इज़रायल-हमास युद्ध में अन्यों की भूमिका

जब भी किसी एक देश पर आतंकवादी ताकतों का हमला होता है, या दो देशों के बीच टकराव की स्थिति आती है तो देखा गया है कि कोई अन्य देश भी उसमें अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहा होता है। आज के युग में इसे छिपा पाना मुमकिन ही नहीं है। सभी वरिष्ठ पत्रकार इस समय समझ रहे हैं कि मध्य पूर्व में ऐसी एक भी विनाशकारी ताकत नहीं है, जिसने कतर में अपना ठिकाना न बनाया हो। आज इज़रायल- गाज़ा युद्ध में इसकी भूमिका नज़र आने लगी है। दावा कतर का यही है कि वह इस मामले में मध्यस्थता की भूमिका का निर्वाह कर रहा है और उसकी निगाह केवल हमास द्वारा बंधक बनाये गये इज़रायली नागरिकों की रिहाई पर ही केन्द्रित है। दुनिया भर के नागरिकों को यह सुन कर अच्छा भी लग सकता है लेकिन जब कोई इस मामले की तह तक पहुंचने की कोशिश करता है तो तस्वीर का एक दूसरा रुख भी नज़र आने लगता है। इस बात से क्यों इनकार किया जा सकता है कि कतर की प्रतिबद्धता मुस्लिम भाईचारे के साथ है जो मिस्र में राजशाही को उखाड़ फैंकने और इस्लामिक गणतंत्र की स्थापना के इरादे से आरम्भ हुआ था। कतर ने मुस्लिम भाईचारे को सुरक्षा देने और आगे बढ़ाने का काम किया है। इसके लिए मुस्लिम ब्रदरहुड कतर  प्रतिद्वंद्धियों को सबक सिखाने और आतंकवाद को तरजीह देने का काम करता है। अल जजीरा दरअसल मुस्लिम ब्रदरहुड को सदा ठीक बताने जैसा प्रचार करने के कार्य के लिए है। अगर गहनता से अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कतर अमूमन प्रत्येक आतंकवादी संगठन के लिए फंड जुटाने का कार्य कर रहा है। बेशक वह आई.एस.आई. संगठन हो या फिर अलकायदा से अलग हुए संगठन हों, या हमास ही हो जिनकी सहमति सीधे तौर पर मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़ी हो। ऐसे में इज़रायली बंधकों की रिहाई से कैसा जुड़ाव हो सकता है? कतर अपनी संवाद योजना में जिसे मदद करने की बात कह रहा है, उसका वास्तविक उद्देश्य इज़रायलियों को बंधक बनाने वाली ताकतों के सिर पर हाथ रखना ही है। क्योंकि कतर की मंशा यदि इज़रायली नागरिकों के छुटकारे की होती तो वह बिना कोई समय नष्ट किये हमास नेतृत्व को इज़रायल के हवाले कर सकता था। इससे हमास कमज़ोर पड़ जाता और युद्ध को मजबूर पाता कि बंधकों को रिहा कर देता। हमास का शीर्ष नेतृत्व दोहा में ही विद्यमान है। वे शाही ठाठ से रहता है। बताया जाता है कि रोल्स-रायस में सवारी करते हैं। सभी सुविधाएं उनके पास हैं। लेकिन कतर ने यह सब नहीं किया न ही करने वाला है। साफ है कि वह हमास का उपयोग अपने किसी मकसद से ही करना चाहता है। हमास का विचारधारात्मक स्तर किसी से छुपा नहीं है। अनेक क्षेत्रों में वह ़गैर-इस्लामिक सरकारों के खिलाफ लड़ाई लड़ता नज़र आता है। आज हालात कुछ बदल रहे हैं।
सवाल यही बचता है कि कतर को इस सबके लिए जोश या साहस कैसे प्राप्त हुआ? जवाब हैरान कर सकता है कि अमरीका के साथ उसके रिश्तों से लगभग दो दशक पहले कतर ने जब अमरीका से रणनीतिक-साझेदारी कायम की थी तो उसे काफी आलोचना सुननी पड़ी थी। आज वह आतंकवादियों को सीधे हथियार न देकर अमरीकी सुरक्षा कवच में सुरक्षित रह कर अपनी कार्यवाही का मनचाहा उपयोग कर सकता है। क्या कतर नया पाकिस्तान बन चुका है जो आतंकवादियों को पनाह देता है।