जर्मनी के सहयोग से और मज़बूत होगी भारतीय नौसेना

गत 6 जून को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की भारत की यात्रा पर आए जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस के साथ द्विपक्षीय वार्ता हुई जिसमें रक्षा संबंधों को लेकर विशेष चर्चा हुई। चर्चा के दौरान दोनों रक्षा प्रमुखों ने मुख्य रूप से रक्षा औद्योगिक साझेदारी मज़बूत करने पर ज़ोर दिया। इसके अलावा मुख्य सैन्य उपकरणों के सह-उत्पादन के तरीकों की समीक्षा की गई। वर्तमान में जारी आपसी रक्षा सहयोग से जुड़ी हुई गतिविधियों और रक्षा भागीदारी को विस्तृत करने के तौर-तरीकों पर विचार-विमर्श किया गया। इस चर्चा में जर्मनी के रक्षा मंत्री ने भारत की तकरीबन 43,000 करोड़ रुपये की लागत वाली 6 पारम्परिक पनडुब्बियों की मेगा खरीद परियोजना को लेकर दिलचस्पी दिखाई है। इस बैठक में दोनों रक्षा मंत्रियों ने मुख्य सैन्य उपकरणों के सह-उत्पादन के तरीकों की समीक्षा की। इसके अलावा वर्तमान में चल रही आपसी रक्षा सहयोग से जुड़ी हुई गतिविधियों तथा रक्षा औद्योगिक भागीदारी बढ़ाने के तरीकों पर विचार-विमर्श किया गया। 
इस सौदे के दावेदारों में से एक जर्मनी की कम्पनी थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स है। विदित हो कि जून 2021 में रक्षा मंत्रालय ने भारतीय नौसेना के लिए छह पारम्परिक पनडुब्बियों को देश में ही बनाने की परियोजना की स्वीकृति प्रदान की थी। ये पनडुब्बियां रणनीतिक साझेदारी मॉडल के तहत बनाई जाएंगी। इससे घरेलू रक्षा निर्माताओं के लिए आयात पर निर्भरता कम करने हेतु उच्च गुणवत्ता वाले सैन्य मंच बनाने के लिए प्रमुख विदेशी रक्षा कम्पनियों के साथ मिलकर काम करना सरल हो जाएगा। 
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 के बाद भारत में जर्मनी के किसी रक्षा मंत्री की यह पहली यात्रा थी। पिस्टोरियस ने कहा कि भारतीय रक्षा उद्योग जर्मन रक्षा उद्योग की आपूर्ति शृंखला में भाग ले सकता है। उन्होंने कहा कि आपूर्ति शृंखला में लचीलापन लाने में योगदान देने के अलावा यह पारिस्थितिकी तंत्र को भी मज़बूत बना सकता है। इसके अलावा दोनों रक्षा मंत्रियों ने हिन्द-प्रशान्त और अन्य क्षेत्रों में चीन की बढ़ती आक्रामक गतिविधियों सहित समस्त क्षेत्रीय सुरक्षा स्थितियों पर विचार-विमर्श किया।   चीन व पाकिस्तान जैसे देशों से निपटने के लिए भारत द्वारा जर्मनी से खरीदी जा रही 6 विध्वंसक पनडुब्बियां इतनी अधिक घातक हैं कि पलक झपकते ही समुद्र के सीने को चीरते हुए दुश्मन के घर में तबाही मचा सकती हैं। ये पनडुब्बियां इतनी अधुनातन हैं कि भारत का हर शत्रु अब खौफ  खाएगा। इन पनडुब्बियां को भारतीय नौसेना के लिए बनाया जाना है। भारत और जर्मनी के बीच हो रहे इस सौदे से चीन और पाकिस्तान बेहद चिन्तित हो गए हैं। इन छह विध्वंसक पारम्परिक पनडुब्बियों की खरीद के लिए नई दिल्ली सरकार ने रूचि दिखाई है क्योंकि भारत के सामने नौसेना की रक्षा चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं। पनडुब्बी खरीद समझौते के बाद जर्मनी की पनडुब्बी निर्माता कम्पनी को एक भारतीय कम्पनी के साथ पार्टनरशिप करके भारत में ही ये पनडुब्बियां बनानी होंगी। फिलहाल भारतीय नौसेना के पास संचालन के योग्य 16 पनडुब्बियां हैं। इनमें 11 ऐसी पनडुब्बियां हैं जो काफी पुरानी हो चुकी हैं। इसके अलावा भारत के पास दो परमाणु पनडुब्बियां हैं। निश्चित है कि जर्मनी की ये पनडुब्बियां भारतीय नौसेना की ताकत में काफी इजाफा करेंगी।
दरअसल भारत चाहता है कि जर्मन कम्पनियां संयुक्त उपक्रम में इन पनडुब्बियों का निर्माण करें। इस पनडुब्बी सौदे के दावेदारों में से जर्मनी की एक कम्पनी थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम (टीकेएमएस) भी है। यह मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इंडोनेशिया से भारत आने से पहले जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिय पिस्टोरियस ने जर्मनी के सरकारी प्रसारणकर्ता दायचे वेले से कहा था कि भारत का लगातार रूसी हथियारों पर निर्भर रहना जर्मनी के हित में नहीं है। पिस्टोरियस के अनुसार भारत हथियारों से जुड़ी तकनीकों के लिए काफी हद तक रूस पर निर्भर है। ऐसे में जर्मनी भविष्य में भारत के साथ साझा हित नहीं देख पाएगा। हम इसे बदल नहीं सकते। यह एक ऐसा मुद्दा है कि जिसे हमें दूसरे साझेदारों के साथ मिलकर हल करना है और इसके लिए जर्मनी तैयार है क्योंकि हम भारत जैसे देशों को सहयोग देने हेतु तैयार हैं। विदित हो कि अगले वर्ष जर्मनी की नौसेना को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में तैनात किया जाना है। उस समय भारतीय नौसेना जर्मनी की नौसेना के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास करने की योजना बना रही है। 
भारत यदि छह अत्याधुनिक डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों को खरीदता है तो वह सामुद्रिक क्षेत्र में बहुत मज़बूत हो जाएगा। उम्मीद है कि जर्मन की कम्पनी टीकेएमएस मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड के साथ भारत में पनडुब्बियों का निर्माण कर सकती है। इससे पहले फ्रांस की रक्षा कम्पनी इस प्रोजेक्ट से पीछे हट चुकी है। इसलिए अब जर्मनी के साथ इस प्रोजेक्ट के आगे बढ़ने की सम्भावना बढ़ गई है। भारत का रक्षा उद्योग जर्मनी की रक्षा कम्पनियों की आपूर्ति व्यवस्था में भागीदारी कर सकता है और इससे उसकी आर्थिक स्थिति काफी मज़बूत हो सकती है। यदि भारत और जर्मनी एक-दूसरे के साथ आगे बढ़ते हैं तो भारत के कुशल कामगारों और तुलनात्मक रूप से कम लागत तथा जर्मनी की अत्याधुनिक तकनीक और निवेश का इस्तेमाल कर साथ-साथ काम किया जा सकता है।  इससे भारत से कुशल कार्यबल एवं प्रतिस्पर्धी लागत तथा जर्मनी से बेहतर तकनीक एवं निवेश का समायोजन हो सकता है। इस कदम से दोनों देशों के आपसी रिश्ते और मज़बूत होंगे।  
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(लेखक-सैन्य विज्ञान विषय के प्राघ्यापक रहे हैं।)