समय की पाबंदी

शाम कब की ढल चुकी थी। एक लंगड़ा भिखारी किसी बाज़ार से गुजर रहा था। उनकी नज़र जैसे ही अपने भिक्षा-पात्र पर पड़ी, तो उसके होश गुम हो गए। क्योंकि उसमें इतने पैसे नहीं आए थे, जिनसे वह रात का भोजन कर सके। परिस्थिति की गंभीरता पर काफी देर तक माथापच्ची करने के बाद उसने निर्णय लिया कि भविष्य में वह जंगली फल-फूल खाकर ही गुजारा कर लेगा।
अगले सुबह उसने जंगल का रास्ता पकड़ लिया। काफी दूर जाने के बाद उसने पाया कि उसके आगे-आगे एक अधेड़ आदमी जा रहा था। भिखारी उसकी ओर तेजी से लपका, ताकि वह व्यक्ति उसकी फटेहाली देखकर शायद कुछ मदद कर दे। पास ही में एक पुराना मंदिर था। उसकी ओर उस व्यक्ति ने देखकर कहा, ‘वाह, इतना पुराना होने पर.... भी इसकी सुंदरता ज्यों की त्यों हैं.... कल ही से मैं प्रतिदिन यहां प्रसाद चढ़ाने आया करुंगा!’
‘प्रसाद’ का नाम सुनते ही भूखे भिखारी के मुंह में पानी आ गया। उसने भी मन ही मन तय कर लिया कि वह भी मंदिर में प्रतिदिन आया करेगा। भगवान का भजन-पूजन होगा ही, भूख मिटाने के लिए प्रसाद की भी व्यवस्था होने वाली है। दर-दर भटकन से अच्छा है कि एक ही जगह टिक कर रहा जाए।
अपने निर्णय के अनुसार वह व्यक्ति प्रतिदिन मंदिर में प्रसाद चढ़ाने आने लगा। भिखारी भी नियमित रुप से वहां प्रसाद खाने चला आता था। इस बात से वह व्यक्ति अनजान था। वह सोचता कि भगवान उससे प्रसन्न होकर उसके द्वारा चढ़ाए गए प्रसाद को ग्रहण कर लेते हैं।
वर्षों तक यह क्रम चलता रहा। एक दिन अचानक वह व्यक्ति बीमार पड़ गया, इसलिए प्रसाद चढ़ाने नहीं आ सका। परंतु भिखारी अपने नियमानुसार उस दिन भी मंदिर में उपस्थित हुआ। भगवान के सामने प्रसाद का भोग न देखकर उसे घोर निराशा हुई कि आज उसे भूखा ही लौट जाना पड़ेगा। और वह फूट-फूट कर रोने लगा। रोने की आवाज़ सुनकर भगवान प्रसन्न हुए और प्रकट होकर बोले, ‘समय के प्रति तुम्हारा अटूट लगाव देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूं... तुम जो वरदान चाहो, मांग लो!’
भिखारी भगवान के चरणों में लेट कर गुहार लगाता, ‘हे दया निधान, मैंने आपका पवित्र प्रसाद खाकर घोर पाप किया है... लेकिन, भूख से विवश होकर ही मैं इस पाप कार्य में रत हुआ था। मुझे क्षमा करें, भगवन्!’
भगवान बोले, ‘वत्स! तुम्हारे सत्य वचन और आंसुओं से सारे पाप धुल चुके हैं... तुम्हें मैं प्रसन्न होकर वरदान देना चाहता हूं, ‘बोलो, क्या मांगते हो?’
भिखारी ने गद्गद् होकर कहा, ‘प्रभू, यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं, तो मुझे मेरा पैर वापिस दे दीजिए, ताकि मैं परिश्रम से जीवन यापन कर सकूं!’
भगवान की कृपा से उसी पल भिखारी का लंगड़ा पैर ठीक हो गया। वह खुशी-खुशी अपने घर लौट गया और परिश्रम से आनंद पूर्वक जीवन बिताने लगा। 

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