पश्चिम बंगाल—पंचायत चुनावों पर हिंसा का साया

कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा पश्चिम बंगाल में आगामी मास 8 जुलाई को होने वाले पंचायत चुनावों के दौरान केन्द्रीय सुरक्षा बलों की बड़े स्तर पर तैनाती किये जाने का निर्देश नि:संदेह रूप से प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर आंखें खोल देने के लिए काफी है। इस आदेश की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई समझी जा सकती है कि चुनावों के दौरान और विशेषकर मतदान के दिन व्यापक रूप से धांधली होने, और बड़े स्तर पर हिंसा की घटनाएं होने की प्रबल आशंका है। नामांकन पत्र दाखिल किये जाने से लेकर अब तक हुई हिंसा के दौरान दोनों बड़े पक्षों के आठ लोग मारे जा चुके हैं। पं. बंगाल में पंचायत चुनाव 1978 से ही बड़े अहम माने जाते रहे हैं, और वामपंथी सरकारों के बाद से ममता बैनर्जी भी इनका इस्तेमाल निजी राजनीतिक हितों के लिए करती आ रही हैं। 
अदालत के इस आदेश के पीछे हावड़ा की एक वह घटना भी हो सकती है जिसमें एक रिटर्निंग अधिकारी पर सम्भावित प्रत्याशियों ने दस्तावेज़ों के साथ छेड़छाड़ के आरोप लगाये हैं। हालांकि अदालत ने इस घटना की केन्द्रीय जांच ब्यूरो से जांच कराये जाने का भी निर्देश दिया है। अदालत ने अपने इस आदेश में बंगाल के प्रदेश चुनाव आयुक्त को लगभग 82000 अर्ध-सैनिक बलों की तैनाती करने हेतु कहा है। अदालत की दृढ़ता का पता इस बात से भी चल जाता है जिसमें दो जजों की खण्ड पीठ ने चुनाव आयुक्त को यहां तक कहा है कि यदि वह इस आदेश का आगामी चौबीस घंटे में पालन नहीं करा सकते, तो वह इस पद से हट जाएं। 
इससे पूर्व अदालती सुझाव पर ही मुख्य चुनाव आयुक्त ने केन्द्रीय अर्ध-सैनिक बलों की 22 कम्पनियों की तैनाती का प्रस्ताव दिया था। एक कम्पनी में 80 जवान होते हैं। इस अनुपात से यह संख्या केवल 1760 जवान बनती है, अत: उच्च न्यायालय द्वारा 82000 जवानों को तैनात किये जाने हेतु निर्देश देना, नि:संदेह आगामी समय में प्रदेश में आशंकित चुनावी हिंसा को समझने के लिए काफी है। यह आदेश तब और अहम हो जाता है जब सर्वोच्च न्यायालय भी कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले पर अपनी मोहर लगा देता है। इससे यह भी पता चल जाता है कि नि:संदेह अगले दिनों में चुनावी पारा बहुत ऊपर की ओर जा सकता है। अदालत की यह एक टिप्पणी भी इस प्रदेश की आशंकित चुनावी भयावहता को दर्शाने के लिए काफी है, कि प्रदेश में चुनावी हिंसा होने की आशंका में अदालत मूक दर्शक नहीं बनी रह सकती। इससे भी यह आशंका बलवती होती है कि इस प्रदेश के चुनावी मंच पर सब कुछ ठीक नहीं है।
हम अदालत की इन चिन्ताओं से व्यापक रूप से सहमत हैं। चुनावी विवादों और उन्मादी हिंसा के लिए प. बंगाल वैसे ही कुख्यात है। तिस पर प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी भी अपनी हठ-धर्मिता के लिए बाकायदा जानी जाती हैं। उनकी महत्त्वाकांक्षा सदैव आकाशीय ऊंचाई की ओर उठती रही है। इसी कारण केन्द्र की कोई भी सरकार रही हो, उसके साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा विवाद रहा है। यह प्रदेश दशकों से अर्थात मार्क्सवादी पार्टी के शासन काल से ही हिंसा का शिकार होता चला आ रहा है। कांग्रेस की राजनीति से वैचारिक मतभेदों के कारण ममता बैनर्जी ने अपनी अलग पार्टी तृणमूल कांग्रेस बना ली थी, किन्तु ममता बैनर्जी ने भी अपना निजी मंच बना कर भी हिंसा और उत्पात के ज़रिये राजनीतिक वर्चस्व हासिल करने वाले, मार्क्सवादियों के तरीकाकार को ही अपनाये रखा। प्रदेश में विगत में जितने चुनाव उनके शासन के दौरान हुए हैं, उनमें बड़े स्तर पर हिंसा होती रही है, अत: बहुत स्वाभाविक है कि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इसी आशंका को आधार बना कर यह निर्देश दिया हो। केन्द्रीय बलों की संख्या बढ़ाये जाने के अदालती निर्देश के पीछे यह एक धारणा भी हो सकती है, कि दस वर्ष पूर्व हुए पंचायत चुनाव के दौरान 17 ज़िलों की संख्या वर्तमान में बढ़ कर 22 हो गई है। इसके अतिरिक्त प्रदेश की आबादी और मतदाताओं की संख्या भी विगत दस वर्षों में उसी अनुपात से बढ़ी है। नि:संदेह इस बढ़ी हुई आबादी और बढ़े हुए ज़िलों की संख्या में कानून-व्यवस्था की स्थिति का संतुलन बनाये रखना भी बहुत ज़रूरी होगा। अदालत के इस कड़े फैसले के पीछे उसका निजी रोष भी हो सकता है कि इस सुनवाई के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त कार्यालय का कोई भी ज़िम्मेदार अधिकारी अदालत में मौजूद नहीं हुआ।
हम समझते हैं कि नि:संदेह इस स्थिति के पीछे भी कहीं प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी का केन्द्र सरकार और उसके प्रतिनिधि प्रदेश के राज्यपाल के साथ विवादास्पद संबंध होना ही हो सकता है। माननीय अदालत द्वारा मुख्य चुनाव आयुक्त के प्रति की गई टिप्पणी के बाद प्रदेश के राज्यपाल को नई नियुक्ति करने हेतु कहने का संकेत भी आगामी दिनों में उपजने वाली चुनावी गर्मी का पारा चढ़ाने के लिए काफी है।  हम समझते हैं कि प्रदेश की यह चुनावी तस्वीर कुछ अच्छे और सुखद रंगों का प्रदर्शन नहीं करती। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और यहां चुनावी तंत्र लोक-उत्सव की तरह मनाया जाता है। यह भी, कि चुनावी तंत्र अक्सर और लोक-उत्सव दोनों शांतिपूर्ण माहौल में ही सम्पन्न हो सकते हैं। अत: प. बंगाल के आगामी पंचायत चुनाव हेतु वहां शांति स्थापित किये रखना बहुत ज़रूरी है। यह शांति अर्ध-सैनिक बलों की तैनाती से सम्भव हो, अथवा राजनीतिक पक्षों की इच्छा-शक्ति से हो, शांतिपूर्ण माहौल और मुआशिरे में ही स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव अथवा मतदान सम्पन्न हो सकता है।