युद्ध-भयावह मोड़ पर

रूस तथा यूक्रेन युद्ध बेहद गम्भीर दौर से गुज़र रहा है। इस युद्ध की घोषणा 24 फरवरी, 2022 को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने की थी। 15 मास से अधिक समय में जहां यूक्रेन का भारी विनाश हुआ,और इसके चार प्रदेशों पर रूस ने कब्ज़ा कर लिया है, वहीं यह बात भी स्पष्ट हो गई है कि यूक्रेन अभी भी रूस के समक्ष घुटने टेकने के लिए तैयार नहीं है। इससे पूर्व वर्ष 2014 में रूस ने यूक्रेन के महत्त्वपूर्ण समुद्री प्रांत क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया था। रूस के ऐसे व्यवहार के कारण ही यूक्रेन ने यूरोपियन देशों के संगठन नाटो में शामिल होने के यत्न किए थे। रूस की बड़ी आपत्ति यही थी कि यूक्रेन उसका निकटवर्ती पड़ोसी है तथा वह यह बर्दाश्त नहीं कर सकता कि उसके नाटो संधि में शामिल होने से नाटो संगठन में शामिल देश उसकी दहलीज़ पर आ जाएं, परन्तु यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर ज़ेलेंस्की ने रूस की इस बात को मानने से इन्कार कर दिया था। 
रूस द्वारा किए गए इस हमले के बाद नाटो के दो दर्जन के लगभग यूरोपियन देशों सहित अमरीका तथा आस्ट्रेलिया ने यूक्रेन को हथियारों की सहायता करने की घोषणा कर दी थी। पिछले समय में इन देशों द्वारा उसे अत्याधुनिक हथियार दिये गये। यह भी बड़ा कारण है कि यूक्रेन रूस जैसी शक्ति का अब तक मुकाबला कर सका है। युद्ध शुरू होने के समय यह अनुमान ज़रूर लगाया जाता रहा था कि कुछ ही समय में  यूक्रेन रूस के आगे हथियार डाल देगा परन्तु अब तक यूक्रेन ने अपनी यह दृढ़ता जारी रखी हुई है। आज जहां यूक्रेन में ज्यादातर स्थानों पर विनाश का दृश्य दिखाई दे रहा है, वहीं लाखों यूक्रेनी इस दौरान दूसरे देशों में पलायन करके शरणार्थी के रूप में रहने के लिए विवश हैं। अब विगत दिवस इस युद्ध में एक और बड़ा भयावह मोड़ आया जब दक्षिणी यूक्रेन के खेरसान क्षेत्र जोकि अब रूस के कब्ज़े में है, में स्थित काखोकवा बांध के एक भाग को बम से उड़ा दिया गया है। इससे यूक्रेन में बाढ़ आने का ़खतरा बन गया है, जिससे लाखों ही लोग उजड़ जाएंगे तथा क्षेत्र में भारी विनाश होगा।
रूस ने यूक्रेन के ज़ैपोरिज़ज़िया परमाणु प्लांट पर भी कब्ज़ा किया हुआ है। बांध के टूटने का प्रभाव उस पर भी पड़ने का ़खतरा बन गया है। ऐसे विनाश के लिए आज बहुत-से देश रूस को दोषी मान रहे हैं जबकि रूस यह दोष यूक्रेन पर लगा रहा है। यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि यदि इस युद्ध का कोई हल न निकला तो यह विश्व भर के लिए ़खतरे का कारण बन सकता है। आज जहां इस युद्ध में अरबों, खरबों रुपये बर्बाद हो रहे हैं, वहीं इसके कई नकारात्मक प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ रहे हैं। भारत तथा चीन सहित कुछ अन्य देश भी इस युद्ध को समाप्त करने के लिए अपने-अपने ढंग-तरीके से यत्नशील ज़रूर हुए हैं परन्तु अभी तक इन यत्नों का कोई सार्थक परिणाम नहीं निकल सका परन्तु इस युद्ध का खत्म होना बेहद ज़रूरी है, जिसके लिए विश्व भर के देशों द्वारा संयुक्त रूप में फिर से यत्न तेज़ किये जाने चाहिएं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द