वहीदा रहमान के अनसुने किस्से

गुरुदत्त हैदराबाद में एक फिल्म वितरक के दफ्तर में बैठे हुए थे, तभी बाहर शोर मचा, जिसका कारण मालूम करने पर उन्हें बताया गया कि एक तेलगु फिल्म (रोजुलु मराई) आयी है, जिसे लेकर दर्शक बहुत उत्साहित हैं। फिल्म में एक नई लड़की वहीदा रहमान ने एक गाने पर शानदार नृत्य किया है, जब भी फिल्म के सितारे स्टेज पर आते हैं तो दर्शक इसी नई लड़की को देखना चाहते हैं। लड़की का नाम सुनकर गुरुदत्त चौंके और बोले, ‘वहीदा रहमान? यह तो मुस्लिम नाम है। क्या वह उर्दू बोलती है?’ उन्हें बताया गया कि वह तेलगु और तमिल भी बोलती है। तब गुरुदत्त ने वहीदा रहमान से मिलने की इच्छा व्यक्त की। अगले दिन वहीदा रहमान अपनी मां के साथ वितरक के कार्यालय पहुंचीं। गुरुदत्त से आधे घंटे की मुलाकात रही। उन्होंने कुछ मामूली से सवाल उर्दू में मालूम किये, शायद यह देखने के लिए कि वहीदा रहमान हिंदी व उर्दू बोल सकती हैं या नहीं। इससे अधिक कोई बात नहीं हुई।
सिर्फ नाम सुनकर यह मुलाकात हुई थी। गुरुदत्त ने न तो तेलगु फिल्म देखी थी और न ही उन्हें मालूम था कि वहीदा रहमान कैमरा पर कैसी दिखायी देती हैं। खैर, इस पहली मुलाकात को तीन माह गुज़र गये। वहीदा रहमान गुरुदत्त का नाम तक भूल गईं और वापस मद्रास अपने घर चली गईं। फिर एक दिन बॉम्बे से एक फिल्म वितरक वहीदा रहमान के घर आया और उनसे बोला कि आप बॉम्बे आ जायें गुरुदत्त आपको अपनी फिल्म में लेना चाहते हैं। वहीदा रहमान की मां ने अपने दोस्तों से मशवरा किया। उन्हें बताया गया, ‘बॉम्बे में काम करने में कोई परेशानी नहीं है, लेकिन याद रखो आपकी बेटी गुलाम नहीं है। उनकी सभी शर्ते मत मान लेना। डरने की कोई बात नहीं है। अगर किसी चीज़ को न कहना हो तो न कह देना, बात न बने तो वापस चली आना।’ इस सलाह के साथ वहीदा रहमान अपनी मां और एक पारिवारिक दोस्त लिंगम के साथ 1955 के अंत में बॉम्बे आकर चर्चगेट स्थित रिट्ज होटल में रहने लगीं।
चूंकि वहीदा रहमान 18 वर्ष की नहीं हुईं थीं, इसलिए फिल्म ‘सीआईडी’ के करार पर उनकी तरफ से उनकी मां ने हस्ताक्षर करने के लिए कलम उठाया, लेकिन उससे पहले ही वहीदा रहमान ने समझौते में एक शर्त जोड़ने के लिए कहा। निर्देशक राज खोसला ने कहा, ‘नये लोग इस किस्म की मांग नहीं करते हैं, हस्ताक्षर करो।’ गुरुदत्त खामोश बैठे रहे। वहीदा रहमान ने कहा, ‘अगर मुझे कोई कोस्टयूम पसंद नहीं आयी तो मैं उसे नहीं पहनने की।’ गुरुदत्त खड़े हो गये और बोले, ‘मैं उस किस्म की फिल्में नहीं बनाता। क्या तुमने मेरी कोई फिल्म देखी है?’ वहीदा रहमान के मना करने पर उन्हें पहले ‘मिस्टर एंड मिसेज़ 55’ देखने के लिए भेज दिया गया, जो उन दिनों सिनेमाघरों में चल रही थी। वहीदा रहमान को कपड़ों में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगा, फिर भी वह कॉन्ट्रैक्ट में अपनी शर्त जुड़वाने पर बज़िद रहीं। राज खोसला ने गुरुदत्त की तरफ देखते हुए कहा,‘यह अजीब है गुरु, तुम इस लड़की की बात सुन रहे हो और कुछ नहीं बोल रहे। कोस्टयूम तो सीन की मांग के अनुसार होता है न कि एक्टर की मज़र्ी पर।’ वहीदा रहमान बोलीं, ‘मैं जब कुछ बड़ी हो जाऊंगी तो स्विमसूट पहनने का निर्णय ले सकती हूं, लेकिन अभी नहीं, अभी मुझे बहुत शर्म आती है।’ राज खोसला ने गुस्से में जवाब दिया, ‘अगर इतनी ही शर्मीली हो तो फिर फिल्मों में काम क्यों करना चाहती हो?’ वहीदा रहमान ने संयम में रहते हुए जवाब दिया, ‘मैं अपनी मज़र्ी से यहां नहीं आयी, आपने यहां मुझे बुलाया है।’ उस दिन कोई फैसला नहीं हुआ, लेकिन अगले दिन वहीदा रहमान की शर्त को शामिल करते हुए गुरुदत्त फिल्म्स के साथ तीन वर्ष का अनुबंध हो गया।
वहीदा रहमान नाम का अर्थ है ‘ईश्वर की विशिष्ट कृपा’ और वास्तव में वहीदा रहमान का जो करियर व जीवन रहा है वैसा कम ही एक्टर्स को नसीब हुआ है। 17-वर्ष की आयु में गुरुदत्त द्वारा खोजे जाने से बॉलीवुड की सफल स्टार बनने तक और फिर एक दिन सब कुछ छोड़कर अपने पति शशि रेखी (कभी-कभार के एक्टर) और बच्चों (सुहैल व काश्वी) के साथ बेंगलुरु के अपने फार्म पर रहने तक वहीदा रहमान ने सब कुछ किया है। सत्यजित रे उन्हें लेकर ‘गाइड’ बनाना चाहते थे। यह हो न सका तो देवानंद ने यह फिल्म बनायी और अपने भाई चेतन आनंद से लड़ बैठे जो प्रिया राजवंश को रोज़ी के किरदार में देखना चाहते थे, लेकिन देवानंद वहीदा रहमान को ही रोज़ी की अमर भूमिका देना चाहते थे और यही निर्णय सही भी निकला। इसके अतिरिक्त वहीदा रहमान के गुलाबो व शांति किरदार भी आज तक चर्चित रहे।
हालांकि बॉलीवुड में दोस्ती दिखावे व मतलब की अधिक होती हैं, लेकिन वहीदा रहमान की नर्गिस, सुनील दत्त, नंदा, साधना, हेलन व आशा पारिख से दोस्ती की मिसालें दी जाती हैं। वह अब 85 साल की हो गईं हैं, फिर भी हेलन व आशा पारिख के साथ खूब सैर सपाटे पर जाती हैं और जिंदा दिली से अपना जीवन व्यतीत करती हैं। फिल्म ‘राम और श्याम’ की शूटिंग के दौरान मद्रास में उनकी शादी दिलीप कुमार से होते होते रह गई थी और उसके बाद दिलीप कुमार सायरा बानो के संग चले गये और वहीदा रहमान ने शशि रेखी (कमलजीत) से शादी कर ली, जिनके साथ उन्होंने फिल्म ‘शगुन’ में काम किया था, जिसका चर्चित गाना (तुम अपना रंजो गम अपनी परेशानी मुझे दे दो) एक तरह से उनके जीवन का हिस्सा बन गया। लेकिन वहीदा रहमान की कोई कहानी गुरुदत्त से उनके ‘संबंध’ के चर्चे के बिना अधूरी है। गुरुदत्त की 1964 में मात्र 39-वर्ष की आयु में संदिग्ध स्थितियों में मृत्यु हो गई थी। कुछ का कहना है कि वह अपनी पत्नी गीता दत्त के कारण डिप्रेशन में थे, इसलिए उन्होंने आत्महत्या की, कुछ कारण वहीदा रहमान से अधूरे प्रेम को बताते हैं। वहीदा रहमान अपने प्राइवेट जीवन को प्राइवेट रखना चाहती हैं, इसलिए अटकलों पर विराम नहीं लग रहा है।
बहरहाल, वहीदा रहमान ने अपने व्यक्तित्व व अभिनय से अनगित लोगों को अपना प्रशंसक बनाया है, जिनमें विशेष रूप से शामिल हैं निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा जो उन्हें अपनी हर फिल्म में लेना चाहते हैं और पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेट कप्तान व प्रधानमंत्री इमरान खान, जिन्हें वहीदा रहमान जैसी पत्नी चाहिए थी, नहीं मिली तो एक के बाद एक तीन शादी कर बैठे। 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर