कड़े कानून व जागरुक्ता से रोकी जा सकती है पायरेसी 

जब पायरेसी की बात होती है तो फीचर फिल्मों और उससे जुड़े व्यापार की ही चर्चा होती है, बहुत हुआ तो पुस्तक प्रकाशन पर भी ध्यान चला गया। इनके लिए कानून भी हैं और कॉपीराइट कानून के उल्लंघन के मामलों में मुकद्दमेबाजी होती रहती है। बरसों बरस निकल जाते हैं इनका फैसला होने में और पीड़ित न्याय की आस लगाये शून्य में ताकता रहता है। फिल्म निर्माता तो अदालतों के चक्कर लगा भी लेता है और अपराधी को दण्ड दिलाने में कामयाब भी हो जाता है लेकिन लेखक की स्थिति दयनीय रहती है। उसका प्रकाशक भले ही लम्बी कानूनी प्रक्रिया से कुछ हासिल कर ले लेकिन रचनाकार नामक प्राणी को अक्सर अपनी बोलती को बंद ही कर लेना पड़ता है और वह निराश होकर अगली प्रति की रचना में जुट जाता है कि कदाचित इसमें उसके साथ धोखा न हो।
पायरेसी की विशाल दुनिया
फिल्म और लेखन के अतिरिक्त भी पायरेसी का शिकार होने वाली अनगिनत वस्तुएं हैं जिनसे होने वाला नुकसान आम आदमी को सहना पड़ता है। पायरेसी अर्थात् डुप्लीकेट या नकली सामान वह होता है जो किसी प्रचलित और प्रसिद्ध बांड की नकल कर बाज़ार में बिक्री के लिए उताया जाए। ट्रेडमार्क, पेटेंट यानी पहचान का कारोबार जिसे इस तरह पेश किया जाये कि यह फर्क करना मुश्किल हो कि कौन सी वस्तु असली है और कौन सी नकली। यह व्यापार पूरी दुनिया में होता है, शायद ही कोई देश हो जो इस व्यापार से अछूता हो और यह ऐसा ही नहीं कि थोड़े समय से चल रहा हो, बल्कि सदियों, शताब्दियों से चलता आ रहा है।
इस व्यापार को रोकने, नकली वस्तुओं की पहचान करने और उनके प्रचलन को प्रतिबंधित करने के अनेक उपाय किए जाते रहे हैं। कड़े कानून भी बनाये जाते रहे हैं। अनेक देशों में तो सज़ा और जुर्माना इतना अधिक है कि नकली सामान बनाने और बेचने के बारे में सोचने से भी डर लगे, लेकिन यह व्यापार फिर भी धड़ल्ले से चल रहा है। इसका कारण यह है कि इसमें मुनाफा बहुत अधिक है और लागत असली के मुकाबले काफी कम। लोभ-लालच के वशीभूत और उसकी बुनियाद पर टिका यह व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता है। अनुमान लगाइए कि एक ब्रांड बनाने में कितनी मेहनत और पैसा खर्च होता है। 
वर्षों की रिसर्च और एक पूरी टीम लगती है अपनी किसी कल्पना को साकार रूप देने में, तब कही जाकर ब्रांड वैल्यू बनती है। अब सोचिए कि यदि कोई रातोंरात उसके जैसा ही दूसरा प्रोडक्ट तैयार कर बाज़ार में उतार दे तो उस व्यक्ति या संस्थान का कितना नुकसान होता होगा। नकली सामान के दाम कम होने से ग्राहक भी उसे खरीदने के लोभ में आ ही जाता है। यह और बात है कि इस से ग्राहक की जान तक को खतरा हो सकता है। कोविड के दौरान नकली दवाइयों और दूसरी जीवन रक्षक सामग्री की बाढ़ सी आ गई थी। यह सब जानते हैं कि उत्पादन के मुकाबले मांग बहुत अधिक थी और इतनी अफरातफरी थी कि नकली-असली का भेद करना मुश्किल हो गया था। इस बीमारी ने जहां एक तबका अचानक करोड़पति बन गया, वहीं मरीज़ों को जीवन भर की अनेक बीमारियों से जूझना पड़ रहा है।
पायरेसी का एक बड़ा क्षेत्र कम्प्यूटर में विभिन्न कार्यों के लिए इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर का है। हार्डवेयर के मामले में तो नकली सामान से निजी या व्यावसायिक इस्तेमाल के लिये बनने वाले कम्प्यूटरों का बहुत बड़ा बाज़ार हमारे देश में चल ही रहा है, पाइरेटेड साफ्टवेयर के इस्तेमाल में भी हम अग्रणी हैं। ब्रांडेड सामान बहुत महंगा होने से ही ऐसा कारोबार पनपता है। साफ्टवेयर के मामले में यही वास्तविकता है। लाइसेंस वाला एडिटिंग, ग्राफिक्स और दूसरे कामों के लिये ज़रूरी सॉफ्टवेयर बहुत अधिक महंगा होने से अधिकतर लोग अपना काम चलाने के लिए डुप्लीकेट टूल्स का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि इसमें सबसे बड़ा खतरा कम्प्यूटर में वायरस आने का होता है जिसके कारण मेहनत से बनी फाइलें नष्ट हो सकती हैं और सब कुछ दोबारा करना पड़ सकता है। इसके बावजूद कीमतों में बहुत अंतर होने से डुप्लीकेट सॉफ्टवेयर का व्यापार और इस्तेमाल फायदे का सौदा लगता है।
कहने का अर्थ यह है कि कपड़ों, जूतों, प्रसाधन सामग्री, रसोई में इस्तेमाल होने वाले उपकरण, घरेलू फर्नीचर, स्टेशनरी, खेलकूद, निर्माण कार्यों में लगने वाली मशीनरी से लेकर लोहा, सीमेंट तक नकली मिल सकता है। इनका इस्तेमाल न केवल घातक है बल्कि अर्थव्यवस्था को भी गहरी चोट पहुंचाता है और काला धन जमा होने का बहुत बड़ा स्रोत है। यह सब सामान बिना बिलों के मिलता है और क्योंकि इसमें भ्रष्टाचार की असीमित संभावनायें हैं, सरकार भी इसकी रोकथाम के लिये सजग होने के स्थान पर आंखें मूंद लेती है। एक तरह से कहें तो सरकारी कर्मचारियों और नकली सामान बनाने वालों की कथित मिलीभगत से ही यह व्यापार सबसे ज्यादा पनपता है।
पायरेसी रोकने में सबसे बड़ी कमी हमारे कानूनों में भी है। इनमें दण्ड और जुर्माने का प्रावधान इतना असंगत है कि इस व्यापार से होने वाले मुनाफे की तुलना में यह न के बराबर है। कुछ हज़ार का जुर्माना, थोड़ी सी जेल से इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। इनका तंत्र बहुत मज़बूत होता है। इनके लिए उम्र कैद, फांसी, अनैतिक रूप से अर्जित सम्पत्ति पर कब्जा और उसकी सार्वजनिक नीलामी तथा इतना आर्थिक दण्ड हो कि दोबारा पायरेसी करने की इनमें हिम्मत ही न बचे। जब तक ऐसे प्रावधान नहीं होंगे तब तक इस बुराई से निजात पाना असंभव है। इस प्रकार की व्यवस्था बनाने के लिए कानून में संशोधन करने होंगे वरना इस में कमी आना तो दूर, रुकने की कोई उम्मीद करना व्यर्थ है।
पायरेसी पर तब तक नकेल नहीं कसी जा सकती जब तक कानून की सख्ती नहीं होगी और उपभोक्ताओं की मानसिकता नहीं बदलेगी। अगर हम यह संकल्प कर लें कि नकली और लुभावने प्रचार के प्रभाव से होने वाले नुकसान से खुद भी बचेंगे और दूसरों को भी यह बात समझाने की कोशिश करते रहेंगे, तब ही पायरेसी की बीमारी से बचा जा सकता है। अंत में इतना ही है कि कानूनों को सिर्फ बनाया जाना ही ज़रूरी नहीं है बल्कि उन पर अमल करने और करवाये जाने की व्यवस्था करना भी आवश्यक है।