विष्णु देव साय छत्तीसगढ़ के दूसरे आदिवासी मुख्यमंत्री होंगे

पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णु देव साय छत्तीसगढ़ के पहले आदिवासी हिन्दू मुख्यमंत्री होंगे। आदिवासियों के वरिष्ठ नेता 59 वर्षीय साय को तीन बार मुख्यमंत्री रहे चुके ठाकुर समुदाय के डा. रमण सिंह व वैश्य समुदाय के पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जैसे दिग्गज नेताओं पर वरीयता देकर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। साय आरएसएस के बहुत करीब हैं और हिंदुत्व की विचारधारा में पूरी तरह से डूबे हुए हैं, इसलिए उनका चयन करके भाजपा ने स्पष्ट संकेत दिया है कि टॉप पोस्ट उन्हीं के लिए ‘आरक्षित’ हैं जो हिंदुत्व के एजेंडा को आगे ले जाने में सक्षम होंगे। यह राजस्थान व मध्य प्रदेश के उन दिग्गजों के लिए भी इशारा है जो जयपुर व भोपाल में टॉप जॉब पर नज़रें लगाये हुए हैं कि उसी को प्राथमिकता दी जायेगी जो 2024 के आम चुनाव में भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग योजना के लिए लाभदायक होगा।
इससे भी बढ़कर यह कि झारखंड (बाबूलाल मरांडी व अर्जुन मुंडा) के बाद एक-दूसरे राज्य में एक आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाना भाजपा की विस्तृत योजना का हिस्सा है, जिसके तहत द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया गया और बिरसा मुंडा के जन्म दिवस को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया गया व अन्य आदिवासी लीजेंड्स के संदर्भ में भी ऐसी ही योजनाएं हैं। भाजपा को लगता है कि इससे उसे आम चुनाव में लाभ मिलेगा, आदिवासियों को हिंदुत्व के दायरे में लाया जा सकेगा और समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लाने के संदर्भ में जो सबसे अधिक संभावित विरोध आदिवासियों की तरफ से हो सकता है, उसे कम किया जा सकेगा। छतीसगढ़, राजस्थान व गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों से कांग्रेस का राजनीतिक प्रतिनिधित्व नाम मात्र का ही रह गया है, जबकि एक समय था जब आदिवासी समुदाय उसका सशक्त वोट बैंक था।
दरअसल, साय का चयन इसलिए भी किया गया है क्योंकि छतीसगढ़ को कांग्रेस के हाथों से निकालकर भाजपा को सौंपने में आदिवासियों की ही अहम भूमिका रही, इसलिए उनका धन्यवाद करना तो बनता था। ध्यान रहे कि आदिवासी-बहुल सरगुजा ज़िले की सभी 14 सीटें भाजपा ने जीतीं। छतीसगढ़ में 29 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं, जिनमें से 18 पर भाजपा ने जीत दर्ज की। साय अजीत जोगी के बाद छत्तीसगढ़ के दूसरे आदिवासी मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन इस अंतर के साथ कि वह हिन्दू आदिवासी हैं जबकि जोगी ईसाई आदिवासी थे। वैसे जोगी के आदिवासी होने पर भी विवाद था। कुछ का दावा है कि वह दलितों की सतनामी जाति से थे। साय छत्तीसगढ़ के दो बार भाजपा अध्यक्ष रह चुके हैं और बाद में वह पहली मोदी सरकार में केंद्रीय स्टील राज्य मंत्री थे। राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन के समक्ष सरकार बनाने का दावा पेश करने के बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘मेरी पहली प्राथमिकता प्रधानमंत्री मोदी की गारंटियों को पूरी ईमानदारी से पूरा करना होगा, जिसमें शुरुआत 18 लाख गरीब परिवारों को घर उपलब्ध कराना, उन किसानों को लम्बित पड़ा बोनस देना, जिन्होंने 2015-16 व 2016-17 में न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के तहत अपना धान बेचा था। अपने पिछले कार्यकाल में हम यह बोनस किसानों को दे नहीं सके थे। अब यह पैसा 25 दिसम्बर को किसानों को ट्रांसफर किया जायेगा।’
साय ज़मीनी स्तर से उठकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले नेता हैं। उनकी राजनीतिक यात्रा पंचायत के स्तर से आरंभ हुई थी और फिर वह वहां से पायदान दर पायदान ऊपर चढ़ते रहे। हालांकि बीच-बीच में उन्हें अनेक उतार भी देखने पड़े कि केंद्र में उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और निरंतर अपने लक्ष्य पर नज़र रखते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करते रहे। आखिरकार उन्हें सफलता मिल ही गई। साय सौम्य सभाव के व्यक्ति हैं, विवादों से दूर रहने के उनमें गुण हैं और उनमें संगठनात्मक स्किल्स भी हैं, जिसकी वजह से वह अपनी आदिवासी जड़ों से सम्पर्क बनाये रखते हैं। इन्हीं विशेषताओं के लिए भी भाजपा ने उन्हें छत्तीसगढ़ में टॉप जॉब के लिए चुना है। उत्तर छत्तीसगढ़ में कुनकुरी (एसटी) सीट से विधायक 59 वर्षीय साय अजीत जोगी के बाद राज्य के दूसरे आदिवासी नेता हैं जो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं। जोगी नवम्बर 2000 में राज्य के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री बने थे। साय भाजपा के उपाध्यक्ष व तीन बार के मुख्यमंत्री डा. रमण सिंह के बहुत करीबी हैं। मधुभाषी साय ने हमेशा ही खुद को स्पॉटलाइट से दूर रखा है, चाहे वह पार्टी के भीतर हो या अंदर। छत्तीसगढ़ के मतदाताओं ने जब आक्रमक राजनीति को ठुकरा दिया, जिसका अधिकतर भाजपा के नेता पालन कर रहे थे, तो बस साय को ही हॉट सीट में बैठाने की प्रतीक्षा रह गई थी, विशेषकर इसलिए भी कि जिस राज्य के 32 प्रतिशत मतदाता आदिवासी हैं उसमें एक आदिवासी को मुख्यमंत्री बनने से कब तक रोका जा सकता था। 
साय ने अपना राजनीतिक करियर 1989 में बगिया ग्राम पंचायत के सदस्य के रूप में आरंभ किया। बगिया उस समय अविभाजित मध्य प्रदेश के कांसाबेल ब्लाक में बन्दर्चुआ का आदिवासी गांव था। बाद में 1990 में साय इस गांव के निर्विरोध सरपंच चुने गये। फिर 1990 में ही वह मध्य प्रदेश की विधानसभा सीट तपकरा से विधायक चुने गये और 1998 तक यह सीट उनके ही कब्ज़े में रही। इसके अगले वर्ष यानी 1999 में वह रायगढ़ (एसटी) सीट से 13वीं लोकसभा में पहुंचे। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद वह 2006 में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष बने और फिर दो बार रायगढ़ से ही 2009 व 2014 में लोकसभा सांसद चुने गये।
केंद्र में पहली मोदी सरकार में वह 2014 से 2019 तक स्टील, माइंस, लेबर एंड एम्प्लॉयमेंट के मंत्री रहे। जब 2018 में भाजपा छत्तीसगढ़ का विधानसभा चुनाव हार गई तो तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष धर्मलाल कौशिक को हटाकर एक बार फिर साय को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष का पद दे दिया गया, जिस पर वह 2022 तक रहे। लेकिन जब भाजपा नेतृत्व को महसूस हुआ कि कांग्रेस मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के आक्रमक ओबीसी नैरेटिव को काउंटर करने की आवश्यकता है तो साय की जगह एम.पी. अरुण साओ, जो ओबीसी साहू समुदाय से संबंधित हैं, को नया प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। साय खामोशी से अपने देशज गांव लौट गये और भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य के रूप में कार्य करते रहे। उस समय किसी ने अंदाज़ा नहीं लगाया था कि एक दिन साय छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी बन जायेंगे।
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