धमाकेदार वापसी की इबारत लिखती कांग्रेस

निश्चित रूप से गत एक दशक से भी लम्बे समय से चलाई जा रही कांग्रेस विरोधी मुहिम का लाभ दक्षिणपंथियों को काफी हद तक मिला। यहां तक कि दर्जनों ऐसे बड़े कांग्रेस नेता निराशा व भय के चलते दक्षिणपंथी खेमे में जा मिले जिन्हें देश कांग्रेस मुक्त होते दिखाई देने लगा था। परन्तु शायद ही कभी किसी ने सोचा हो कि देश के सर्व सुविधा सम्पन्न एवं सर्वोच्च राजनीतिक घराने में परवरिश पाने वाले राहुल गांधी 7 सितम्बर, 2022 को कन्याकुमारी से कश्मीर तक की लम्बी भारत जोड़ो यात्रा पर पैदल ही निकल पड़ेंगे और तेज़ धूप, बारिश व कड़ाके की सर्दी का सामना करते हुये देश के 12 राज्यों व दो केंद्र शासित प्रदेशों से होकर गुज़रने वाली 136 दिवसीय यह भारत जोड़ो यात्रा एक जन-आंदोलन का रूप ले लेगी। 
इस यात्रा का उद्देश्य भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की कथित विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ देश को एकजुट करना था। राहुल गांधी ने अपनी इस यात्रा को केंद्र की मूल्य वृद्धि, बेरोज़गारी, राजनीतिक केंद्रीकरण और विशेष रूप से भय, कट्टरता की राजनीति और नफरत के खिलाफ लड़ने के लिए एक सशक्त माध्यम बनाया। इस यात्रा में कांग्रेस के नेताओं के अतिरिक्त दक्षिणपंथी नीतियों का विरोध करने वाले लगभग सभी प्रमुख लोग जगह-जगह शामिल हुये। इसी यात्रा में राहुल गांधी ने एक प्रचलित वाक्य कांग्रेस को दिया, ‘हम नफरत के बाज़ार में मुहब्बत की दुकान’ खोल रहे हैं।
इसी यात्रा के बाद कांग्रेस के बढ़ते कद की वजह से ही विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ अस्तित्व में आया जिसने सत्ता की नींद उड़ा दी। अब अपनी ज़मीन खिसकने के डर से सत्तारूढ़ द्वारा प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो व आयकर विभाग जैसी निष्पक्ष समझी जाने वाली सरकारी संस्थाओं का कथित रूप से दुरुपयोग किया जा रहा है। इससे देश को यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि कांग्रेस सहित पूरा का पूरा विपक्ष ही न केवल हिन्दू और सनातन विरोधी है, बल्कि भ्रष्ट भी है। भाजपा में कांग्रेस सहित विभिन्न दलों के ऐसे कई नेता शामिल हो गये जो भ्रष्टाचार के आरोपी थे और ई.डी. व सी.बी.आई. की संभावित कार्रवाई से भयभीत थे। इन विषम एवं विपरीत परिस्थितियों में कांग्रेस का पुन: अपने पहले रूप में आना किसी चमत्कार से कम नहीं।
भाजपा के साथ-साथ ‘इंडिया’ गठबंधन के अखिलेश यादव, ममता बनर्जी व अरविंद केजरीवाल जैसे नेता भले ही कांग्रेस की बढ़ रही ताकत से दूरगामी राजनीतिक स्वार्थवश चिंतित अवश्य लगे। कांग्रेस ने गठबंधन की गतिविधियों को राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना व मिज़ोरम के विधानसभा चुनाव सम्पन्न होते तक स्थगित रखने कहा है। उससे स्पष्ट है कि कांग्रेस अब इन राज्यों के आने वाले परिणामों के बाद पार्टी अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ सीट बंटवारे पर चर्चा शुरू करेगी। प्राप्त समाचारों के अनुसार उत्तर प्रदेश में लगभग हाशिये पर जा चुकी कांग्रेस एक बड़ा खेल खेलने की तैयारी में है। संजय गांधी के बेटे और भाजपा सांसद वरुण गांधी से गत 7 नवम्बर को केदारनाथ मंदिर के प्रांगण में मंदिर के पुजारी के घर एकांत में हुई संक्षिप्त गुप्त वार्ता के बाद इस चर्चा ने ज़ोर पकड़ लिया है कि वरुण गांधी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। यदि वरुण कांग्रेस में शामिल होते हैं तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति अपेक्षकृत काफी मज़बूत हो सकती है। हालांकि भाजपा ने शुरूआती दौर में वरुण गांधी द्वारा दिये गये उनके कुछ विवादित बयानों के बाद उन्हें हिन्दू युवा नेता के रूप में प्रचारित करने की कोशिश ज़रूर की थी, परंतु वरुण भाजपा की उस उम्मीद पर इसलिये खरे नहीं उतर सके। वैसे भी नेहरू-गांधी परिवार को अपमानित करने के बाद वरुण गांधी का भाजपा में और देर तक बने रहना भी स्वाभाविक प्रतीत नहीं होता।
इसी तरह कांग्रेस तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा को लेकर भी कोई चौंकाने वाला कदम उठा सकती है। उल्लेखनीय है कि उद्योगपति गौतम अडानी की कथित आर्थिक अनियमिताओं को लेकर जितना राहुल गांधी मुखरित हैं, उतना किसी अन्य घटक का कोई नेता नहीं। हां, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और ‘आप’ सांसद संजय सिंह के बाद सांसद महुआ मोइत्रा ने ज़रूर इस विषय पर अपनी आवाज़ बुलंद की। इसके बाद राहुल की संसद की सदस्य्ता समाप्त करने से लेकर संजय सिंह का जेल जाना, अरविन्द केजरीवाल पर जेल जाने की तलवार लटकने से लेकर महुआ मोइत्रा की सांसदी छीनने के प्रयास तक सब कुछ देश देख रहा है। साथ ही यह भी सर्वविदित है कि महुआ मोइत्रा के समर्थन में उनके साथ खड़े होने की जो भूमिका उनकी पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी को अदा करनी चाहिये, वह भूमिका राहुल गांधी ने अदा की। समाचारो के अनुसार अडानी पर ममता की खामोशी उनकी मजबूरी है क्योंकि अडानी बंगाल में विश्व के दूसरे सबसे बड़े कोल ब्लॉक को हासिल करने की कोशिश में हैं। 
वीरभूम ज़िले का देउचा पचामी कोयला ब्लॉक विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ब्लॉक है। इसे लेकर ममता के साथ अडानी व उनके पुत्र की भी मुलाकात होने की खबर आई थी। इसीलिए तृणमूल कांग्रोस न तो महुआ के समर्थन में सामने आई और न ही उनका विरोध किया जबकि राहुल गांधी इस मुद्दे पर पूरी तरह महुआ मोइत्रा के साथ खड़े दिखाई दिये। तभी से इस चर्चा ने भी ज़ोर पकड़ लिया है कि क्या बंगाल में दशकों बाद कांग्रेस को एक आक्रामक व जुझारू नेता मिलने की संभावना है? यदि ऐसा हुआ तो बंगाल में भी कांग्रेस की स्थिति पहले से काफी बेहतर हो सकती है। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की जीत के बाद राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व तेलंगाना आदि राज्यों के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस के बुलंद हौसले और संगठनात्मक मज़बूती के लिये उत्तर प्रदेश से लेकर बंगाल तक कांग्रेस द्वारा रचे जा रहे चक्रव्यूह से यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या कांग्रेस धमाकेदार वापसी की इबारत लिखने जा रही है?