बिजली कटों से बढ़ता हाहाकार

पंजाब में मुफ्त बिजली के शाब्दिक झूलों का आनन्द ले रहे लोगों को अब प्रदेश की सरकार ने बिजली सप्लाई के घोषित-अघोषित कटों के बड़े-बड़े झटके देना भी शुरू कर दिया है। बिजली की इस भारी कमी ने प्रदेश भर में आम आदमी पार्टी की भगवंत मान सरकार के विरुद्ध आम लोगों द्वारा ‘हाय बिजली’ के प्रलाप के साथ सड़कों पर उतरने से, सरकार के सस्ती और सरप्लस बिजली के दावों की पोल भी भरे बाज़ार खोल कर रख दी है। लोगों ने यहां तक कहना शुरू कर दिया है, कि आप हमसे बिजली के बिल ले लें, किन्तु बिजली की सप्लाई अवश्य दुरुस्त करें। प्रदेश में धान की बुआई का मौसम निकट आने पर बिजली की कमी का संकट उपजने की सम्भावना सभी को बहुत पहले से थी, किन्तु अनेकानेक बहानों की आड़ में विद्युत की सप्लाई हेतु की जा रही भारी कटौतियों ने हाहाकार जैसी स्थिति पैदा कर दी है। पंजाब में सत्तारूढ़ हुई आम आदमी पार्टी ने पिछले वर्ष एक चुनावी वायदे के अनुरूप आम लोगों को 300 यूनिट प्रति माह प्रति परिवार बिजली मुफ्त देने की घोषणा की थी, किन्तु सत्ता संभालते ही सरकार ने प्रदेश भर के सभी ज़िलों में क्रमिक रूप से बिजली के घोषित-अघोषित कट लगा कर उनकी इस खुशी को शीघ्र काफूर भी कर दिया। पंजाब में बढ़ते तापमान ने प्रदेश के लोगों में बिजली की कमी के मुद्दे पर त्राहिमाम् जैसी स्थिति पैदा कर दी है। सरकार बिजली की उपलब्धता को लेकर बेशक जितने मज़र्ी दावे कर ले, किन्तु जिस प्रकार पूरे प्रदेश में बिजली की आपूर्ति बाधित हो रही है, उसने इन दावों की हवा निकाल दी है। प्रदेश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में घंटों-बद्ध रूप से बिजली की सप्लाई बंद रहती है। बिजली निगम की ओर से अक्सर सभी शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में मुरम्मत और अन्य कई तकनीकी कारणों के दृष्टिगत बिजली-बंदी के भिन्न-भिन्न अन्तरालों की घोषणा की जाती है, किन्तु इनके अतिरिक्त भी दिन को अथवा रातों को बार-बार बिजली बंद हो जाती है।
सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में धान की बुआई हेतु आठ-दस घंटे बिजली सप्लाई देते रहने की घोषणाएं तो बहुत कीं, किन्तु लोगों को शिकायत यह भी है कि इस अतिरिक्त दी जाने वाली बिजली की कमी को अतिरिक्त कटौतियों से पूरा करने के यत्न किये जा रहे हैं। लोगों में यह भी चर्चा है कि अभी तो धान की बुआई का कार्य शुरू ही हुआ है, तब यह स्थिति है, किन्तु जून के अन्त में जब धान की बुआई का कार्य शिखर पर जाएगा, तब बिजली कटों की स्थिति क्या हो सकती है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार आगामी कुछ दिनों में यदि मौनसून निर्धारित समय पर उत्तर भारत की ओर नहीं बढ़ता है, तो स्थिति और भी गम्भीर होने की बड़ी आशंका है। ऐसे में बिजली निगम पर मांग का दबाव और बढ़ जाएगा जोकि पहले ही 15000 मैगावाट की सीमा को पार कर चुकी है। बिजली की यह मांग पिछले वर्ष के इस काल की मांग से 4000 मैगावाट अधिक है। इसका कारण प्रदेश में प्रशासनिक तंत्र के पंसदीदा तत्वों द्वारा लगा लिये गये दो-दो मीटरों से अधिकाधिक बिजली खींचना भी माना जा सकता है।
हम समझते हैं कि अगले कुछ दिन प्रदेश के जन-साधारण के लिए कठोर परीक्षा वाले हो सकते हैं। मौनसून के आगमन की थोड़ी-सी देर भी स्थितियों की गम्भीरता को बढ़ा सकती है। ऐसे में मुफ्त बिजली के कारण लिये जाने वाले आनन्द का स्वाद अवश्य कसैला होने लगेगा। अगले कुछ दिनों में प्रदेश के कुछ भागों में गर्मी का प्रकोप और बढ़ेगा। इसको झेल पाने के लिए नि:संदेह प्रदेश के पास अतिरिक्त बिजली हेतु कोई सम्भावना दिखाई नहीं देती। प्रदेश की भगवंत मान सरकार द्वारा केन्द्र सरकार के साथ शुरू किये गये अनावश्यक विवाद के कारण भी बिजली सप्लाई के धरातल पर किसी आशावाद की कोई किरण जगते हुए प्रतीत नहीं होती। जैसे-जैसे धान की बुआई का रकबा बढ़ता जाएगा, किसानों की बिजली सप्लाई की मांग भी उसी अनुपात से बढ़ती जाएगा। सरकार यदि ग्रामीण क्षेत्र की बढ़ी हुई मांग को पूरा करती है, तो नि:संदेह रूप से प्रदेश के शहरी इलाकों में सप्लाई का दबाव और कटों की समयावधि और बढ़ेगी। किसानों ने पिछले वर्ष भी विद्युत सप्लाई हेतु धरना-प्रदर्शन और सड़क-रेल मार्ग जाम का सहारा लिया था। इस वर्ष भी वैसी ही स्थिति बनते प्रतीत हो रही है। 
हम समझते हैं कि सरकार को इस स्थिति से बचाव हेतु व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाना होगा। लोगों और किसान समुदाय को वास्तविक स्थिति से अवगत कराके , जैसे भी हो, अतिरिक्त बिजली की आपूर्ति की व्यवस्था करनी होगी। चुनावी वायदों और घोषणाओं की पूर्ति हेतु चादर से बाहर तक पांव पसारने से नंगेज़ भी बढ़ेगा और पर्दादारी भी भंग होगी। सरकारों की अपनी नीतियां और योजनाएं होती हैं, और इनमें परिवर्तन भी होता रहता है, किन्तु जन-समुदाय की एकमात्र चाह उन्हें निर्विघ्न और निरन्तरता से विद्युत सप्लाई मिलते रहने की है, और कि इस चाह को पूरा करना प्रत्येक सरकार का कर्त्तव्य हो जाता है