माफी मांगने का समय

सवा साल के समय के बाद ही पंजाब की भगवंत मान सरकार थकी हुई प्रतीत होने लगी है और दिशाहीनता के आलम में भटकती दिखाई देती है। इसकी कार्यशैली में गम्भीर योजनाबंदी की झलक दिखाई नहीं देती। इसीलिए ही इसके द्वारा किए जा रहे दावे और वायदे काफूर होते प्रतीत होने लगे हैं। आर्थिक तौर पर बुरी तरह संकट में घिरे होने के बावजूद इस सरकार ने अब अधिकतर विज्ञापनबाज़ी पर ही अपनी टेक लगा रखी है। यदि अमल निष्क्रय हो जाएं तो दावे हलके लगने लगते हैं। इसीलिए ही आज यह सरकार इन दावों और वायदों के भंवर में डावां-डोल होते दिखाई दे रही है। अतिरिक्त बिजली देने के वायदे इस लिए फीके प्रतीत हो रहे हैं, क्योंकि तीव्र गर्मी में बिजली की कमी खलने लगी है। आम लोग, उद्योगपति और व्यापारी परेशान हो रहे हैं।
चाहिए तो यह था कि सरकार विकास के कामों को पहल के आधार पर करती लेकिन विकास की बातें भी आर्थिक सामर्थ्य के आधार पर ही संभव हो सकती हैं। यदि धेला पास न हो तो मेला किसको देखना है, परन्तु अब यह महसूस होने लगा है कि लीपापोती के साथ काम नहीं चलना। इससे भी ज्यादा नकारात्मक अमल गैर-ज़रूरी विवादों को जन्म देने का है। आज ज़रूरत गम्भीर राजनीतिज्ञों की है, निरोल स्टेज पर भाषण करने वालों की नहीं। अच्छे परिणाम रचनात्मक और ठोस कारवाइयों में से ही निकल सकते हैं। यदि अपने विरोधियों को ही निशाने पर रखने की नीति अपना ली जाए तो उसके नकारात्मक परिणाम ही सामने आएंगे। दु:ख और अफसोस इस बात का है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान हर दिन अपने तरह-तरह के ब्यानों के साथ माहौल को खराब करने का ही यत्न नहीं कर रहे बल्कि उसकी कार्रवाइयां बड़े विवादों का भी कारण बन रही हैं। विगत दिवस विधानसभा में अपने बहुमत के बलबूते पर मुख्यमंत्री द्वारा जो सिख गुरुद्वारा (संशोधन) विधेयक-2023 पारित करवाया गया है, हम उसे बेहद आपत्तिजनक समझते हैं। इसे सीधा सिख कौम के धांिर्मक मामलों में बड़ा हस्तक्षेप माना जाएगा। इसी कारण ही सिखों की प्रतिनिधि संस्था शिरोमणि कमेटी ने इसे मूल से ही रद्द करने की घोषणा की है और बुलाए गए विशेष अधिवेशन में इस विधेयक को शिरोमणि कमेटी के प्रबंधों में हस्तक्षेप करने का मामला मान कर एक प्रस्ताव पारित किया गया है। सरकार को इस संशोधन विधेयक को वापस लेने की चेतावनी भी दी गई है। यह भी कहा गया है कि सिख गुरुद्वारा एक्ट-1925 में कोई संशोधन इस प्रतिनिधि संस्था की सहमति से ही किया जा सकता है। जहां संवैधानिक तौर पर कमेटी द्वारा इस मसले पर देश के राष्ट्रपति तथा गृह मंत्री को मिलने की बात कही गई है, वहीं यह भी कहा गया है कि श्री हरिमंदिर साहिब से गुरबाणी कीर्तन निर्विघ्न जारी रखने की ज़िम्मेदारी शिरोमणि कमेटी की है। इसके लिए उप-समिति का गठन भी किया गया है और प्रत्येक स्तर पर गम्भीर विचार-विमर्श भी किया जा रहा है। इस संबंध में कोई भी निर्णय शिरोमणि कमेटी स्वयं ही लेगी, परन्तु सरकार द्वारा अपने-आप ही इस संशोधन विधेयक को पारित करना जहां निंदनीय है, वहीं बर्दाश्त से बाहर भी है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा में जिस प्रकार सिखी स्वरूप तथा ककारों की तौहीन की गई, जिस प्रकार रागी सिंहों के बारे में अपमान जनक शब्द बोले गए, उसके लिए विशेष अधिवेशन ने मुख्यमंत्री से सिख कौम से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने के लिए भी कहा है। 
उत्पन्न हुए ऐसे माहौल में यदि मुख्यमंत्री अपनी इन गलतियों का एहसास नहीं करता तो वह स्वयं ही ऐसे माहौल को सृजित करने का भागी बन रहा होगा, जो प्रदेश के लिए बेहद घातक सिद्ध हो सकता है।

 —बरजिन्दर सिंह हमदर्द