अमरीका की ज़रूरत है भारत

हाल ही का भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का अमरीकी दौरा भारतीय मीडिया द्वारा सफल, अद्भुत और दोस्ती ज़िन्दाबाद जैसा बताया जा रहा है। वह जब वाशिंगटन पहुंचे एंड्रयू एयरपोर्ट पर राजकीय सम्मान के साथ उनका स्वागत हुआ। उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई। दुनिया भर की नज़रें अब दोनों मुल्कों के रक्षा, नवीन ऊर्जा और मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में होने वाले करारों पर टिकी थीं। आशा की जा रही थी कि सैमीकंडक्टर्स के क्षेत्र में बड़े करार की सम्भावना पर भारतीय पक्ष की ज़रूर इच्छा रही कि जैट इंजन की मैन्यूफैक्चरिंग भी भारत में ही हो पाये।
भारत एक नई शक्ति के रूप में उभर रहा है। वाशिंगटन डी.सी. में ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए अमरीका के पचास राज्यों में से 22 हज़ार प्रवासियों के आमद की पक्की उममीद रही। व्हाइट हाऊस के आस-पास के सभी होटल फुल हो गये। किराया दो गुना हो गया। कुछ आने वाले लोगों को फ्लाइट की टिकट लेनी कठिन हो गई। आप यह दृश्य देखें कि व्हाइट हाऊस के करीब जगहों पर तिरंगा फहरा रहा है। टैक्सी वाले उत्सुक रहे कि भारत के लोकप्रिय नेता का आगमन है। अमरीकी मीडिया बेशक युक्त कंठ से नहीं, पर वैश्विक स्तर पर भारत के उदय को स्वीकार रहा है। वातावरण आशाजनक बना रहा। क्योंकि बाइडन प्रशासन की तरफ से भारत के निकट आने की कोशिशें नज़र आने लगी हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले सात बार अमरीका जा चुके हैं, लेकिन इस बार का दौरा कुछ कठिन परिस्थितियों का दौरा है। रूस-यूक्रेन का युद्ध शिखर पर है। एशिया में शीत युद्ध के हालात कहे जा सकते हैं। अब काफी स्पष्ट नज़र आने लगा है कि अमरीका जैसे बड़े मुल्क को भी भारत के समर्थन की ज़रूरत है। क्या यही वह मूल कारण है कि बाइडन मोदी के स्वागत में कोई कमी नहीं रखना चाहते। यह सब अकारण नहीं है। बाइडन 2020 में ‘अमरीका इज़ बैक’ का वायदा वहां की जनता को देकर आये थे। आज तीन साल बाद भी उनके पास अवाम को दिखाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। विदेश नीति का उनका रिकार्ड ज्यादा प्रशंसनीय नहीं माना जा रहा। अ़फगानिस्तान से अमरीकी सैनिकों के कूच के मामले में गड़बड़ी कर बैठे। रूस को यूक्रेन मामले पर रोक न पाये? पश्चिमी एशिया में अपने सहयोगी कम पा रहे हैं। चीन उनकी जान की मुसीबत बना रहा। कोई ठोस रणनीति चीन को लेकर बना न पाये जबकि वह चौतरफा दम ठोक रहा है। ले देकर इनकी उम्मीदें आकर भारत पर टिकी हैं क्योंकि यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जा रहा है। इतना ही नहीं, परमाणु शक्ति सम्पन्न है। हिन्द महासागर और ग्लोबल साउथ में एक लीडर की हैसियत रखता है। ऐतिहासिक रूप से रूस का मित्र है। पाकिस्तान, चीन की हरकतों से सावधान रहता है। सो, आधुनिक हथियारों की ज़रूरत भारत हो रहेगी ही। जो  अमरीका भारत को बेच सकता है। 
रक्षा सहभागिता के मुद्दे की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती। बीते दिनों में अमरीका भारत से महत्त्वपूर्ण तकनीक साझा करने से इन्कार करता रहा है जबकि रूस हथियारों के साथ-साथ तकनीक सीखने में भी मदद करता रहा है। हमें याद है कि कारगिल युद्ध के दिनों में अमरीका ने भारत को जी.पी.एस. देने से इन्कार कर दिया था परन्तु अब अमरीका भारत में ही जैट इंजन बनाना चाहता है। इसे बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है। वे अब भारत को एडवांस ड्रोन बेचना चाहता है। मकसद बेशक इसके पीछे भारत को रूस से मिलती सप्लाई के दायरे से बाहर लाना हो परन्तु भारत के लिए सुरक्षा कारणों से इसे बेहतर तजवीज माना जा रहा है। भारत में नौकरियां खुल सकती हैं। ज्यादा निवेश आ सकता है।
हम हर समझौते के आर्थिक आधार की अवहेलना नहीं कर सकते। भारत के पास एक बड़ा बाज़ार है। अमरीका ज़रूर उसका लाभ उठाना चाहेगा। आज भारत और अमरीका का द्विपक्षीय व्यापार 190 अरब डॉलर के पार कर चुका है। अमरीका पहले भी भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी रह चुका है। भारत इस समय दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था है। उधर वैश्विक मंदी के दबाव बढ़ रहे हैं लेकिन तब भी भारत दुनिया की सबसे तेजी से बड़ी इकोनामी है। इसलिए भारत अमरीका की पसन्द का कारण बनता जा रहा है।