा दिलचस्पी ली गई। परन्तु हम यह बात नहीं भूल सकते कि ऐसे संगठन जो चीन की पहलकदमी से बने हों उनमें शामिल देश चीन का विरोध तो किसी सूरत में नहीं कर पाएंगे। विशेष परिस्थितियों में समर्थन न भी करें तब भी। क्या भारत ऐसे हालात में अपने लिए जोरदार समर्थन जुटा सकता है? अगर ऐसे में भारत को हम अलग-थलग की स्थिति में पाते हैं तो हम क्या कर सकते है? आप इनमें से किसी भी संगठन पर विचार करें तो परिणाम क्या होंगे? हम चीन-रूस को एक-दूसरे के साथ जुड़ा हुआ पाते हैं। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव दिल्ली में अगर यह कहते हैं कि भारत ने अगर किसी देश के साथ रणनीतिक संधि पर हस्ताक्षर किए हैं, तो वह रूस ही है। इसमें चेतावनी का स्वर भी दिख सकता है। एस.सी.ओ. की यह बैठक कहीं किसी दुविधा का परिणाम तो नहीं? आज पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद से भी बड़ा भारत का दिख रहा शत्रु कौन है? लगता है कि इस पर किसी को सोचना भी नहीं पड़ेगा। जी हां वह चीन है। जो हर समय धमकियों की तरह हमारे सिर पर मंडराता रहता है। भारत को इस समय एक ऐसे समूह को अपना समय और ऊर्जा लगानी पड़ रही है। जिसके साथ कहीं मैत्री कम और टकराव ज्यादा नज़र आते हैं। हमारे कितने ही हित इसके साथ टकरा रहे हैं। भारत क्या रूस से दूरी बना सकता है? नहीं, बिल्कुल नहीं। भारत क्या उस पर पहले जैसा विश्वास आज भी कर सकता है जबकि हालात लगातार बदल रहे हैं। रूस ज़रूरत पड़ने पर भारत के समर्थन में और चीन के विरोध में खड़ा हो पाएगा? क्या यह रूस के लिए इतना आसान रह गया है? चीन ने हमारी 3000 किमी. से कुछ अधिक हमारी सीमा को संवेदनात्मक बना रखा है। हमारी सेनाएं एक पल के लिए भी उधर से अपनी नज़र नहीं हटा सकती। नि:संदेह विश्व में अन्य देशों के साथ व्यवहार करते हुए कूटनीति का गहरा हिस्सा होता है। इसके आधार पर ठोस निष्कर्ष नहीं निकाल सकते। हमेशा संबंध बढ़ाने का मतलब वही नहीं होता जो विदेश मंत्रियों के हाथ मिलाने से नज़र आता है, पिछले तीन-चार दशकों में चीन ने प्रगति की है तो भारत भी कहीं किसी से कम नहीं रहा है, चीन ने अपना वर्चस्व बनाने में कुछ अधिक कामयाबी हासिल की है। हम अनेक कारणों से सुपर पावर होने में कुछ पीछे रह गए हैं।
आज की परिस्थितियां जो कुछ बिल्कुल स्पष्ट है वह यह कि उसके साथ हमारी पुरानी मैत्री गर्व करने लायक तो है परन्तु चीन की समस्या को सामने रखते हुए यह गंभीरतापूर्वक सोचने का विषय है कि हमें किन या फिर किसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत है।