‘कूड़ाघर’

दुनिया में पहाड़ों की सबसे ऊंची चोटी माऊंट एवरेस्ट मानी जाती है। जिस दिन पहली बार एडमंड हिलेरी और भारतीय तेनजिंग नौरेके जो एक शेरपा थे, ने इस पर विजय प्राप्त की थी, इसे मानवीय जीवन और उत्साह की एक बड़ी विजय माना गया था। उसके बाद इस चोटी को बार-बार विजय किया गया। महिला पर्वतारोहियों ने भी इस पर विजय प्राप्त की। तेनजिंग ने तो इस पर बार-बार चढ़ कर विजय प्राप्त की। अभी एक देसी फिल्म ने तो यह संदेश भी दे दिया, कि हर आदमी के अन्दर अपना-अपना हिमालय है। पहाड़ विजय से कहीं बेहतर होगा कि पहले हम अपने अन्दर छिपे हुए हिमालय और इसकी सर्वोच्च चोटी पर चढ़ कर विजय प्राप्त करें।
बेशक यह फिल्मी संदेश है, सुनने में बहुत अच्छा लगता है, लेकिन जनाब आजकल अपने मन की चोटियों पर कौन विजय प्राप्त करने का कष्ट करता है। लगता है, लोगों ने ज़माना बदल जाने के साथ-साथ अपने मन के अंधेरे कोनों में छिपे हुए पातालों से इश्क कर लिया है। इन कोनों में छिपे हुए इन पातालों का अन्त नहीं। अपना अन्धा स्वार्थ साधने के लिए वे लोग अपने इन छिपे पाताल-दर-पाताल में उतर जाने से कोई परहेज़ नहीं करते। अपनी इस पतन यात्रा पर बड़प्पन का मुखौटा ओढ़ा कर इसे वे अपनी निरन्तर विकास यात्रा कहने से भी नहीं हिचकिचाते। बड़े दिखावे के साथ कह देते हैं, कि ‘भूल जाओ कल यहां हमारी टूटी हुई झोंपड़ी थी, आज यहां उसकी जगह बने हमारे भव्य प्रासाद की ओर देखें। भूल जाओ कि कभी हमारा जीवन इन फुटपाथों और इन झोंपड़ियों में गुज़रा। हमारी नई वंशावली नोट करो, हम और हमारे पूर्वज इन नये प्रासादों में ही पैदा हुआ, और अपने वंशजों के लिए हम इससे भी भव्य प्रासाद छोड़ कर जाएंगे, क्योंकि यह हमारी खानदानी रिवायत है। ‘अगर आज हम मंत्री हैं, तो हमारे हाथ के पकड़े का राजदंड को चाहे अपने लिए लोकतंत्र का प्रतीक मान लो, लेकिन हमारे लिए तो वह राज्यशाही की स्वीकृति की मुहर है, जो बार-बार चिल्ला कर हमारे नाती-पोतों को दुलारती है, कि ‘बेटा हम जन्मजात नेता हैं, लोगों के गलत कार्यों को सही करवाने की हमें महारत है।’ बचपन से हमने तुम्हें यही घुट्टी दी है, इसलिए बेटा नेता का बेटा तो नेता ही रहेगा, हां हमारे पड़ोस का बेटा ़गरीब और भुखमरे का बेटा फटीचर मरे, तो यह उसके पूर्व जन्मों का फल है।
हमने अपनी ओर से तो देश में किसी को भूख से न मरने देने की गारंटी दे दी थी। अब नौजवान काम की गारंटी मांगने का साहस करने लगे, तो हमने उनके भाग्य में रियायती अनाज की कतारें लिख दीं। इन कतारों से छटपटा कर जिसने आत्महत्या कर ली, उसे हमने मानसिक रूप से विक्षिप्त करार दे दिया। जो जीते जी मरना चाहता था, उसे हमने नशों के माफिया जंगल में अनुचर बना कर धकेल दिया। जो लोग किसी भी चौखट में फिट नहीं बैठे, उनकी भीड़ सस्ते मज़दूरों के रूप में विदेशों में भागी है। हां, चंद पढ़े-लिखे को बहलाने के लिए उपलब्धियों के इन्द्रधनुषी आंकड़े हैं, जिन्हें गोदी मीडिया दिन-रात थपथपाता है, और कहता है, ‘पढ़े लिखे हो तो यह है तुम्हारी फारसी’ इसका विश्वास करो और बदलाव का उत्सवधर्मी जयघोष करो। इससे तुम्हारे लिए हथेली पर सरसों जमाने का कोई मुक्ति-मार्ग निकल ही आएगा। जानते हो नई संस्कृतियां हवाओं से धरा पर उतर आई हैं। इनमें तुम्हारी ज़िन्दगी को स्वर्ग बना देने, तुम्हारे अच्छे दिन ला देने, और तुम्हारे बैंक खातों में अपने आप पैसे जमा करवा देने के चमत्कारिक वायदे हैं। बन्धु इसे शार्टकट संस्कृति कहते हैं, जिसके द्वारा आजकल देश और समाज के नव-निर्माण के दावे किये जाते हैं। बेशक इनकी परिणति स्व-निर्माण और भाई-बन्दों की नई ज़िंदगी देने के रूप में होती है। अपनी ज़िन्दगी में नये से नये पहाड़ विजय करने के नाम पर अगर आप अपने अन्दर छिपे हुए नैतिकता विहीन पातालों का उद्घाटन करते जाओगे तो यही होगा न।
लेकिन भैय्या यहां तो भद्रजनों ने पहाड़ विजय के नाम पर उनकी चोटियों पर अपने अन्तस का कूड़ा फैंकना शुरू कर दिया। एवरेस्ट विजेता तेनजिंग जब बार-बार चोटी पर चढ़े तो उन्होंने पाया कि यहां पर उनसे पहले के विजेताओं ने अपने अन्दर और बाहर का कूड़ा फैंकना शुरू कर दिया है। जो चोटी पहले कभी अद्वितीय सौंदर्य की प्रतीक थी, अब वह धीरे-धीरे एक कूड़ा घर में तबदील होती चली जा रही है। यारो, ये लोग तो अमर प्रेम और सौंदर्य के प्रतीक ताजमहल को भी नहीं बख्श रहे। जो कभी गुरुदेव रविन्द्र को समय के गाल पर बहा हुआ अमर प्रेम का आंसू लगा था। उसे देखते ही देखते वे अपने अन्तस के कूड़े के निशानों से भर दें। जी हां, वही निशान जो आपको हर सुबह के अखबार में निर्मम हत्याओं की दरिन्दगी से भरी ़खबरों के रूप में नज़र आते हैं। लोग इन्हें पढ़ते हैं, और सहम कर सहन कर लेते हैं, क्योंकि इन्हें साफ करने के लिए आज अन्धे निशानची ही अपने भाषणों के गोले दागते नज़र आते हैं।