हर ढंग से मानवीय संहार रोका जाए

‘इज़रायल-गाज़ा पट्टी’ में विगत तीन सप्ताह से पैदा हुआ दुखांत और भी लम्बा होता जा रहा है। यह और कितना लम्बा होगा और इसके कितने भयानक परिणाम निकलेंगे इसके बारे में अभी अनिश्चितता बनी हुई है। वैसे तो यह दुखांत 75 वर्ष पहले ही शुरू हो गया था, जब 1948 में यहूदियों के लिए अलग देश ‘इज़रायल’ बनाने का ऐलान किया गया था। इसको लेकर यहां से निकले फिलिस्तीनियों और कई अन्य अरब देशों ने इस नए बने देश के साथ युद्ध भी लड़े लेकिन वह अपने लक्ष्य में सफल न हो सके। दशकों तक हुई लगातार खूनी कशमकश में ऐसा लग रहा है कि इज़रायल को अरबों और फिलिस्तीनियों द्वारा बड़ी चुनौतियां दे सकना अभी भी मुश्किल ही है। यह भी कि जो संगठन इसके अस्तित्व को मिटाने की कसम खाई बैठे हैं, उनका भी अब तक बड़ा नुकसान हो चुका है। अब तक ज्यादातर अरब देश इज़रायल के अस्तित्व को मान चुके हैं लेकिन इरान, लेबनान, सीरिया और कई अन्य अरब देश अभी भी इज़रायल का अस्तित्व मिटाने की पूरी ताकत लगा रहे हैं। 
 अब तक इस लम्बे खूनी सफर में जो बातें उभर कर सामने आई हैं, उनमें यह एक है कि इज़रायल एक मज़बूत शक्ति बन कर उभरा है, लेकिन इस धरती से उखाड़े 20 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनी अभी तक भी अपने आपको स्थापित करने में सफल नहीं हो सके। इनमें से अधिकतर बहुत कष्टदायक ज़िंदगी व्यतीत कर रहे हैं और अभी भी कर रहे हैं। बड़ी संख्या में अरब देशों में अब तक शरणार्थी बन कर रह रहे हैं। गाज़ा पट्टी जो सिर्फ 40 किलोमीटर लम्बी और 7 किलोमीटर चौड़ी है, में इनकी संख्या 23 लाख के करीब आंकी की गई है। इनको तीन तरफ से इज़रायल ने घेरा हुआ है और एक तरफ मिस्र की सीमा लगती है। चाहे समय के व्यतीत होने के सात यहां हमास जैसे सख्त और हमेशा ही इज़रायल के लिए चुनौती बने संगठन ने कब्ज़ा कर लिया है। यहीं से वह इज़रायल के विरुद्ध अपनी कार्रवाई करते रहते हैं लेकिन इस मज़बूत संगठन के साथ यहां रहते लाखों ही फिलिस्तीनियों का जीवन ज़रूरतों-कमियों तथा चौतरफा घिरे हुए होने के कारण नरक बना हुआ है। इज़रायल ने अपने बचाव के लिए बड़े अवरोधक लगा कर इनकी घेराबंदी की हुई है, यहां तक कि खाद्य पदार्थों के अतिरिक्त अन्य बहुत-सा सामान भी इज़रायल की अनुमति से ही यहां पहुंचता है। अरब देशों में इज़रायल के अस्तित्व को मानना, इसके साथ समझौता करके चलने की दुविधा सदा बनी रही है और इसके साथ इसे खत्म करने की इन देशों में चालें भी चलीं जाती रही हैं। इसी क्रम में ही इस नये खूनी टकराव को देखा जा सकता है। 7 अक्तूबर के हमास द्वारा इज़रायल पर हज़ारों राकेटों से हमला आरंभ किया गया। इसकी मज़बूत सीमाएं लांघ कर आम लोगों, महिलाओं तथा बच्चों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई गईं, जिसमें लगभग 1400 इज़रायली मारे गए। इसके अतिरिक्त हमास द्वारा 200 से अधिक पुरुषों, महिलाओं व बच्चों को अगवा करके गाज़ा पट्टी में लाया गया। इसकी प्रतिक्रिया के रूप में शुरू हुआ युद्ध लगातार तेज़ और खूनी बनता जा रहा है, जिसमें आज विश्व के बहुत-से देश किसी न किसी रूप में शामिल होते रहे हैं, जिस कारण इस लड़ाई के और भी फैल जाने की आशंका बन गई है। परन्तु इस समय सबसे बड़ा मामला गाज़ा पट्टी में रहते आम फिलिस्तीनियों को बचाने का है, वहां इज़रायल द्वारा सख्त घेराबंदी करके खाद्य पदार्थों सहित हर तरह के सामान की आपूर्ति को रोका जा रहा है। 
इज़रायल द्वारा लगातार बमबारी करके यहां के बहुत-से हिस्सों को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया है, जिससे अब तक हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं। उनके पास खाद्य पदार्थों, पानी तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की बेहद कमी हो गई है। डीज़ल खत्म होने से यहां पूरी तरह अंधेरा छा चुका है। अस्पतालों में घायलों का कोई उपचार नहीं हो रहा। वहां कोई भी स्थान सुरक्षित नहीं रहा। इतना बड़ा मानवीय दुखांत घटित हो रहा है, परन्तु विश्व भर के देश इसे रोकने के लिए कुछ भी करने में असमर्थ हैं। मानवता के होते संहार को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र सहित सभी बड़े तथा प्रभावशाली देशों का यह पहला फज़र् बन जाता है कि वह हो रही इस भयानक तबाही तथा घटित हो रहे बड़े दुखांत को एकजुट होकर खत्म करने के लिए पूरी तरह यत्नशील हों। मर रही मानवता को बचाने के लिए आज यही उनका पहला फज़र् होना चाहिए।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द