पानी की चोरी

चम्पक वन में आजकल बड़ा हल्ला-गुल्ला फैला हुआ था। कारण था पानी की चोरी। सभी घरों में पानी से भरे हुए छोटे-बड़े सभी बर्तन सुबह खाली मिलते थे। पानी के चोर भी अजीब थे। ये चोर घर में किसी भी चीज को हाथ नहीं लगाते थे, बस केवल पानी की ही चोरी करते थे और पानी के बर्तनों को भी यथास्थान रख जाते थे। लगभग दस दिनों से चम्पक वन में लगातार पानी की चोरी हो रही थी, लेकिन पकड़ में अभी तक कोई नहीं आया था। चूंचू चिड़िया, भोलू भालू, राजा चीता, रानु चूहा, बड़बड़ भेड़िया, लकदक लोमड़ी सभी परेशान थे इस पानी की चोरी से। 
आज सभी चौपाल पर इकट्ठा हुये थे पानी की समस्या पर बात करने के लिये कि आखिर क्यों कोई सब कुछ छोड़ कर केवल पानी की ही चोरी कर रहा है। निश्चय हुआ कि सभी बारी-बारी से रात को जागकर चंपकवन में पहरा देंगे ताकि पानी के चोर का पता लगाया जा सके। 
सबसे पहले पहरा देने कि जिम्मेदारी ली चुंचू चिड़ियां ने लेकिन आधी रात होते-होते वह भी घोंसले मे सो गयी और सुबह फिर पानी गायब। दूसरे दिन ड्यूटी लगाई गई भोलू भालू की। किन्तु भारी शरीर होने के कारण उसकी भी नींद लग गयी सुबह फिर पानी गायब। ऐसे ही कई दिन और बीत गए किन्तु रात की नींद से न तो पहरेदारी हो पा रही थी और न ही पानी के चोर पकड़ में आ रहे थे। 
आज पहरेदारी का जिम्मा उठाया चतुर कौए ने। उसने आज ठान ही लिया था की जैसे भी हो आज चोर का पता लगा ही रहूँगा। नींद न आए इसके लिए उसने अपने शरीर को एक रस्सी से बांध दिया और उसका दूसरा छोर पेड़ की एक शाखा से बांध दिया ताकि जब नींद आये तो जैसे ही उसका शरीर शिथिल हो तो उसके तन से बंधी वह रस्सी खिंच जाये और झट उसकी नींद खुल जाये। 
रात में जब डाल पर बैठा चतुर कौआ चाराें तरफ देख रहा था तो उसने देखा की बगड़ू हाथी और चकमक खरगोश धीरे-धीरे भोलू भालू के घर जा रहे है। चकमक खरगोश के साथ उसके दो दोस्त भी थे। इन दोस्तों और चकमक खरगोश के पास एक-एक बाल्टी भी थी। चतुर कौए ने देखा कि भोलु भालू के घर पहुंच कर चकमक खरगोश और उसके दोस्त तो बाहर ही रुक गये और बगड़ू हाथी धीरे से अंदर गया। वहां उसने पानी का एक बर्तन उठाया और चकमक और उसके दोस्तों की खाली बाल्टी मे उंडेल दिया। फिर चकमक अपने दोस्तों के सहित पानी की बाल्टी लेकर चल दिया। चतुर कौआ भी बिना पंखों का शोर किए उनके पीछे उड़ चला। उसने देखा कि उन तीनों ने बाल्टियों का पूरा पानी चंपकवन की शोभा प्रिया-नदी में खाली कर दिया। इस तरह बगड़ू हाथी एवं चकमक और उसके दोनों दोस्तों ने भोलु भालू के घर का पूरा पानी ले जाकर प्रिया नदी मे खाली कर दिया। अब वो दूसरे घर जाने ही वाले थे की चतुर कौआ ने कांव-कांव करके पूरे चंपकवन को जगा दिया कि पानी के चोर पकड़े गए। बगड़ू हाथी और चकमक खरगोश और उसके दोनों साथी इस शोर से एकदम घबरा ही गए थे। पूरा चंपकवन जाग उठा और सभी ने आकर उन चारों को कसकर बांध दिया और कहा अब सुबह पंचाें के सामने ही सारी बातें होगी। 
सुबह से ही सभी जानवर चंपकवन की चौपाल पर आकर बैठ गए। पंच भी आ गए थे। पानी के चोरों को चौपाल पर लाया गया। पंचों ने चोरों से पूछा कि वह अपने ही चंपकवन में पानी जैसी चीज की चोरी क्यों कर रहे थे। उनके बोलने से पहले ही भोलू बोला-हम इतनी मेहनत से प्रिया नदी से पानी भर-भर कर लाते है और तुम हो कि हमारे पानी को फिर उसी मे डाल आते हो। तुमने ऐसा क्यों किया। 
अब बगड़ू हाथी बोला-भोलू भाई, हमने किसी को परेशान करने की नियत से यह चोरी नहीं की है। हमने तो हम सबकी प्रिया नदी की उदासी को दूर करने के लिए यह पानी की चोरी की है। पूरा चंपकवन चौंक गया। सब एक स्वर मे बोले-प्रिया नदी की उदासी को दूर करने के लिए, हम समझे नहीं। तब बगड़ू हाथी ने बोलना शुरू किया-एक दिन मैं प्रिया नदी के किनारे बैठा था, वहीं यह चकमक खरगोश भी उछलकूद कर रहा था। हम दोनों को प्रिया नदी का किनारा बड़ा अच्छा लग रहा था, हम दोनों उसके पानी से खेल भी रहे थे। तब चकमक बोला-बगड़ू दादा, अपनी प्रिया नदी तो चंपकवन की शान है, इसी के पानी के कारण तो चंपकवन इतना हरा-भरा है और हम सबकी आवश्यकताओं की पूर्ति भी यही करती है। 
तभी प्रिया नदी बोली-पर यह कब तक रहेगा चकमक। तब हम दोनों ने प्रिया नदी से पूछा-क्यों तुम ऐसे क्यों कह रही हो प्रिया नदी? 
तब प्रिया नदी उदास मुंह बना कर बोली-जिस तरह से चंपकवन में सभी मेरे पानी का दोहन कर कर रहे है इससे तो मैं बचूंगी ही कहां। 
क्या मतलब प्रिया नदी हम दोनों चौंके। सभी रोज़ाना आवश्यकता से अधिक पानी भरकर ले जाते है और दूसरे दिन बाकी बचे ढेर सारे पानी को यूं ही इधर-उधर फैला देते है। फिर भर ले जाते ढेर सारा पानी, ऐसे तो मुझमें पानी रहेगा ही कहां पानी खत्म होगा तो मैं तो स्वयं ही खत्म हो जाऊंगी। जब पानी ही नहीं रहेगा तो चंपकवन भी स्वयं ही खत्म होता चला जाएगा न। 
बस तभी मैंने और चकमक ने योजना बनाई पानी चोरी की। इसने अपने और दो दोस्तों को शामिल किया इस योजना में। इस प्रकार तुम लोगों के काम आने के बाद जो पानी बचता था उसे हम प्रिया नदी मे खाली कर आते थे ताकि प्रिया नदी में पानी कम न हो और सुबह तुम भी उसे यूँ ही व्यर्थ न बहा सको। 
बगड़ू हाथी की बात खत्म होते-होते सभी चंपकवनवासी नीची निगाह किए मौन खड़े थे। सभी को अपनी गलती का एहसास हो गया था। सबने ही यह निश्चय किया कि अब से सब अपनी ज़रूरतों के मुताबिक ही पानी लायेंगे, पानी को ऐसे ही व्यर्थ कोई नहीं बहाएगा। 
पंचाें ने बगड़ू हाथी, चकमक खरगोश और उसके दोस्तों को इस अनूठे सबक के लिए ईनाम देकर सम्मानित किया। फिर सब एकत्रित होकर प्रिया नदी के पास गए और उससे माफी मांगी। प्रिया नदी भी खुश हो और लहराने लगी थी। (सुमन सागर)