डा. अमरीक सिंह चीमा को याद करते हुए

किसानों के हितैशी, गांवों के नौजवानों के पसंदीदा नेता एवं हरित क्रांति के संस्थापक निधन के 40 वर्ष बाद भी पंजाब तथा हरियाणा के समूह किसानों की याद बने हुए हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के पूर्व उपकुलपति डा. अमरीक सिंह चीमा जहां भी जाते थे, वहां उन्हें किसानों तथा कृषि उद्योगपतियों से पूरा सम्मान व प्यार मिलता था। पंजाब के कृषि विभाग का डायरैक्टर तथा भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में उच्च पदों पर रहते हुए किसानों की खुशहाली और कल्याण के लिए अथक प्रयास करते हुए वह विश्व बैंक में वरिष्ठ अधिकारी बन कर चले गए। चाहे उन्होंने विश्व बैंक में बड़ा पद हासिल कर लिया था, परन्तु उनका मन पंजाब में ही घूमता रहा। विश्व बैंक से जब वह पंजाब के दौरे पर आते तो पंजाब के किसान ही नहीं, उद्योगपति और व्यापारी भी उन्हें मिलने तथा उनका स्वागत करने के लिए तुरंत पहुंच जाते। छोड़ना तो नहीं चाहता था विश्व बैंक इस परिपक्व एवं सकारात्मक सोच के वैज्ञानिक को, परन्तु किसानों के आकर्षण  ने उन्हें तीन वर्ष के बाद ही विश्व बैंक के उच्च पद से सेवानिवृत्त होकर भारत लौटने के लिए मजबूर कर दिया। 
विश्व बैंक जाने से पहले कृषि भवन में वह एग्रीकल्चर कमिश्नर के पद पर तैनात थे और किसानों एवं कृषि भवन के अधिकारियों तथा मंत्रियों के बड़े पसंदीदा व्यक्ति थे। भारत सरकार ने उन्हें ‘पदमश्री’ देकर सम्मानित किया। गेहूं एवं चावलों की मैक्सिको तथा ताइवान से लाए गए अधिक उत्पादन देने वाली कम ऊंचाई की किस्मों के बीज पंजाब के किसानों तक प्राथमिकता के आधार पर पहुंचाना डा. चीमा की ही पहलकदमी थी। वह उस समय के कृषि मंत्री सी. सुब्राह्मण्यम तथा उनसे पहले रहे केन्द्र के कृषि मंत्री बाबू जगजीवन राम, दोनों के ही बड़े निकट थे।  विश्व बैंक से लौटने के बाद जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें कृषि भवन में कृषि मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव लगा दिया, वह इस पद पर रहते हुए पंजाबियों के कृषि भवन में कामकाज तो करवाते रहे, परन्तु पंजाब के किसानों की सेवा की लालसा उनके मन में हमेशा हलचल पैदा करती रही। थोड़ा समय कृषि भवन में रहने के बाद आखिर डा. चीमा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के उपकुलपति बन कर पुन: पंजाब आ गए। 
स. कैरों का अनाज का उत्पादन दोगुणा करने का सपना साकार करने वाले यह वैज्ञानिक दोबारा पंजाब के किसानों की सेवा में आकर बड़े खुश थे। पीएयू के उपकुलपति होते हुए उन्होंने किसानों को भारी लाभ तथा उत्पादन देने वाली धान की पी.आर.-106 तथा गेहूं की एच.डी.-2329 किस्मों की सफलता से बिजाई करवाई और पंजाब के किसानों की आय में अधिक वृद्धि की। वैज्ञानिकों की बेहतरी के लिए उन्होंने पीएयू में रोटेशन सिस्टम लागू किया, जिससे वैज्ञानिकों को अपनी योग्यता दिखाने का अवसर मिला। उन्होंने कृषि प्रसार सेवा को राष्ट्रीय विकास लहर के साथ जोड़ कर मज़बूत किया और गांवों में कार्य कर रहे दूसरे विभागों के कर्मचारियों को भी कृषि के कार्य करने के लिए उत्साहित एवं एकजुट करके साथ जोड़ लिया। 
डा. चीमा एक संस्था थे, जिन्होंने पंजाब यंग फार्मर्स एसोसिएशन, पंजाब चैंबर आफ एग्रीकल्चर, आल इंडिया चैंबर आफ एग्रीकल्चर तथा पंजाब बाज़ीगर ग्राम सुधार सभा जैसी संस्थाओं की नींव रखी। डा. चीमा का जन्म सन् 1918 में एक सितम्बर को पाकिस्तान के सियालकोट ज़िले के गांव वधाई चीमा में हुआ था। डा. चीमा में यह विशेषता थी कि उनके जहां से कोई इन्सान कभी खाली हाथ नहीं लौटा था। वह प्रत्येक का कार्य करके ही उसे वापस भेजते थे, जो भी उन्हें मिलने आता, प्रसन्नचित होकर मिलता। उन्हें एक सफल वैज्ञानिक व प्रशासक माना जाता है। 
पीएयू से सेवानिवृत्त होकर डा. चीमा किसानों के युवा लड़कों के लिए भूमि तलाश करके दिलाने तथा उस पर आबाद करके रोज़गार उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से तंज़ानिया चले गए, जहां पंजाबी नौजवानों को रोज़गार दिलाने के लिए संघर्ष किया। उनका सन् 1982 में आज के दिन निधन हो गया था। उन्होंने पहले असंख्य देशों के दौरे किए और किसानों के लिए नये अनुसंधान, मशीनरी तथा अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों के बीज उपलब्ध करा कर पंजाब, हरियाणा के किसानों की आय बढ़ाने में प्रभावशाली योगदान डाला। डा. चीमा को कृषि  विकास में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी।