बेहद भयावह है संयुक्त राष्ट्र की भू-जल रिपोर्ट

भारत में जल संकट लगातार गहराता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की भू-जल विषयक एक नई रिपोर्ट का गहनता से अध्ययन करें तो पाएंगे कि भारत विश्व में भू-जल का सबसे अधिक उपयोग करने वाला देश है। संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार अगले दो साल में भारत में भू-जल की बेहद कमी होने वाली है। रिपोर्ट के अनुसार भू-जल का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। भारत में सिंधु-गंगा के मैदान के कुछ क्षेत्र पहले ही भू-जल की कमी के खतरनाक स्तर को पार कर चुके हैं। उधर, पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में साल 2025 तक कम भू-जल उपलब्धता का गंभीर संकट होने का खतरा है।
‘इंटरकनेक्टेड डिजास्टर रिस्क रिपोर्ट-2023’ शीर्षक से संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय-पर्यावरण और मानव सुरक्षा संस्थान ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया है। देश में कृषि के लिए लगभग 70 प्रतिशत भू-जल का उपयोग किया जाता है। भारत दुनिया में भू-जल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, जो अमरीका और चीन के कुल उपयोग से भी अधिक है। भारत का उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र देश की बढ़ती आबादी के लिए रोटी की टोकरी के रूप में काम करता है, जिसमें पंजाब और हरियाणा राज्य 50 प्रतिशत उत्पादन करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है पंजाब में 78 प्रतिशत कुओं का तेज़ दोहन हुआ है और पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 2025 तक गंभीर रूप से कम भू-जल उपलब्धता का अनुभव होने का अनुमान है। इससे  फसल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। 
भारत में भू-जल की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। हमारे देश में भूमि में जितना पानी रिचार्ज होता है उसका 62 प्रतिशत वापस निकल लिया जाता है। यदि मानसून की वर्षा ने धोखा दे दिया तो देश में जल संकट पैदे होने में देर नहीं लगेगी। देश में भू-जल का गिरता स्तर स्पष्ट संकेत देने लगा है कि भविष्य में हालात और भी ज्यादा गंभीर हो सकते हैं। आज जिस तरह से मानवीय ज़रूरतों की पूर्ति के लिए निरन्तर व अनवरत भू-जल का दोहन किया जा रहा है, उससे साल दर साल भू-जल का स्तर गिरता जा रहा है। आज दुनिया अपनी जल ज़रूरतों की पूर्ति के लिए सर्वाधिक रूप से भू-जल पर ही निर्भर है। लिहाजा, अब एक तरफ  तो भू-गर्भ जल का अनवरत दोहन हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर तेज औद्योगीकरण के चलते प्रकृति के हो रहे नुकसान और पेड़-पौधों के अनियंत्रित दोहन के कारण बरसात में भी काफी कमी आ गई है। तेज़ी से गिरता भू-जल स्तर दुनिया भर के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। 
पेयजल का मुख्य स्रोत भू-जल ही है। भू-जल वह जल होता है जो चट्टानों और मिट्टी से रिस जाता है और भूमि के नीचे जमा हो जाता है। जिन चट्टानों में भू-जल जमा होता है, उन्हें जलभृत कहा जाता है। भारी वर्षा से जल स्तर बढ़ सकता है और इसके विपरीत भू-जल का लगातार दोहन करने से इसका स्तर गिर भी सकता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार धरती का तीन चौथाई हिस्सा पानी से ढका हुआ है अर्थात लगभग 71 प्रतिशत पानी धरती के ऊपर मौजूद है और 1.6 प्रतिशत पानी धरती के नीचे है। जो पानी धरती के ऊपर मौजूद है, वह पानी पीने लायक नहीं है। शेष 3 प्रतिशत पानी पीने के योग्य है, जिसमें से 2.4 प्रतिशत  पानी उत्तरी हिस्से और ग्लेशियर में बर्फ  के रूप में जमा हुआ है।  सिर्फ  0.6 प्रतिशत पानी ही है जो नदी और तालाब में मौजूद है, जो पीने लायक है। यही 0.6 प्रतिशत पानी बढ़ती हुई आबादी और प्रदूषण के कारण पर्याप्त नहीं है, इसलिए धरती के नीचे जो पानी मौजूद है, उस पानी की भी बहुत ज्यादा आवश्यकता है।
भू-जल की वर्तमान स्थिति को सुधारने के लिये भू-जल का स्तर और न गिरे, इस दिशा में काम किए जाने के अलावा उचित उपायों से भू-जल संवर्धन की व्यवस्था करनी होगी। पानी की कमी के चलते निरन्तर खोदे जा रहे गहरे कुओं और ट्यूबवैलों द्वारा भूमिगत जल का अन्धाधुन्ध दोहन होने से भू-जल का स्तर निरन्तर घटता जा रहा है। देश में जल संकट का एक बढ़ा कारण यह है कि जैसे-जैसे सिंचित भूमि का क्षेत्रफल बढ़ता गया वैसे-वैसे भू-जल के स्तर में गिरावट आई है। 


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