कहां से आया पटाखों का बारूद ?

खुशियों और उमंगों से भरा आलोक पर्व दीपावली हर वर्ष धूम-धाम से मनाया जाता है। इस पर्व में लक्ष्मी जी के पूजन के साथ अतिशबाजी छोड़ने का भी विशेष महत्त्व है। बड़े-छोटे हर कोई इसका आनंद उठाते हैं। फुलझड़ी, अनार, बम, चरखी, मशाल आदि रंग बिखेरने के साथ-साथ आवाज भी करते हैं। इस सब रोशनी, आवाज और धुएं के पीछे है बारूद। आखिर बारूद है क्या? यह किसी एक पदार्थ का नाम नहीं है। कई पदार्थों को मिलाकर बारूद या गन पाउडर बनता है। इसे बनाने के लिए गंधक, काठ कोयले और शोरे के चूर्ण का प्रयोग होता है। बारूद में आमतौर पर 75 प्रतिशत शोरा (पोटेशियम नाइट्रेट), 10 प्रतिशत गंधक तथा 15 प्रतिशत काठ कोयला होता है। शोरा एक क्षार है जो आमतौर पर हमें प्रकृति से प्राप्त हो जाता है। इसे हम पोटेशियम क्लोराइड तथा सोडियम नाइट्रेट के मिश्रण से भी तैयार कर सकते हैं।
हम सब यह तो जानते ही हैं कि किसी भी चीज को जलाने के लिए आक्सीजन की जरूरत होती है परन्तु बारूद को जलाने के लिए बाहरी आक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ती क्याेंकि बारूद में गंधक और काठ कोयले के जलने के लिए आक्सीजन शोरे से प्राप्त होती है।
बारूद का जन्म चीन में हुआ, इसके आविष्कारक ताओवादी कीमियागर माने जाते हैं। चीन के थाड़ राजवंश (618-907) के चिकित्सक कीमियागर सुन सिम्याओ द्वारा रचित एक पुस्तक में बारूद के बारे में काफी जानकारी मिलती है। इसे चीन में बारूद की जगह ‘हुआ याओ’ या अग्नि-द्रव्य के नाम से जाना जाता है।
चीन में बारहवीं शताब्दी के प्रथम चरण में दो खण्डों वाले राकेट बनाये जाने लगे। पहले-पहल इन राकेटों में बांस का प्रयोग किया जाता था लेकिन बाद में इनके स्थान पर कांसे या लोहे का उपयोग कर तोपें बनने लगीं। ऐसे ही एक तोप जो सन् 1332 में ढाली गई थी, प्राप्त हुई है। चीन से यह कला भारत और अरब में चौदहवीं शताब्दी में आयी। यूरोप में इस कला को पहुंचाने का श्रेय मंगोलों को जाता है।  हर वर्ष दीपावली के अवसर पर करोड़ों की आतिशबाजी जला दी जाती है इसलिए इस अवसर पर आतिशबाजियों में कम से कम खर्च करें और दुर्घटनाओं से सावधान रहें। (उर्वशी)