चुनाव परिणामों का प्रभाव

नवम्बर मास में हुये पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को इसलिए ‘सैमीफाइनल’ कहा जाता रहा था, क्योंकि अगले वर्ष गर्मियों में लोकसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा अपनी दो पारियां खत्म करने वाली है। इन साढ़े नौ वर्षों में पार्टी की चढ़त रही। लोकसभा में बहुमत होने के कारण तथा राज्य सभा में जोड़-तोड़ करके यह पार्टी संसद से अधिकतर ऐसे बिल पारित करवाने में सफल रही, जो लम्बी अवधि से इस पार्टी का सैद्धांतिक एजेंडा रहे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी विगत अवधि में देश के एक ऐसे नेता के रूप में उभर कर सामने आये, जिनके कद का अन्य पार्टियों के पास कोई नेता नहीं था। प्रधानमंत्री द्वारा समय-समय पर घोषित तथा लागू की गई अधिकतर योजनाओं की व्यापक स्तर पर प्रशंसा भी हुई तथा कुछेक की विपक्षी दलों द्वारा कड़ी आलोचना भी की जाती रही। उनकी ओर से यह भी कहा जाता रहा कि प्रधानमंत्री अपनी कार्यशैली करके ऐसे विवादास्पद मामलों में भी हाथ डाल लेते हैं, जिस कारण  देश की एकता एवं अखण्डता को भी ़खतरा पैदा हो जाता है।  इसी तरह श्री मोदी की कार्यशैली ने समय-समय पर अनेक ही विवादों को भी जन्म दिया। उन पर साम्प्रदायिक विचारधारा को बढ़ावा तथा साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काने का आरोप भी लगता रहा है, परन्तु इस सब कुछ के बावजूद मोदी मज़बूत स्थिति में रहे हैं। इसके साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भी वह बेहद चर्चित व्यक्ति बने रहे। उनके प्रभाव को भी विश्व भर में किसी न किसी रूप में स्वीकार किया जाता रहा। 
भारतीय जनता पार्टी भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ  का संरक्षण प्राप्त करके मज़बूत होती गई। वह बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय को भावनात्मक रूप से अपने साथ जोड़ने में सफल रही। ऐसी स्थिति के दृष्टिगत ही कांग्रेस तथा देश की अन्य छोटी-बड़ी 28 पार्टियों ने गठबंधन करके चुनावों में भाजपा का मुकाबला करने की तैयारी कर ली। चाहे ‘इंडिया’ (इंडियन नैशनल डिवैल्पमैंट एन्क्लूसिव अलायंस) नामक यह गठबंधन अब तक ज्यादा मजबूत होकर नहीं उभरा, परन्तु इसके भाजपा के विरुद्ध एकजुट होकर चुनाव लड़ने के यत्न जारी हैं। आगामी 2024 के लोकसभा चुनावों तक यह गठबंधन किस सीमा तक अपना प्रभाव कायम कर सकता है, यह तो अभी देखने वाली बात होगी, परन्तु नवम्बर में हुये पांच राज्यों के चुनावों में इसने अपना कोई प्रभाव ही नहीं बनाया, अपितु इसमें भिन्नताएं अधिक पैदा होती रही हैं। गठबंधन की ज्यादातर छोटी पार्टियों ने भी इन चुनावों में अपने-अपने उम्मीदवार खड़े करने से गुरेज नहीं किया। चाहे 3 दिसम्बर को आने वाले परिणामों से पहले ही बहुत-से गठबंधन सामने आये थे तथा प्रत्येक स्तर पर इन परिणामों संबंधी विस्तारपूर्वक चर्चा भी होती रही थी, परन्तु सामने आए इन परिणामों ने एक बार फिर जहां भाजपा के बड़े उभार को दर्शाया है, वहीं श्री नरेन्द्र मोदी के कद को और भी बढ़ा दिया है। 3 दिसम्बर को चार राज्यों के चुनाव परिणाम सामने आये हैं। मिज़ोरम के चुनावों की मतगणना 4 दिसम्बर को हो रही है। इन चार राज्यों में तीन राज्यों में से जहां भाजपा की जीत ने पार्टी के भीतर एक बड़ा उत्साह तथा खुशी पैदा की है, वहीं कांग्रेस को इनसे बड़ी निराशा हुई है।
तेलंगाना में के. चन्द्रशेखर राव के नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति विगत 10 वर्षों से सरकार चलाती रही है। चन्द्रशेखर राव को आंध्र प्रदेश से अलग करके नया राज्य तेलंगाना बनाने का श्रेय दिया जाता रहा है। इस राज्य में कांग्रेस ने जीत प्राप्त करके अपनी छवि बनाने का यत्न ज़रूर किया है, क्योंकि मिज़ोरम में क्षेत्रीय पार्टियां का ही बोलबाला रहा है। वहां भाजपा तथा कांग्रेस का कोई ज्यादा आधार दिखाई नहीं देता। राजस्थान का पिछले 25 वर्ष से चुनाव इतिहास यही रहा है कि भाजपा तथा कांग्रेस का यहां बारी-बारी से शासन आता रहा है। इस हिसाब से चाहे इस बार बारी भाजपा की ही थी परन्तु अशोक गहलोत ने चुनाव बड़ी हिम्मत तथा मेहनत के साथ लड़े परन्तु पार्टी की आंतरिक कलह भी उनकी हार का एक बड़ा कारण बनी। मध्य प्रदेश में भाजपा द्वारा तीसरी बार सरकार बनाने को जहां ज़रूर पार्टी की एक बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है, वहीं छत्तीसगढ़ जहां विगत पांच वर्ष से कांग्रेस की सरकार थी, में भाजपा द्वारा जीत प्राप्त करना भी एक बड़ा तथा सफल कदम कहा जा सकता है। राज्यों के इन चुनावों का आगामी मास में लोकसभा के चुनावों पर पड़ने वाले प्रभाव का इस समय सही अनुमान लगा पाना तो कठिन है परन्तु इन परिणामों से जहां भाजपा में विश्वास बढ़ा है तथा श्री मोदी का नेतृत्व और मज़बूत हुआ है, वहीं निराश हुई कांग्रेस को भी नये सिरे से समूचे राजनीतिक हालात का जायज़ा लेकर नई नीति बनाने की ज़रूरत होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द