देश को ‘भारत’ के नाम से जानना स्वागत योग्य कदम

 

भारत संभवत: दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जिसके संविधान द्वारा प्रदत्त दो नाम है। दुर्भाग्य से संविधान बनने के समय भारत का ब्रिटिश विरासत से मिला नाम ‘इंडिया’ भी जारी रखा गया। यही नहीं इसे संवैधानिक प्रावधान भी मुहैय्या कराया गया, लेकिन मौजूदा केन्द्र सरकार ने वाकई देश के लोगों को तब एक सुखद आश्चर्य से भर दिया, जब उसने पिछले दिनों नई दिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन के मौके पर भारत आये विभिन्न देशों के शीर्ष नेताओं को स्वत:स्फूर्त ढंग से अवगत कराया कि अब इस महान देश का नाम ‘इंडिया’ नहीं ‘भारत’ है। अब यह इसी नाम से जाना जायेगा। हालांकि इंडिया को भारत के रूप में बदले जाने की मांग नई नहीं है। उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा एक बार इस संबंध में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर चुकी है। फिल्म अभिनेत्री कंगना रानौत ने भी साल 2021 में देश को ‘भारत’ नाम से ही जानने की मांग उठायी थी तथा साल 2012 में देश की संसद के निचले सदन लोकसभा में इस संबंध में एक निजी विधेयक भी आया था। इसलिए जो लोग इसे अचानक और चुपके से नाम बदलने की बात कह रहे हैं, उन्हें इन सब तथ्यों को भी जान लेना चाहिए।
गौरतलब है कि हमारे पड़ोस के दो देशों श्रीलंका और म्यांमार ने सालों पहले ही खुद को ब्रिटिश गुलामी से तब मुक्त कर लिया था, जब सिलोन ने फिर से अपना नाम श्रीलंका और बर्मा ने म्यांमार किया। भारत सरकार को अब सभी भारतीय शहरों की रोमन लिपि में ब्रिटिश शासन काल के दौरान विकृत की गई वर्तनी को भी सुधारने का काम करना चाहिए, जैसा कि कुछ शहरों जैसे जालन्धर और शिमला के मामले में किया गया है, लेकिन मेरठ, बरेली और खुद राजधानी दिल्ली अभी भी ब्रिटिश शासन काल की विकृत वर्तनी से ही जूझ रहे हैं। इन सभी शहरों की रोमन लिपि में उनकी वास्तविक वर्तनी नहीं है, जो नाम उच्चारित किया जाता है। उदाहरण के लिए दिल्ली, जिसे देहली कहा जाना चाहिए, जिसका हिंदी में मतलब प्रवेश होता है, उसे अंग्रेज़ी में डेल्ही  कहा जा रहा है। भाजपा सांसद विजय गोयल ने 24 जुलाई, 2019 को राज्यसभा में दिल्ली के नाम की वर्तनी को बदलने की मांग तो उठायी थी। ‘दिल्ली’ अपने आप में एक तोड़ा-मरोड़ा नाम है। इसे हर तर्क से देहली ही किया जाना चाहिए जो वर्तमान में अंग्रेज़ी में डेल्ही लिखा जाता है। गौरतलब है कि बांग्लादेश और चीन ने अपनी राजधानियों ढाका और बीजिंग की रोमन वर्तनी को सही किया है। इसके पहले ढाका को रोमन में स्पेलिंग डीएसीसीए यानी डक्का लिखा जाता था, पढ़ा भले ढाका जाता था। साल 1982 में बांग्लादेश ने आधिकारिक तौर पर इसे बदल दिया।
नाम बदलने के संबंध में केंद्र सरकार को पश्चिम बंगाल द्वारा अपना नाम बदलकर ‘बांग्ला’ किये जाने के सालों से लंबित विधानसभा के प्रस्ताव को भी स्वीकार करना चाहिए क्योंकि अभी तक जिस तरह राज्य का नाम पश्चिम बंगाल है, उससे नई पीढ़ी इस उलझन में रहती है कि देश के पूर्वी हिस्से के एक राज्य का नाम आखिर पश्चिम उपसर्ग से क्यों लिखा जा रहा है? चूंकि प्रस्तावित नाम एक शब्द वाला होगा, इसलिए उसे देश के दूसरे राज्यों के संक्षिप्त नामों जैसे एपी, यूपी, एचपी, एमपी और यूके जैसा किया जा सकेगा। हालांकि संक्षिप्तीकरण में भी एक नियम बनाकर एक ही जैसे दो संक्षिप्त नामों में स्पष्टता लाने की कोशिश करनी चाहिए। जैसे एपी से आंध्र प्रदेश भी बन सकता है और अरुणाचल प्रदेश भी। इसलिए दोनो के नामों में पहचान की स्पष्टता रहे, इसलिए एक निश्चित संक्षिप्तीकरण भी अलग से चुना जाना चाहिए।
संविधान में इस तरह का संशोधन भी आवश्यक हो गया है, जिससे राज्यों या शहरों के नाम पर उच्च न्यायालयों सहित सभी संस्थानों के नाम राज्य या शहर के नामों के साथ ही स्वत: बदल जाएं। जैसे दशकों पहले बम्बई बदलकर मुम्बई हो चुका है और मद्रास बदलकर चेन्नई, लेकिन आज भी बॉम्बे हाईकोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट जैसे नाम चल रहे हैं। इसी तरह भारत में एक ही नाम के बहुत सारे शहर हैं। जैसे- रामपुर को ही लें, देश में 32 छोटे, मझोले शहरों और कस्बों का नाम रामपुर है। इसी तरह बिलासपुर हिमाचल प्रदेश में भी है और छत्तीसगढ़ में भी। इन नामों में थोड़ा बहुत फेरबदल करके इन्हें विशेष बनाया जाना चाहिए, ताकि लोग भ्रम से बच सकें। साल 2020 में तमिलनाडु सरकार ने एक ही बार में एक हज़ार से अधिक शहरों, कस्बों और गांवों के नामों की वर्तनी को सही किया था, ब्रिटिश शासन के दौरान जिन्हें सत्ता द्वारा अपनी सुविधा के लिए विकृत कर दिया गया था।
सुधार का सिलसिला बड़ी सजगता से चलाया जाना चाहिए जैसे नई दिल्ली में राजमाता विजयराजे सिंधिया और श्रीमंत माधवराव सिंधिया मार्ग जैसे नामों में जो राजशाही ‘उपसर्ग’ लगे हैं, उन्हें भी हटाया जाना चाहिए। इनसे सामंतशाही की बू आती है। आखिर सम्राट पृथ्वीराज चौहान के नाम पर बनी सड़क को हम सिर्फ  ‘पृथ्वीराज रोड’ के नाम से ही जानते हैं। उसी तरह इन नामों को भी होना चाहिए। अगर भोपाल में एक सड़क का नाम सिर्फ  माधवराज सिंधिया रखा जा सकता है तो नई दिल्ली में ऐसी क्या मजबूरी है कि सड़क के नाम पर ‘श्रीमंत’ जैसा उपसर्ग लगाया ही जाए? दुर्भाग्य से सड़कों के नाम में भी गैर-जरूरी दोहराव है और यह कहीं दूर नहीं बल्कि संसद की नाक के नीचे ही है। मसलन संसद मार्ग को अंग्रेज़ी में ‘पार्लियामेंट स्ट्रीट’ भी कहा जाता है, तो यह एक ही सड़क के दो नाम हो गये। यह सही नहीं है। सड़कों को समान रूप से मार्ग के रूप में ही जानना चाहिए। जैसे कोलकाता में सभी सड़कों के नामों को ‘सरणी’ के रूप में जाना जाता है, मुंबई में ‘पथ’ और चेन्ई में ‘सलाई’ के रूप में जाना जाता है। रोमन में भी यही लिखा जाता है। इसलिए दिल्ली में एक साथ मार्ग, रोड़ या स्ट्रीट का चलन सही नहीं है।
हालांकि देश को भारत के नाम से जानने के बाद संस्थानों का नाम बदलते समय इन्हें हिंदी के अलावा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी रखने का प्रयास किया जाना चाहिए, तभी यह पहल पूरी तरह से सार्थक होगी।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर