साबित करो कि तुम ज़िन्दा हो !

समस्या गम्भीर पैदा हो गयी। जी नहीं, आबादी की समस्या नहीं, क्योंकि उसमें तो फैसला हो ही गया, कि अपना देश इस दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है। हम चीन को और किसी बात में पछाड़ पायें या नहीं, लेकिन बच्चे पैदा करने के मामले में तो हमने उसे पछाड़ ही दिया है। पहले कहते थे कि दुनिया का हर पांचवां आदमी चीनी है, और सातवां आदमी भारतीय। लेकिन माशा अल्लाह, यहां कुछ इस तेज़ी से प्रजनन की गाड़ी चलायी गयी  कि अब चीन तो पीछे रह गया, और अब अगर भारतीय हो तो चुपके से हमारे कान में बता दो, कि आप दुनिया के पांचवें आदमी बन गये हो कि यहां भी इससे तरक्की कर के चौथे।
लेकिन चौथा या पांचवां आदमी बन जाने से क्या होता है? प्रश्न तो यह है कि देश की इस बढ़ती भीड़ में आपको पहचान के लिए कोई अपना चेहरा भी अभी तक मिला या नहीं। सही फरमाया आपने कि हमने देश की अधिकांश आबादी यानि अस्सी करोड़ में रियायती अनाज बांट कर एक रिकार्ड बना दिया। रिकार्ड बनाने का ज़माना है, बन्धु! सबसे अधिक रियायती अनाज बांटा तो दुनिया में सब महाबलि देशों को पछाड़ कर सबसे अधिक विकास दर भी हमने ही प्राप्त की है। पूरी दुनिया महामन्दी से त्राहिमाम चिल्ला रही है, और हम इसके प्रहार से भी बच निकले।
हर जगह इस बच निकलने में तो अपुन या अपना देश प्रवीण है, बन्धु! जैसे चुनावी मौसम में वोट आकांक्षी जो नेता लोग आपकी दहलीज़ उखाड़ देने पर उतारू थे, अब चुने गये तो आपको पहचानते भी नहीं। उनका द्वार खटखटाने का साहस करो तो कहते हैं, भई साबित करो, तुमने हमें ही वोट दिया था। तुम्हारी शक्ल तो ऐसी लगती है, कि जैसे जन्म जात हमारी विरोधी पार्टी को वोट देने वाले ही नहीं, उनका बैंड बजाने वाले हो। अब मुसीबत पड़ी तो हमारे समर्थक का चेहरा ओढ़ कर चले आये। 
डीमफेक के इस ज़माने में यह चेहरा ओढ़ना भी मुसीबत हो गया। विज्ञान ने सिन्थेटिक चेहरे बनाने में इतनी तरक्की कर ली कि आपके सामने आपका ही चेहरा ओढ़ कर खड़े हो कह देते हैं, पहचान कौन? और बच। इस भीड़ भरे देश की अन्तहीन कतारों में क्या एक चेहरे से दूसरे को अलग कर सकते हो? यहां सभी तो रियायतों और रेवड़ियों के तलबगार हैं। एक से फैले हुये हाथ हैं, अनुकम्पा ले लेने की घुड़-दौड़ में एक जैसी रेस दौड़ते हुए लोग हैं।
अब इनमें से राम लाल कौन है, और शाम लाल, कौन पहचानना मुश्किल हो गया। किसी एक कतार में सभी एक दूसरे के साथ धक्का-मुक्की करते हुए, एक दूसरे को कुहनियों से ठेल आगे बढ़ जाने की फिराक में लगे। सब लोगों के चेहरे एक जैसे लगते हैं, यहां राम लाल जैसे और दूसरी ओर शाम लाल बैठे हैं। अपनी पढ़ाई खत्म कर डिग्रियों की पहचान गले में डाल किसी सार्थक काम की तलाश में लगे, सब शाम लाल। इन सबका एक जैसा भाग्य है। एक अनार और सौ बीमार। बरसों बीत गये कोई ढंग की सिफारिश ही इन्हें नहीं मिली, कि जिसके बल पर काम योग्य हो जाने की पहचान पा लेते। बस, मिली है तो एक ही गारंटी मिली है। भूखा न मरने देने की गारण्टी। रियायती गेहूं खाओ, प्रभु के गुण गाओ। अब तो यह अनाज मिलने का आश्वासन साल-दर-साल नहीं, कई साल के लिए मिल गया। बन्धु, अपने लिये किसी कामगार के निजी चेहरे की तलाश क्यों करते हो। रेवड़ियां बांट कर ज़िन्दा रखेंगे तुम्हें। मरने नहीं देंगे तुम्हें। इसलिये यूं ही एक चेहराहीन भीड़ बने रहो। निरन्तर बढ़ती है यह भीड़। यह कोई अलग चेहरा नहीं पाती। बस, एक जयघोष का स्वर पाती है। थरथराते हाथों से अनुकम्पा को थामती है, और नेता जी के परिवारवाद को ज़िन्दा रखने के लिए ज़िन्दाबाद हो जाती है।
लेकिन अब इसमें भी एक और समस्या खड़ी हो गयी। अन्धों को तो अनुकम्पा के लंगर में से रेवड़ियां बांटनी हैं। कर्मशीलता को नकार कर बांटनी हैं। उद्यम को धता बता कर बांटनी हैं। मुफ्तखोरी का परचम लहरा कर बांटनी हैं। लेकिन समस्या यह पैदा हो गयी कि जिन्हें बांट रहे हो, वह मुर्दा हो गये, और उनकी जगह नकली लोग उनका चेहरा लगा कर सामने चले आये।
फर्जीवाड़ा बढ़ गया, तो पूछा जाने लगा, ‘बन्धु साबित करो कि तुम ज़िन्दा हो।’
‘अरे, पढ़े लिखे भी इस कतार में लग कर निरक्षर भट्टाचार्य हो गये। इसलिए अपने हस्ताक्षरों से नहीं, फार्म पर अंगूठा लगा कर साबित करो कि तुम ज़िन्दा हो। कैसे साबित करें। अंगूठे की उंगलियों पर तो एक भी निशान नहीं बचा। सब वक्त की घिसाई में खो गये।’
निशान नहीं है, तो आंखों की पुतलियों की तस्वीर ले आओ। मोतियाबिंद से मारी हुई इस दुनिया में पुतली कहां बची? इस बनावटी होती जा रही दुनिया में आंखों में भी तो बनावटी लैंस पड़े हैं। उनकी तस्वीर नहीं होती।
अब कैसे साबित करें कि हम ज़िन्दा हैं, और आपकी अनुकम्पा के पूरे पूरे अधिकारी।
कतार में लगे लोगों द्वारा अपने आप को ज़िन्दा साबित करने का संकट आ गया। बन्धु जानकार इस संकट पर ज़ोर से हंसे। अरे, अपने आप को ज़िन्दा साबित करने का भी कोई संकट है? सवाल तो मरे हुओं का है, कि जिन्हें मरने के बाद दो गज़ ज़मीन भी नहीं मिलती कूचे यार में।
बड़े आदमियों की चादर उठा कर चल सको, यही तुम्हारे ज़िन्दा होने का सही प्रमाण है। बड़ा आदमी पास नहीं फटकने देता तो बीच के दलाल को पकड़ो। उसकी चिरौरी करोगे, तो वह अपनी खाली जेब दिखायेगा। उसे गर्म कर दोगे तो साबित हो जायेगा, तुम अभी ज़िन्दा हो। किसी आदर्श लोक में नहीं चले गये। क्योंकि अब लोक और परलोक इस तरह की चरणवन्दना से मिलता है, बन्धु! किसी और तरह से नहीं।