अब गेहूं की बिजाई के लिए पिछेती किस्में ही चुनें

धान के अवशेष व पराली की संभाल करने के बाद 210 लाख मीट्रिक टन रिकार्ड उत्पादन करके किसानों ने खेत खाली कर लिए और 35 लाख हैक्टेयर में से लगभग 95 फीसदी रकबे पर गेहूं की बिजाई कर ली। विशेषज्ञों द्वारा गेहूं की बिजाई के लिए उचित समय 15 नवम्बर तक बताया गया, परन्तु जिन किसानों ने नवम्बर के अंत तक दूसरे पंद्रवाड़े में गेहूं की बिजाई कर ली, उनकी भी अच्छा उत्पादन लेने की उम्मीद बंधी हुई है। इस वर्ष गेहूं की बिजाई बाढ़ के कारण कुछ पिछड़ गई है। नवम्बर के दूसरे पंद्रवाड़े में बिजाई करने वाले किसानों की योग्य किस्म चुन कर तथा बिजाई के पीएयू द्वारा सिफारिश किए गए ढंग अपना कर जो गेहूं की बिजाई की गई, वह उग आई है और इसकी जर्मीनेशन संतोषजनक है। आम किसानों ने उन्नत पी.बी.डब्ल्यू.-343, डी.बी.डब्ल्यू.-303, डी.बी.डब्ल्यू.-222, डी.बी.डब्ल्यू.-187, पी.बी.डब्ल्यू.-826 तथा एच.डी.-3226 किस्मों की काश्त की है। ये किस्में आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि गेहूं व जौ का अनुसंधान करने वाली करनाल स्थित संस्था, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय तथा आई.ए.आर.आई. द्वारा विकसित की गई हैं। आई.आई.डब्ल्यू.बी.आर. संस्था द्वारा विकसित किस्मों का संभावित उत्पादन 80 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर से ऊपर बताया गया है। 
गेहूं की फसल के लिए मौसम लगभग ठीक चल रहा है। शुरू में गेहूं को ठंड की ज़रूरत होती है। इस वर्ष किसानों ने बिजाई के लिए समय के अनुसार किस्मों का चयन किया है और किस्मों में विभिन्नता लाई गई है। अधिकतर किसान आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्था नई दिल्ली द्वारा विकसित नई किस्मों एच.डी.-3406, एच.डी.-3385 तथा एच.डी.-3386 के बीजों को प्राप्त करने के लिए भी नई दिल्ली के चक्कर लगाते रहे, परन्तु कुछ किसान ही इस तरह नाममात्र थोड़ी-थोड़ी मात्रा में इन बीजों को लेने में सफल हो सके। अब जो 5-7 प्रतिशत रकबा गेहूं की बिजाई के बिना रहता है, उस पर आलू या मटर के काश्तकार या गन्ना उत्पादक पिछेती गेहूं की बिजाई करेंगे। 
अब आधा दिसम्बर बीत जाने के बाद बिजाई के लिए सिफारिश की गई किस्मों में डी.बी.डब्ल्यू.-173, एच.डी.-3059, एच.डी.-3298,एच.आई.-1621, पी.बी.डब्ल्यू.-771 आदि किस्में शामिल हैं। अब के बाद दिसम्बर के अंत तक फसल की बिजाई करने के लिए किसान इन्हीं किस्मों में से कोई किस्म चुनें।   
विशेषज्ञों के अनुसार उपरोक्त इन किस्मों को मार्च का अधिक तापमान भी प्रभावित नहीं करेगा। ये किस्में पीली कुंगी का मुकाबला करने की समर्था रखती हैं। गेहूं की बिजाई की इच्छा रखने वाले किसानों को अपनी आलू, मटर तथा गन्ने के अधीन ज़मीन खाली करके जितनी जल्दी हो सके, गेहूं की बिजाई कर लेनी चाहिए। गेहूं की पिछेती बिजाई में उगने की शक्ति बढ़ाने का ज़रूरत है। इसलिए बीज को 46 घंटे भिगो कर सूखा लेना चाहिए और फिर ड्रिल या सुपर सीडर, स्मार्ट सीडर या किसी अन्य ढंग से (जो भी वे बिजाई के लिए अपनाते हों) बिजाई कर लेनी चाहिए। प्रति एकड़ 40 किलो के स्थान पर 50 किलो प्रति एकड़ बीज डालना बेहतर रहेगा। दीमक के हमले वाली ज़मीन में बिजाई करने के लिए ज़मीन को पहले क्लोरोपाइरिफास दवाई से संशोधित कर लेना चाहिए। बिजाई 4-6 सैंटीमीटर गहरी, सियाड़ों के मध्य फासला 20-22 सैंटीमीटर से कम करके 15 सैंटीमीटर कर देना चाहिए। ड्रिल तथा सुपरसीडर का इस्तेमाल करने से पहले इसे सही स्थान पर सैट कर लेना चाहिए ताकि खाद तथा बीज सही मात्रा में गिरें। बीज 4 सैंटीमीटर गहरा गिराना चाहिए। अधिक उत्पादन के लिए दो-तरफा बिजाई की सिफारिश की गई है। खाद तथा बीज की सिफारिश की गई आधी मात्रा एक ओर बीजने के लिए तथा दूसरी आधी मात्रा दूसरी तरफ बीजने के लिए डालनी चाहिए। खाद का इस्तेमाल मिट्टी की जांच के आधार पर करना चाहिए। यदि मिट्टी की जांच न की हो तो मध्यम उपजाऊ शक्ति वाली ज़मीनों के लिए यूरिया 110 किलो, सुपरफास्फेट 155 किलो तथा म्यूरेट आफ पोटाश 20 किलो प्रति एकड़ डालना चाहिए। सुपरफास्फेट की बजाय डी.ए.पी. इस्तेमाल किया जा सकता है जो आम किसान डालते हैं। इसकी मात्रा 55 किलो प्रति एकड़ पी.ए.यू. द्वारा सिफारिश की गई है। चाहे अधिकतर किसान 100 किलो (दो थैले) प्रति एकड़ तक भी डाल रहे हैं। उनकी सोच यह है कि अधिक डी.ए.पी. डालने से उत्पादन में वृद्धि होती है। पिछेती लगाई गई गेहूं को सही समय पर लगाई गई गेहूं से 25 प्रतिशत नाइट्रोजन की मात्रा कम कर देनी चाहिए। पूरी फास्फोरस/डी.ए.पी. और पोटाश तथा एक-तिहाई यूरिया बिजाई के समय डाल देना चाहिए। कुंगी आने के पक्ष में किसानों को प्रतिदिन फसल का सर्वेक्षण करना चाहिए। जिन खेतों में पीली कुंगी के लक्ष्ण दिखाई दें, विशेषज्ञों द्वारा सिफारिश की गई दवाइयों का तुरंत छिड़काव कर देना चाहिए ताकि कुंगी आगे बढ़ने से रुक जाए। कुंगी की बीमारी पहले अर्ध-पहाड़ी क्षेत्रों में आती है और फिर इसके दूसरे क्षेत्रों में भी फैल जाने की सम्भावना होती है।