बच्चों को दें प्यारी सज़ा

बहुत कम बच्चे ऐसे होते हैं जो एक ही बार में कहना मान लेते हैं। अक्सर बच्चे गलती करते हैं, तो बड़े उन्हें प्यार से समझाते हैं कि ऐसा दोबारा न हो। यदि वे दोबारा गलती करते हैं तो फिर उन्हें समझाया जाता है किन्तु यदि वे बार-बार वही गलती करते हैं तो माता-पिता को उन पर झुंझलाहट आ ही जाती है जिसके कारण न चाहते हुए भी मां बच्चों पर हाथ उठा बैठती है। 
इससे न केवल बच्चा ही रोता है बल्कि मां को भी इस पर बड़ा दुख होता है। बच्चे स्वभाव से जिद्दी ही होते हैं। उन्हें समझाना कोई आसान काम नहीं है। पांच-सात साल के बच्चे को समझाया नहीं जा सकता क्योंकि वे अपनी जिद में रहते हैं। उन्हें समझाने का तरीका यही है कि उनकी पसंद को अपना हथियार बनाना चाहिए जैसे कि उनके मनपसंद वीडियो गेम्स या टीवी को अलविदा कहें। 
इस उम्र में बच्चों को टीवी देखना, वीडियो गेम्स खेलना, कार्टून देखना, आइस्क्रीम खाना, चॉकलेट आदि खाना बहुत पसंद होता है। बच्चों की इस कमजोरी का फायदा उठायें। जब भी बच्चा गलती करे, उसकी पसंद पर रोक लगा सकती हैं। उसका कार्टून देखना बंद कर दें। उसकी मनपसंद डिश बनाकर न दें। टीवी चलाने पर रोक लगा दें। वीडियो गेम्स न खेलने दें। बच्चे को वीडियो गेम्स या टीवी तभी देखने दें जब वह आपसे वादा करे कि वह दोबारा ऐसी गलती नहीं करेगा। 
अक्सर बच्चे करेला, घीया, सरसों आदि से जी चुराते हैं। यदि बच्चा आपका कहना नहीं मानता तो उसे ऐसी ही सब्जी बनाकर खाने को दें। इससे बच्चों को गलती पर सजा भी मिलेगी और पौष्टिक आहार भी।  आठ से बारह साल की उम्र में बच्चा और भी ज्यादा अड़ियल हो जाता है। वह काफी कुछ समझने लगता है किन्तु उसमें बचपना ऐसे ही बना रहता है। वह दोस्तों में रहने लगता है। वह स्वयं को बहुत बड़ा मानने लगता है। ऐसे में गलती करने पर बच्चों को पहले प्यार से समझाया जा सकता है। यदि वह तब भी नहीं माने तो उसके खेलने पर पाबंदी लगा दें। उसका उसके दोस्तों के साथ मिलना-जुलना बंद कर दे।  इन कामों को वह करना नहीं चाहेगा इसलिए वह स्वयं में कुछ न कुछ सुधार अवश्य करेगा। इस तरह बच्चों को प्यारी सी सजा देकर गलतियां सुधारने के लिए मजबूर कर सकती हैं। 

(उर्वशी)