कटघरे में खड़ी सरकार

धान की कटाई के बाद पराली को आग लगाने के मामले में जिस तरह पहले देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने तथा अब नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पंजाब सरकार को फटकार लगाई है, ऐसा पहले कम ही देखने को मिला है। इससे पहले भी देश के कई अन्य प्रदेशों सहित पंजाब को हर तरह के प्रदूषण के मामले में नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा चेतावनियां दी जाती रही हैं। इस संबंध में पंजाब की तत्कालीन सरकारों पर जुर्माना भी लगाया जाता रहा है परन्तु ऐसी कड़ी टिप्पणियां  बेहद कड़े शब्दों में पहले किसी भी सरकार के लिए कभी नहीं की गईं। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पराली जलाने की घटनाओं को रोकने संबंधी पंजाब सरकार को बुरी तरह विफल करार दिया है। ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा है कि लगातार चेतावनियां दिये जाने के बावजूद भी पंजाब सरकार ने कोई ठोस तथा पुख्ता यत्न नहीं किये। इसकी बजाय उसने बयानबाज़ी करने को ही अधिक अधिमान दिया। ग्रीन ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा है कि इस मामले में सरकार बुरी तरह विफल हो गई है। ऐसा इसके बावजूद हुआ जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप में पंजाब सरकार सहित उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा हरियाणा को भी पराली को आग लगाये जाने की घटनाओं को रोकने के लिए ऐसे निर्देश दिये थे। ट्रिब्यूनल ने तो यहां तक सरकार को कड़े शब्दों में कहा कि आप सिर्फ नारेबाज़ी करते रहे हो, आपकी सरकार ने मामले की गम्भीरता को नहीं समझा। इसलिए इस समय के दौरान वायु प्रदूषण फैलाने में आपका सबसे बड़ा योगदान है।
यदि आंकड़ों की बात करें तो इस बार अब तक पंजाब में पराली को आग लगाने के 35000 से अधिक मामले सामने आये हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में इन मामलों की संख्या 2751, हरियाणा में 2123 तथा राजस्थान में 1624 रही है। जब सरकार को सर्वोच्च न्यायालय से फटकार मिली थी, तब तक पराली को आग लगाने के सिर्फ 600 मामले ही सामने आये थे परन्तु इसके बाद लगातार इनमें वृद्धि होती गई। यदि प्रशासन इस मामले में आधे-अधूरे ढंग से थोड़ा-बहुत सक्रिय हुआ भी तो पराली जलाने के लिए बज़िद किसानों ने उसकी ज़रा भी चलने नहीं दी। एक स्थान पर तो खेतों में ऐसा करने से रोकने हेतु वहां गये संबंधित अधिकारी का घेराव कर किसानों ने उसे जब्री स्वयं पराली को आग लगाने के लिए विवश किया। यदि प्रशासन ने इस संबंध में कुछ मामले दर्ज किये तो किसान संगठनों द्वारा ज़िलाधीश कार्यालयों तथा पुलिस थानों का घेराव किया गया। अब जब सर्वोच्च न्यायालय तथा ग्रीन ट्रिब्यूनल के बाद सरकार ने इस संबंध में कुछ मामले दर्ज करने का हौसला दिखाया तो किसान संगठन ऐसे मामलों को दर्ज करने से रोकने हेतु धरने लगा कर यातायात अवरुद्ध करने पर उतर आए। आज भी ऐसा ही दृश्य प्रदेश भर में हर तरफ दिखाई दे रहा है।
नि:संदेह यह बेहद गम्भीर समस्या है परन्तु सरकार ने केवल विज्ञापनबाज़ी तथा बयानबाज़ी करने के अलावा क्रियात्मक रूप में इस संबंध में कोई ठोस योजनाबंदी नहीं की। किसानों को पराली के समाधान के लिए आवश्यक मशीनें तथा अन्य साधन उपलब्ध करने में भी सरकार सफल नहीं हो सकी। इस कारण वह किसानों को पराली को आग लगाने से रोकने में पूरी तरह विफल रही है। आज यदि दिल्ली से लेकर लाहौर तक वायु गुणवत्ता बेहद प्रदूषित हुई है तो इसके लिए मुख्य रूप से पंजाब को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। हम समझते हैं कि इस गम्भीर मामले संबंधी न तो सरकार ने तथा न ही किसानों ने ज़िम्मेदारी का प्रमाण दिया है। इसलिए वह प्रदेश जो कभी हरित क्रांति लाने के रूप में जाना जाता था, आज प्रदूषण फैलाने के लिए ज़िम्मेदार माना जा रहा है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द