देश-व्यापी राह पर है महिला पहलवानों का आन्दोलन

 

सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद दिल्ली पुलिस ने भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध दो एफआईआर दर्ज की थीं, जिनमें से एक पोक्सो कानून के तहत है। इन दोनों एफआईआर के कंटेंट को एक अंग्रेज़ी दैनिक ने प्रकाशित किया है। कंटेंट में न केवल गंभीर आरोप हैं बल्कि उसे पढ़ने के बाद किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का दिल दहल सकता है कि खेल संघों में खिलाड़ियों के साथ ऐसा भी हो सकता है। अगर इस किस्म की एफआईआर किसी भी सामान्य व्यक्ति या विपक्ष के नेता के खिलाफ  हुई होती तो वह अगले दिन ही सलाखों के पीछे होता और मजिस्ट्रेट उसे यह कहकर ज़मानत देने से इन्कार देता कि साक्ष्यों से छेड़छाड़ का अंदेशा है। हालांकि अब बढ़ते दबाव के कारण केंद्रीय युवा खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने संकेत दिए हैं कि बृजभूषण के विरुद्ध जल्द आरोप-पत्र दाखिल किया जायेगा, लेकिन उसकी गिरफ्तारी के संबंध में उन्होंने कुछ नहीं कहा, जबकि यौन उत्पीड़न के आरोप लगाने वाले पहलवानों की यही मुख्य मांग है। ठाकुर ने इस बात से इन्कार किया है कि भाजपा सांसद होने के कारण बृजभूषण के खिलाफ  कार्यवाही नहीं हो रही है। वह इस मुद्दे का जल्द समाधान चाहते हैं, पहलवानों के लिए न्याय भी चाहते हैं, लेकिन कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए। 
दूसरी ओर विपक्ष का आरोप है कि भाजपा की केंद्र व राज्य सरकारों ने जिस तरह से अतीत में कुलदीप सेंगर, स्वामी चिन्मयानन्द, आशीष मिश्रा आदि को कानून के शिकंजे से बचाने का प्रयास किया था (जो असफल रहा), उसी तरह से बृजभूषण को बचाने की कोशिशें की जा रही हैं। इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच तथ्य यह है कि पहलवानों का आंदोलन किसान आंदोलन की तरह होता जा रहा है। एक तरफ  उसे जहां देशव्यापी समर्थन मिलने लगा है, वहीं दूसरी तरफ  उसे कथित तौर पर बदनाम करने के भी भरपूर प्रयास किये जा रहे हैं। 28 मई, 2023 को नई दिल्ली के जंतर मंतर से पुलिस द्वारा जबरन हटाये जाने व विभिन्न धाराओं में गिरफ्तार किये जाने के बाद जब आंदोलनकारी पहलवान पुलिस हिरासत से बाहर आये तो उन्होंने अपने सभी पदक गंगा में विसर्जित करने और इंडिया गेट पर आमरण अनशन करने का प्रण लिया। 
पहलवान 30 मई की शाम को हरिद्वार की हर की पौड़ी पर अपने पदक गंगा में विसर्जित करने के लिए पहुंच गये थे, लेकिन ऐन मौके पर किसान नेता नरेश टिकैत ने हस्तक्षेप किया, पहलवानों को पदक गंगा में विसर्जित करने से इस आश्वासन के साथ रोका कि किसान इस मुद्दे का जल्द से जल्द समाधान निकलवाने का प्रयास करेंगे। फलस्वरूप, दो सर्वखाप पंचायतें हुईं, एक पहली जून को मुज़फ्फरनगर के सौराम गांव में और दूसरी दो जून को कुरुक्षेत्र में, जिनमें उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान व पंजाब की खापों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इन महापंचायतों में तय हुआ कि पहलवानों की समस्याओं को लेकर किसान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, गृहमंत्री अमित शाह आदि से मुलाकात करेंगे, यदि फिर भी अगर कोई बात नहीं बनती है, तो दिल्ली को दूध, सब्जी आदि की सप्लाई रोक दी जायेगी और आवश्यकता पड़ने पर किसान आंदोलन की तरह दिल्ली की सीमाओं पर धरना भी दिया जायेगा। 
उत्तर के किसानों को इस संदर्भ में देश के अन्य किसान संगठनों का भी समर्थन मिल रहा है। मसलन, तमिलनाडु की नाम तमिलर कट्ची (एनटीके) के नेता सीमान ने समर्थन में अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट में ट्वीट किया, जिसे पोस्ट होने के कुछ ही मिनट बाद ‘विदहेल्ड’ कर दिया गया। ट्वीट को रोके जाने की तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने कड़ी आलोचना की है। 
यहां जगह के अभाव में उन सभी का उल्लेख करना संभव नहीं है जो पहलवानों के समर्थन में आये हैं, लेकिन कुछ का ज़िक्र आवश्यक है। भारतीय क्रिकेट के सबसे गौरवमय क्षण की पटकथा लिखने वाली 1983 की विश्व कप विजेता टीम पहलवानों के साथ हुए दुर्व्यवहार से ‘परेशान व चिंतित’ है और उसने पहलवानों से आग्रह किया कि वे जल्दबाज़ी में कोई कदम न उठाएं (यानी अपने पदक गंगा में विसर्जित न करें)। चर्चित फिल्म अभिनेता आयुष्मान खुराना की पत्नी ताहिरा ने पहलवानों के समर्थन में अति भावुक कविता रचकर उसे अपनी आवाज़ में सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है। 
दूसरी ओर यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (विश्व कुश्ती को नियंत्रित करने वाली संस्था) और अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति ने पहलवानों के विरुद्ध हुई पुलिस कार्रवाई को परेशान करने वाली बताते हुए उनकी सुरक्षा की मांग की है और इस संदर्भ में भारतीय ओलम्पिक संघ से रिपोर्ट भी तलब की है। यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग ने भारतीय कुश्ती संघ के निर्धारित समय में चुनाव कराने को कहा है और अगर ऐसा न किया गया तो भारतीय पहलवानों को भारत की बजाय तटस्थ झंडे के तले ही अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेना होगा। गौरतलब है कि इस विवाद के चलते ही भारत इस साल मार्च में 19वीं एशियन रेसलिंग चैंपियनशिप्स नई दिल्ली में आयोजित नहीं कर सका था, जो बाद में अस्ताना, कजाकस्थान में आयोजित हुई। इन्हीं राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते अब भाजपा के भी कुछ सांसद पहलवानों के लिए न्याय की मांग करने लगे हैं। भाजपा सांसद प्रीतम मुंडे ने कहा है कि पहलवान ही नहीं अगर कोई भी महिला शिकायत करती है तो उसका तुरंत संज्ञान लिया जाना चाहिए।
साक्षी मलिक व विनेश फोगाट के पदक के कारण ही कुश्ती ग्रामीण महिलाओं में स्वीकार्य खेल बन सकी है। इस समय जो इन महिला पहलवानों को इन्साफ  व सुरक्षा प्रदान करने में टाल-मटोल की जा रही है, उससे एक दशक की खेल प्रगति पर गंभीर खतरा मंडराने लगा है। अगर यह धारणा आम हो जाती है कि खेल संघों में लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं तो कौन अपनी बेटी को खेलों में भेजेगा। इसलिए इस विवाद में जल्द न्याय मिलना आवश्यक है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर