सोशल मीडिया के लिए भी होनी चाहिए आचार संहिता 

यदि हम सोशल मीडिया की बात करते हैं तो सबसे पहले और प्रमुखता के साथ फेसबुक और व्हाट्सएप का नाम दिमाग में कौंधता है। फिर यू-ट्यूब जो पूरी तरह विजुअल मीडिया है। इन्स्टाग्राम आपको सेलिब्रिटी बनाने का चारा फेकता है तो ट्विटर का अलग आकर्षण है।
फेसबुक ने अपने फीचर्स में ढेर सारे बदलाव इन वर्षों में कर डाले हैं। विज्ञापनों की भरमार है। हर चार या पांच पोस्ट के बाद कोई न कोई विज्ञापन आ टपकता है। फिर तमाम समूह बने हैं जिनके सदस्यों से चैट करने के जटिल तौर तरीके हैं। फेसबुक के हर प्रोफाइल को प्रोफेशनल यानि व्यावसायिक बनाने के भी आफर हैं। मगर सोशल मीडिया के साथ एक बड़ी मुश्किल यह हो गयी है कि बहुत सारी अनचाही, अयाचित और अवांछित सामग्री जिसमें आपकी कोई रुचि नहीं होती है और वह किसी भी दृष्टि से न तो आपके लिए और न ही समाज के लिये उपयोगी होती है, आपसे साझा होती रहती है।  
चाहे वह फेसबुक की आपकी टाइमलाइन हो अथवा मेसेज बाक्स या फिर व्हाट्सअप का आपका पेज या इन्स्टाग्राम या ट्विटर के कुछ फीचर्स, अवांछित सामग्री का ढ़ेर इकट्ठा होता रहता है। व्हाट्सएप पर साझा की गयी सामग्री तो आपके फोन के संग्रह स्पेस को भी तेज़ी कम करती चलती है।
मित्रता के चयन का अधिकार नि:संदेह आपका है मगर मित्रगण बिना अगले की रुचि जाने समझे सामग्रियों का अग्रेषण बिना दिमाग लगाये यंत्रवत करते रहते हैं और कुछ मित्र तो इस मामले में एकदम बेरहम होते हैं। वे दनादन निरर्थक सामग्रियों का अग्रसारण करते रहते हैं। कुछ मेसेज बाक्स में मित्रता स्वीकार करते ही आ टपकते हैं और ऊलजलूल लिखना शुरू हो जाते हैं।  
कुछ तो निष्काम भाव से अल्लसुबह गुडमार्निंग नमस्कार के साथ ही पुष्प गुच्छों को भेजते हैं। माना कि वे ऐसा मित्र के प्रति अपने स्नेह सम्मान के कारण ऐसा करते हैं, मगर एक साथ कितने ही मित्रों का यह पुष्पयुक्त सम्मान सुबह-सुबह ही एक बोझ बन जाता है। किसका देखें, किसका छोड़े। किसका बिना देखे ही डिलीट कर दें।
मित्रों से बहुत विनम्रता पूर्वक निवेदन भी करने का कोई सार्थक परिणाम नहीं निकलता कि भाई कभी कभार एकाध पुष्प भले ही अर्पित कर दिया करें, ये रोज-रोज का बुके मत भेजा करें, नागवार लगता है। इस पर कई मित्र बुरा मान जाते हैं, संवाद तक तोड़ देते हैं। 
सभी की रोज़गार और घर परिवार की ढेर सारी व्यस्तताएं होती हैं, मगर मित्रगण को इसकी कहां परवाह, न जाने कहां से उन्हें इतनी फुरसत मिल जाती है कि वे अपने स्नेहिल सम्मान (नृशंसता) से आपको नवाज़े बिना नहीं रहते। उनका यह प्रेम इतना बढ़ जाता है कि वे आपका ध्यान बार-बार किसी ज़रूरी काम से विकर्षित कर देते हैं। कितना और भी कुछ डिजिटल मीडिया पर उपयोगी रहता है जिसे पढ़ना ज्यादा ज़रुरी है जिसके लिये समय कम पड़ जाता है। और उन्हें तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता। 
इसलिये सोशल मीडिया की एक आचार संहिता ज़रुर होनी चाहिए जिसका अनुपालन सभी को समर्पित भाव और समझ के साथ करना चाहिए। जैसे—1. बिना किसी सामग्री को ठीक से पढ़े और उसकी व्यक्ति या समूह के लिये उपयोगिता को परखे कदापि साझा या अग्रसारित न करें। 2. रोज-रोज बुके या धार्मिक सामग्री साझा न करें । हो सकता है कि प्रेष्य का झुकाव और अभिरुचि आप सरीखी न हो। 3. यदि आप वाकई किसी के घनिष्ठ मित्र हैं तो उसकी अभिरुचियों से ज़रूर अवगत होंगे, फिर तो उसकी गहरी अभिरुचि और आवश्यकता का आकलन करके ही सामग्री साझा किया करें, तभी वह सार्थक भी होगी और संवाद स्थापित करेगी। कुछेक मित्र समाचार पत्रों में छपे अपने मुद्रित लेख को ज़रूर साझा करेंगे। अब भला बासी सामग्री सोशल मीडिया पर साझा करने की क्या ज़रुरत है। अपने वाल पर भले कर लीजिये। मित्र के संदेश बाक्स तक क्यों ले जाते हैं? 4. किसी ने आपकी मित्रता विनती का सम्मान यदि कर दिया है तो उसके मेसेज बाक्स में गदर मचाना मत शुरु कर दीजिये। 5. सोशल मीडिया का शुरुआती उद्देश्य भले ही स्वजनों या स्वधर्मियों के बीच संवाद समन्वय, हालचाल और हैलो-हाय के लिए था, मगर अब उसके अनेक आयाम हो चुके हैं जिन्हें अपनाया और उपयोग में लाया जाना चाहिए। 7. फेसबुक के यूजर प्रोफाइल के क्लोन कर धोखाधड़ी की प्रवृत्ति तेज़ी से बढ़ी है। ऐसे में कृपया अपनी एक प्रोफाइल होते हुये दूसरी, तीसरी बनाकर भ्रम न उत्पन्न करें। यदि यह किन्ही कारणों से ज़रूरी हो तो पूर्व संदेश देकर करें। सोशल मीडिया एक उपहार है इसे श्राप बनने में योगदान नहीं दिया जाना चाहिए।

(युवराज)