संसद में आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए

नये भारत के नये संसद भवन के पहले विशेष सत्र में दक्षिण दिल्ली से भाजपा के सांसद रमेश बिधूड़ी ने अमरोहा से बसपा सांसद दानिश अली के विरुद्ध जिस अपमानजनक व आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया, वह वास्तव में हेट स्पीच के दायरे में आती है। रमेश बिधूड़ी की इस अशोभनीय हरकत से संसद की गरिमा को तो ठेस पहुंची ही है, पूरा देश भी शर्मसार हुआ है, लेकिन इससे भी अधिक निंदनीय यह है कि जिस समय रमेश बिधूड़ी हाउस के फ्लोर पर अपशब्दों का प्रयोग कर रहे थे, तो उन्हें चुप कराने की बजाय भाजपा के दो वरिष्ठ सांसद न सिर्फ हंस रहे थे बल्कि डेस्क थपथपा रहे थे। भारत के संसदीय इतिहास में रमेश बिधूड़ी की यह हरकत अप्रत्याशित है। लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला को उनके विरुद्ध त्वरित अनुशासनात्मक कार्यवाही करनी चाहिए थी ताकि भविष्य में कोई सदस्य इस प्रकार का दुस्साहस दोहराने के बारे में सोचे भी नहीं, लेकिन अफसोस! इस लेख के लिखे जाने तक रमेश बिधूड़ी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई थी, जबकि हाल के दिनों में देखा गया है कि मामूली व नज़रंदाज़ करने योग्य बातों पर ही विपक्ष के सांसदों को तुरंत निलम्बित कर दिया जाता है। 
बहरहाल, अब कांग्रेस, एनसीपी, तृणमूल और द्रमुक के नेताओं ने लोकसभा स्पीकर को अलग-अलग पत्र लिखकर इस मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेजने का आग्रह किया है। कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, एनसीपी की सुप्रिया सुले, द्रमुक की कनीमोझी और तृणमूल के अपरूपा पोद्दार ने अपने अपने पत्रों में रमेश बिधूड़ी के विरुद्ध नियमानुसार सख्त कार्यवाही करने की मांग करते हुए कहा है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे विशेषाधिकार समिति को सौंपना चाहिए। दूसरी ओर बसपा की राष्ट्रीय प्रमुख मायावती ने लखनऊ में कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा ने रमेश बिधूड़ी के खिलाफ अभी तक उचित कार्यवाही नहीं की है। गौरतलब है कि भाजपा ने कहा है कि पार्टी नेतृत्व ने रमेश बिधूड़ी को चेताया है और उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है, जिसका उन्हें दस दिन के भीतर जवाब देना है। लेकिन साथ ही भाजपा ने विपक्षी पार्टियों से पूछा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ 90 से अधिक बार अपशब्दों का प्रयोग करने के लिए अपने नेताओं के विरुद्ध क्या कार्यवाही की है? 
अपने सांसद को अनुशासित करने के लिए भाजपा द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी करना तो समझ में आता है, लेकिन प्रधानमंत्री की आड़ लेकर रमेश बिधूड़ी की निंदनीय हरकत को अप्रत्यक्ष रूप से न्यायोचित ठहराने का प्रयास एक गंभीर मुद्दे को हल्का करना मात्र है। दो गलतियां मिलकर एक सही बात नहीं हो जाती हैं। मायावती की मांग भी बेतुकी-सी है। वह भाजपा से ‘उचित कार्यवाही’ की मांग क्यों कर रही हैं? जबकि यह मामला संसद के भीतर का है और मांग लोकसभा स्पीकर व केंद्र सरकार से होनी चाहिए। वैसे तो मांग भी नहीं होनी चाहिए और स्पीकर को स्वयं ही अविलम्ब कार्यवाही अभी तक कर देनी चाहिए थी। ध्यान रहे कि दानिश अली ने कहा है कि अगर रमेश बिधूड़ी के खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई तो वह लोकसभा की सदस्यता छोड़ने पर विचार करेंगे; क्योंकि जनता ने उन्हें ‘हेट स्पीच’ सुनने के लिए नहीं चुना है। दानिश अली के अनुसार, ‘मैंने स्पीकर को लिखा है और मुझे उम्मीद है कि एक्शन लिया जायेगा। यह हेट स्पीच से कम नहीं है। यह हाउस के फ्लोर पर हेट स्पीच है। पहले संसद के बाहर हेट स्पीच दी जा रही थीं, लेकिन अब भाजपा का सांसद हाउस के फ्लोर पर हेट स्पीच दे रहा है ...यह क्या है?’
दानिश अली ने कुछ बुनियादी व उचित प्रश्न उठाये हैं। चुनावी राजनीति ने हमारे समाज में नफरत का ज़हर-सा घोल दिया है और इस आग में घी डालने का काम कुछेक कथित टीआरपी लोभी चैनल कर रहे हैं जो महंगाई, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य आदि जनता के मुद्दे तो उठाते नहीं हैं, उन्हें इससे भी कोई मतलब नहीं है कि कैग की नवीनतम रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के क्या खुलासे हुए हैं, बस दिन रात हिन्दू-मुस्लिम डिबेट करनी हैं और आपराधिक घटनाओं में भी सांप्रदायिक एंगल तलाश करना है। धर्म के स्वयंभू ठेकेदार खुले आम हेट स्पीच दे रहे हैं। 
सुप्रीम कोर्ट हेट स्पीच व कथित सांप्रदायिक चैनलों पर अंकुश लगाने की बातें दोहराता रहता है, लेकिन किसी के कान पर जूं ही नहीं रेंग रही। इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सड़कों की नफरती बयानबाज़ी संसद में भी गूंज उठी।
लोकसभा में 21 सितम्बर, 2023 की रात को चंद्रयान-3 मिशन की सफलता पर चर्चा हो रही थी कि रमेश बिधूड़ी ने दानिश अली के खिलाफ आपत्तिजनक बातें कहीं। इस पर विपक्ष ने हंगामा किया तो रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ‘अगर सांसद की टिप्पणी से विपक्ष आहत हुआ है, तो मैं खेद व्यक्त करता हूं’। क्या सांसद की टिप्पणी से केवल विपक्ष ही आहात हुआ? नहीं। नई संसद की शुरुआत के पहले दिन प्रधानमंत्री ने कहा था कि भवन बदला है तो भाव बदलना चाहिए और उन्होंने सांसदों के व्यवहार को लेकर आश्वासन भी दिया था, लेकिन तीन दिन के भीतर ही मोदी की पहल को रमेश बिधूड़ी ने धूमिल कर दिया। हालांकि संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत संसद में कही गई किसी भी बात के लिए कोई सांसद किसी अदालत में जवाबदेह नहीं होता है, लेकिन लोकसभा में प्रोसिजर एंड कंडक्ट ऑफ बिज़नस के नियम 380 के तहत स्पीकर को कार्रवाई करने का अधिकार है, जो उन्हें तुरंत करनी चाहिए ताकि फिर ऐसी शर्मनाक हरकत देखने को न मिले।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर