युद्ध में मानवतावादी ताकतें कमज़ोर हो जाती हैं

हम वैश्विक स्तर पर अभी रूस-यूक्रेन युद्ध के संकट से ही बाहर नहीं निकल पाये थे कि इज़रायल-फिलिस्तीन के बीच भयंकर युद्ध आरम्भ हो गया। यह सोच कर भी डर लगने लगता है कि कहीं बढ़ते तनाव और बदलते हालात हमें विश्व युद्ध की तरफ तो नहीं धकेल देंगे। टालस्टाय का महान उपन्यास युद्ध और शांति (वार एंड पीस) याद हो आता है। टालस्टाय का ध्यान उस उपन्यास में संघर्ष और प्रेम, जन्म और मृत्यु, जैसे विषयों पर केन्द्रित रहा। क्या हमेशा हमारी दुनिया दो हिस्सों में विभाजित रही है। शक्तिशाली दूसरे को दबा देने में अपना गर्व महसूस करते रहे हैं? क्या हमने दो भयंकर तबाही लाने वाले विश्व युद्ध से कुछ सबक ग्रहण नहीं किए? क्या इज़रायल के बनने से हम कुछ वास्तविक आधार पर सोच नहीं पा रहे, क्या किसी देश को शक्तिशाली साबित करने के लिए सेना की भूमिका को ही महत्त्वपूर्ण मान लेना चाहिए? आज किसी का किसी पर भरोसा नहीं रहा जिसके परिणाम स्वरूप सभी देशों का सुरक्षा बजट बड़ा होता चला जा रहा है और उसी अनुपात से जन-कल्याण कार्यों पर कम? जापान ने भी शांति की रट त्याग कर रक्षा बजट में 2027 तक दोगुनी वृद्धि की योजना पर कार्य शुरू कर दिया है। देश की ताकत दिखाने के लिए ताकतवर सेना का होना ज़रूरी है क्या? वह इसके बिना राजनीतिक लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकता? छोटे देश इतने महंगे शस्त्र खरीदे बिना कैसे जी पाएंगे?
इज़रायल की सेना क्या कोई कमज़ोर सेना है? इस सेना और इसके खुफिया तंत्र का विश्व भर में लोहा माना जाता है। यह भी माना जा रहा है कि अगर यह सेना पूरा हमला बोल देगी तो हमास का साबुत निकल पाना कठिन हो जाएगा। लेकिन यहां सवाल यह भी है कि अगर हमास को सेना के बल पर खत्म किया जा सकता है फिर कोई अन्य संगठन अपने किसी बदले हुए नाम से हाजिर नहीं हो जाएगा? जैसे  9/11 में काफी नुकसान पहुंचाया था उस महाबली को जिसे अपनी ताकत पर नाज है? 2003 के बाद गाजा में पांच लड़ाइयां हुई हैं? इज़रायल उनसे पहले सावधान क्यों नहीं हो गया? इतने व्यापक खुफिया तंत्र के रहते? हमास ने हमला कर देने पर भी यही हुआ। हमास को तबाह करने के लिए अगर एक सैनिक हमले की ज़रूरत थी तो इज़रायल किसका इंतजार कर रहा था। अमरीका तो तब भी उसका सहयोगी होता। क्या इससे यह परिणाम नहीं निकाला जा सकता कि सैनिक ताकत कितनी भी मज़बूत क्यों न हो, राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने के लिए उसका इस्तेमाल ़खतरनाक भी साबित हो सकता है।
बड़ा सवाल यह भी है कि विश्व युद्ध जैसी भयानकता के करीब जाती यह दुनिया हमें क्या सन्देश दे रही है? शांति बनाए रखना या बातचीत द्वारा मसले हल करने की जगह तोपखाना खोलने वाली दुनिया कर क्या रही है? बच्चे जो मारे जा रहे हैं, लोग जो बंधक बनाए गए हैं, उनके लिए यह दुनिया ऩफरत का केन्द्र बन गई है। अपनी हद से कदम बाहर रखते ही मानवीयता की पुकार खत्म हो जाती है? आखिर दो-दो विश्व युद्ध देखने के बादभी मानवता का पक्ष इतना गौण क्यों है?  बेंजामिन नेतन्याहू बार-बार कहते हैं कि हमास को हमेशा के लिए दफन कर देंगे, लेकिन क्या पूरा सफाया मुमकिन है?  क्या युद्ध/हमले में मारे गए, विस्थापित हुए लोगों में विरोध की भावना भी मर जाती है सदा के लिए? क्या उनमें से बचे हुए लोग फिर तैयारी नहीं करेंगे? युद्ध विराम बेहतर विकल्प है और बातचीत भी।