सरल कर व्यवस्था से चोरी भी रुकेगी, राजस्व भी बढ़ेगा

भारत में जटिल कर व्यवस्था छह दशक पुराने आयकर अधिनियम 1961 में किये गये कई संशोधनों और कई भ्रामक पैबंदों के साथ लागू है। ठीक इसी तरह 1 जुलाई, 2017 से जो वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) अधिनियम को लागू किया गया, वह भी अनेक सुधारात्मक कदमों के साथ लगातार जीएसटी कर संरचना को बदले जाने वाली परम्परा का रूप दिये हुए है, जिससे बहुत सारे भ्रम अनेक जटिल प्रावधानों के साथ समस्या बने हुए हैं। वास्तव में एक नई कर व्यवस्था लागू की जानी चाहिए, जो हमें कर प्रणाली संबंधित कई तरह की परेशानियों और जटिलताओं से बचा सके, क्योंकि दुनिया के अधिकांश देशों के अनुरूप हमने भी उच्चतम 30 प्रतिशत की जो कर दर राजा चेलैय्या समिति की सिफारिशें पर शुरू की थी, जिसने काले धन के सफेद धन में बदलने की कोशिशें लगभग समाप्त कर दी थीं, वह फायदा उप-कर और अधिभार लगाते रहने के कारण करीब-करीब खत्म हो गया है। अत: किसी भी खुलासा की गई आय पर 30 प्रतिशत का उच्चतम स्लैब बहाल किया जाना चाहिए ताकि लोगों को अपनी पूरी आय का खुलासा करना यानी उसे किताब में लाना फायदेमंद लगे। साथ ही एक स्थायी स्वैक्षिक योजना शुरु की जानी चाहिए, जिसके तहत कर रिटर्न में आय के स्रोत के खुलासे की बाध्यता न हो।
इसे विशेष रूप से सम्पत्ति-सौदों में नगद लेन-देन के मामले में ध्यान में रखा जाये। अगर सम्पत्ति-सौदों पर पंजीकरण शुल्क भी घटाकर 3 फीसदी कर दिया जाए, साथ ही 30 प्रतिशत स्लैब के तहत अपनी आय का खुलासा करने वाले सभी लोगों के नाम वेबसाइट पर मौजूद हों, जिससे दूसरे लोग भी प्रेरित होकर इस छूट का फायदा उठा सकें, तो देश की कर व्यवस्था के लिए बहुत अच्छा होगा। दान, चंदा, राजनीतिक दलों को दिया गया योगदान और यहां तक कि कृषि आय जिसका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जाता है, जैसी तमाम कर छूटों को समाप्त कर दिया जाना चाहिए। समग्रता में 5 लाख रुपये तक की छूट की घोषणा की जानी चाहिए क्योंकि सामान्य किसान हर साल 5 लाख रुपये से ज्यादा नहीं कमाता। कृषि आय में कर छूट का फायदा जानी-मानी हस्तियां अपनी बेहिसाब आय को कृषि आय के रूप में घोषित करके फायदा उठाती हैं। यह आमतौर पर व्यवहारिक रूप से बिना किसी उद्देश्य के लिए गांवों में खरीदी गई ज़मीनों के माध्यम से होता है। कृषि उपज में 5 से 10 लाख और 10 से 15 लाख के बीच की आय के लिए आयकर स्लैब क्रमश: 10 और 20 फीसदी हो सकते हैं, उसके बाद की आय के लिए 30 प्रतिशत के स्लैब का प्रावधान उचित होगा। इस बात पर भी गौर फरमाना होगा कि टैक्स और कारपोरेट ऑडिट के लिए अलग-अलग मूल्यहृस-नियम रखना हास्यस्पद है। एकल एवं एकीकृत कर एवं कारपोरेट ऑडिट होना चाहिए।
छोटे नकद लेन-देन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय 10 हज़ार रुपये से ऊपर की सभी खरीद बिक्री को अनिवार्य रूप से बैंक लेन-देन के माध्यम से सुनिश्चित करना चाहिए। इसके लिए क्रेडिट कार्ड पर लेन-देन शुल्क को घटाकर केवल आधा प्रतिशत किया जाना चाहिए और इसे जीएसटी से मुक्त होना चाहिए। इस आधा प्रतिशत शुल्क को भी केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाना चाहिए। इसके साथ ही क्रेडिट कार्ड के माध्यम से की गई खरीदारी पर सभी तरह के प्रोत्साहन समाप्त करने चाहिए। क्रेडिट कार्ड पर वर्तमान उच्च 2 प्रतिशत लेन-देन शुल्क व्यापारियों को ग्राहकों से अलग से पैसे लेने के लिए मजबूर करता है। खासकर जहां व्यापार मार्जिन काफी कम है। केंद्र सरकार द्वारा आधा प्रतिशत लेन-देन शुल्क वहन करने की तुलना में इस प्रणाली से कहीं ज्यादा राजस्व प्राप्त होगा। क्रेडिट कार्ड जारी करने वाले बैंकों को भी क्रेडिट कार्ड का कई गुना ज्यादा उपयोग बढ़ जाने के कारण आधा प्रतिशत लेन-देन में भी बहुत कमाई होगी। 
सरकार को ऐसे डीलरों के विरूद्ध सख्त कारवाई करनी चाहिए, जो क्रेडिट/डेबिट कार्ड से भुगतान को इन्कार करें। विनिर्माण के क्षेत्र में इनपुट टैक्स क्रेडिट भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा ज़रिया है। आम ग्राहकों द्वारा छोड़े गये जीएसटी चालान व्यापारियों द्वारा झूठे इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाने के लिए बेचे जाते हैं। व्यापारियों द्वारा वास्तविक उपभोक्ताओं के बचे हुए जीएसटी चालान खरीदने वालों को नकद भुगतान किया जाता है, जिससे नकद मुद्रा ज्यादा प्रचलन में आती है। यही कारण है कि विमुद्रीकरण का मूल उद्देश्य विफल हो गया। मुद्रा प्रचलन में अनुमानित कमी आने की बजाय यह बढ़ी है। वास्तव में अत्यधिक इनपुट टैक्स क्रेडिट के झूठे दावों से बचने के लिए निर्माताओं द्वारा इनपुट टैक्स क्रेडिट के लिए किए गए दावों की अनिवार्य रूप से फॉरेंसिक ऑडिट होनी चाहिए। इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि 18 प्रतिशत जीएसटी स्लैब को समाप्त करने के साथ क्या इनपुट टैक्स क्रेडिट को विनिर्माण/उत्पादक क्षेत्रों से पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है? साथ ही क्या इसे केवल व्यापार योग्य वस्तुओं पर बरकरार रखा जा सकता है।
नई जीएसटी कर संरचना प्रस्तुत की जानी चाहिए, जिसमें 6,12 और 30 प्रतिशत के केवल तीन टैक्स स्लैब हो सकते हैं, जो वर्तमान में मौजूद सभी जीएसटी को समाप्त कर देंगे। भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जहां कई तरह की जीएसटी दरें हैं। इस पर भी धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए 6 और 12 प्रतिशत के स्लैब को 10 प्रतिशत की स्लैब से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। 
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