पश्चिम बंगाल में कांग्रेस चुन सकती है तृणमूल के साथ गठबंधन का विकल्प

नई दिल्ली में आज भारत के घटक दलों की बैठक की पूर्व संध्या पर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के सूत्रों से उपलब्ध सभी संकेत बताते हैं कि कांग्रेस आलाकमान बंगाल में भाजपा से मुकाबले के लिए संयुक्त रूप से 2024 लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए तृणमूल कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन बनाने की इच्छुक है।
इसका मतलब यह है कि अगर कांग्रेस-टीएमसी गठबंधन आकार लेता है तो कांग्रेस को राज्य स्तर पर सी.पी.आई. (एम) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के साथ अपना गठबंधन खत्म करना होगा। अब तक कांग्रेस और सी.पी.आई. (एम) दोनों राज्य में सत्तारूढ़ टी.एम.सी. से लड़ रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्य में उनके शासन की आलोचना करने में सबसे मुखर रहे हैं। वह इस स्थिति पर कायम रहे हैं कि राज्य कांग्रेस सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के साथ गठबंधन में भाजपा और टीएमसी दोनों से एक साथ लड़ेगी।
वर्तमान लोकसभा में, कांग्रेस के पास दो, भाजपा के पास 17 और टी.एम.सी. के पास 23 सीटें हैं। 1964 में अपने गठन के बाद पहली बार सी.पी.आई. (एम) के पास बंगाल से लोकसभा में कोई सीट नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा को 18 सीटें मिलीं, लेकिन आसनसोल में बाद में हुए चुनावों में, टी.एम.सी. ने भाजपा को हरा दिया और इसलिए भाजपा की ताकत घटकर 17 हो गयी। इसके अलावा 2019 के एक और भाजपा विजेता अर्जुन सिंह ने भाजपा छोड़ दी और तृणमूल में शामिल हो गये, हालांकि आधिकारिक तौर पर वह अभी भी भाजपा के लोकसभा सदस्य माने जाते हैं। वहीं बंगाल विधानसभा में भाजपा के विपक्षी नेता शुभेन्दु अधिकारी के पिता और काठी लोकसभा सांसद सिसिर अधिकारी ने टी.एम.सी. से नाता तोड़ लिया है तथा वह अब अपने बेटे का समर्थन कर रहे हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से पिछले पांच वर्षों में बंगाल के चुनावी परिदृश्य में टी.एम.सी. के पक्ष में काफी बदलाव आया है। 2021 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से पता चला कि टी.एम.सी. दक्षिण बंगाल के सभी ज़िलों में भाजपा से अपना खोया हुआ आधार वापस पाने में सफल रही है, लेकिन उत्तर बंगाल में भाजपा का प्रभाव अभी भी बना हुआ है। टीएमसी ने खुद अपना सर्वेक्षण किया है और उससे पता चला कि उत्तर बंगाल की छह लोकसभा सीटों पर जहां 2019 में भाजपा ने जीत हासिल की थी, वहां टीएमसी अपने दम पर उन्हें हराने की स्थिति में नहीं है, लेकिन अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन होता है, तो छह में से कम से कम पांच सीटों पर भाजपा को हार मिल सकती है। सच तो यह है कि कांग्रेस अपने दम पर कोई भी सीट जीतने की स्थिति में नहीं है, लेकिन उत्तर बंगाल की कुछ सीटों पर उसका वोट आधार 5 प्रतिशत से 12 प्रतिशत के बीच होने से टी.एम.सी-कांग्रेस गठबंधन को जीत मिल सकती है।
जहां तक कांग्रेस आलाकमान का सवाल है तो सूत्रों का कहना है कि उसका अपना आकलन कथित तौर पर दिखाता है कि कांग्रेस और सी.पी.आई. (एम) के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा का गठबंधन एक साथ टी.एम.सी. से लड़कर भाजपा को हराने की स्थिति में नहीं है। कांग्रेस के अध्ययन में हाल के चुनावों में सी.पी.आई. (एम) के वोट शेयर का विश्लेषण किया गया है। इसका आकलन बताया गया है कि अगर टी.एम.सी. और सी.पी.आई. (एम) के बीच कोई विकल्प चुनना है, तो 2024 के लोकसभा चुनावों में सीटों की बढ़ोतरी निश्चित करने के लिए टी.एम.सी. के साथ गठबंधन कांग्रेस के लिए वांछनीय है।
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 4 दिसम्बर को टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के साथ अपनी बातचीत में विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक राजनीतिक दलों को बंगाल में संयुक्त रूप से लड़ने की आवश्यकता का उल्लेख किया था, जिस पर वह सहमत हुईं और उन्हें जल्द से जल्द सीट बंटवारे पर बातचीत शुरू करने के लिए कहा। दोनों ने 19 दिसम्बर को ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक में सीट बंटवारे पर चर्चा को आगे बढ़ाने का फैसला किया है।
अनुवर्ती कार्रवाई के रूप में, टी.एम.सी. ने चर्चा के पहले चरण में कांग्रेस को तीन सीटों की पेशकश की है, दो वर्तमान सीटें बरहामपुर और मालदह दक्षिण भी शामिल है। इसके अलावा खबर है कि टी.एम.सी. ने कांग्रेस को रायगंज सीट की पेशकश की है। यह सीट अब भाजपा के पास है। कांग्रेस कम से कम छह सीटों की तलाश में है। लेकिन टी.एम.सी. सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस की सीटों में और बढ़ोतरी इस बात पर निर्भर करेगी कि कांग्रेस असम में टी.एम.सी. को एक सीट और मेघालय में एक सीट पर सहमत होगी। ध्यान रहे कि असम में 14 लोकसभा सीटें और मेघालय को दो लोकसभा सीटें हैं।
टी.एम.सी. उत्तर बंगाल के ज़िलों पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जो भाजपा का सबसे मजबूत क्षेत्र और टी.एम.सी. के लिए सबसे कमजोर क्षेत्र है। दक्षिण बंगाल के ज़िलों में अब टी.एम.सी. का दबदबा कायम है जहां भाजपा को हराने के लिए पार्टी को वस्तुत: किसी समर्थन की ज़रूरत नहीं है। लेकिन उत्तर बंगाल के ज़िलों में 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से भाजपा की ताकत में थोड़ी गिरावट आयी है। फिर भी यह अच्छी संख्या में सीटें पाने के लिए पर्याप्त है। उत्तर बंगाल के ज़िलों की छह सीटों में अलीपुर दुआर, बालुरघाट, कूचबिहार, दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी और रायगंज शामिल हैं। इन सीटों पर भाजपा का वोट शेयर 59 प्रतिशत से लेकर न्यूनतम 40 प्रतिशत तक रहा था।
2014 के लोकसभा चुनाव में टी.एम.सी. को कुल 42 सीटों में से 34 सीटें मिली थीं, जो 2019 के चुनाव में वह घटकर 22 सीटों पर आ गयी। अब टी.एम.सी. फिर से 34 सीटों की उस ताकत को बहाल करने पर काम कर रही है। जहां तक कांग्रेस आलाकमान की बात है, हिंदी पट्टी से पर्याप्त सीटें पाने की उसकी पहले की उम्मीदों को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों के नतीजों के बाद कुछ झटका लगा है। कांग्रेस बंगाल सहित किसी भी राज्य में अपनी मौजूदा लोकसभा सीटें छोड़ने को तैयार नहीं है। यह देखना होगा कि क्या बंगाल कांग्रेस दिल्ली नेतृत्व के अनुरूप चलती है या आलाकमान प्रदेश पार्टी नेतृत्व को संगढन के हित में वाम मोर्चा के साथ गठबंधन करने की अनुमति देता है। (संवाद)