राजनीतिक विकल्प के लिए यत्न

देश के प्रमुख विपक्षी दलों की कर्नाटक की राजधानी बैंगलुरु में हुई दो दिवसीय बैठक को कई पक्षों से प्रभावशाली माना जा सकता है। इसने देश के राजनीतिक मंच पर एक नई आशा पैदा की है। इससे पहले 23 जून को बिहार की राजधानी पटना में मुख्यमंत्री नितीश कुमार द्वारा ऐसी ही बैठक बुलाई गई थी, जिसमें 15 विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए थे। इस बार पार्टियों की संख्या बढ़ कर 26 हो गई है। बिहार में जनता दल (यू.) के नेतृत्व में नितीश कुमार मुख्यमंत्री हैं तथा कर्नाटक में कांग्रेस ने कुछ मास पहले ही सत्ता प्राप्त की है। इस बैठक की इस भावना की प्रशंसा की जा सकती है कि अपनी अनेक तरह की भिन्नताओं के बावजूद इसमें एक राजनीतिक स्वर सुनाई दिया है। भिन्न-भिन्न प्रदेशों में इन दलों का अक्सर राजनीतिक टकराव भी चलता रहा है। पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी पार्टी ममता बैनर्जी के शासन से अधिक परेशान नज़र आती है। इस संबंध में पार्टी के नेता सीता राम येचुरी ने यहां तक भी कहा है कि वह एक मंच पर ममता के साथ बैठने के लिए तैयार नहीं हैं।
इसी तरह पंजाब में प्रदेश कांग्रेस आम आदमी पार्टी के प्रशासन से बेहद परेशान दिखाई देती है, क्योंकि प्रतिदिन उनके किसी न किसी नेता को विजीलैंस के कटघरे में खड़ा होने के लिए विवश होना पड़ता है। इस संबंध में प्रदेश के बड़े नेता अपने केन्द्रीय नेताओं से मिले थे तथा उन्होंने किसी भी तरह अरविन्द केजरीवाल के साथ कोई गठबंधन या समझौता न करने संबंधी अपना पक्ष रख कर ऐसी संभावना पर नाराज़गी व्यक्त की थी। इसी तरह इस बैठक में बहुत-सी अन्य ऐसी पार्टियां भी शामिल हुईं, जो  सैद्धांतिक रूप से अलग-अलग दिखाई देती हैं परन्तु इस सब कुछ के बावजूद उनका एक स्वर होना ऐसा प्रभाव ज़रूर देता है कि वे आगामी वर्ष में होने जा रहे लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार के साथ पूरा मुकाबला करने के लिए स्वयं को मानसिक तौर पर तैयार कर रही हैं। बैंगलुरु की दूसरी बैठक में जो कुछ फैसले लिए गए हैं, उनसे यह प्रतीत होता है कि ये पार्टियां आगामी समय में बड़ी सीमा तक एकजुट रहने का यत्न कर सकती हैं। इसमें 11 सदस्यीय आपसी तालमेल कमेटी बनाने का फैसला करना, सम्भावित गठबंधन के एक नाम पर सहमति बनाना, अपना सांझा केन्द्रीय कार्यालय स्थापित करना, प्रचार तथा अन्य भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लिए समितियां बनाने की बात करना आदि क्रियाओं से इन राजनीतिक दलों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर एक राजनीतिक विकल्प खड़ा करने संबंधी गम्भीर प्रतिबद्धता दिखाई देती है।
इस बैठक में सैद्धांतिक पक्ष से भी भाजपा के दृष्टिकोण से भिन्नता पैदा करने का यत्न किया गया है तथा आगामी समय में लोकतांत्रिक नैतिक मूल्यों की रक्षा करना, भिन्न-भिन्न समुदायों के साथ एक समान व्यवहार करना तथा सभी समुदायों को साथ लेकर चलने की बात करने में बड़ा वज़न प्रतीत होता है। हम जहां इस दूसरी बैठक को प्रभावशाली समझते हैं, वहीं इस बात के संबंध में अभी भी आशंका बनी हुई है कि क्रियात्मक रूप में ये दो दर्जन पार्टियां कितने समय तक एक स्वर में रह सकेंगी। इसके लिए इन्हें आगामी समय में बेहद अनुशासन में रह कर कदम उठाने की ज़रूरत होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द