क्या अब हाशिये पर चली जाएंगी वसुंधरा राजे ?

राजस्थान में भाजपा विधायक दल के नेता के पद पर पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा का चयन हो चुका है। भजनलाल शर्मा ने मुख्यमंत्री पद की व जयपुर राजघराने की दिया कुमारी तथा डॉक्टर प्रेमचंद बैरवा ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण कर ली है। इसके साथ ही राजस्थान में विधिवत रूप से भाजपा की सरकार काम करने लग गयी है। भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए भी अजमेर उत्तर के विधायक वासुदेव देवनानी का नाम तय कर दिया है। निर्धारित प्रक्रिया के तहत उनका भी विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए चयन हो जाएगा। राजस्थान में भाजपा के 115 विधायक जीत कर आए हैं। इसके साथ ही कई निर्दलीय विधायकों ने भी भाजपा को समर्थन देने के संकेत दिए हैं। ऐसे में भाजपा के नए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पांच साल तक सरकार चलाने में किसी तरह की दिक्कत नहीं होने वाली है।
भजनलाल शर्मा के नेता पद के चुनाव से पहले राजनीतिक विश्लेषक आशंका जता रहे थे कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खुद के अलावा किसी अन्य के नाम पर सहमत नहीं होगी। विधानसभा के चुनाव परिणाम आने के बाद से ही वसुंधरा राजे द्वारा अपने आवास पर विधायकों को बुलाकर लगातार शक्ति प्रदर्शन भी किया गया था। मगर जब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह पर्यवेक्षक बनकर जयपुर आए तो उन्होंने मात्र दो घंटों में ही भजनलाल शर्मा को अगला मुख्यमंत्री घोषित कर वसुंधरा राजे के पूरे खेल को ही बिगाड़ दिया था। इतना ही नहीं भजनलाल के नाम का प्रस्ताव भी वसुंधरा राजे से ही करवाया गया था। विधायक दल की बैठक के दौरान राजनाथ सिंह ने अपनी जेब से एक पर्ची निकालकर वसुंधरा को दी थी। जिस पर भजनलाल शर्मा का नाम लिखा था। राजनाथ सिंह द्वारा दी गयी पर्ची पर लिखे नाम को पढ़कर एक बार तो वसुंधरा सकपका गयी थी। मगर बाद में उन्होंने भजनलाल के नाम का प्रस्ताव कर दिया था।
लोगों का कहना है कि नेता पद के चयन से पहले वसुंधरा राजे व उनके समर्थक पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी, पूर्व विधायक भवानी सिंह राजावत, प्रहलाद गुंजल जैसे कई नेता व विधायक लगातार कह रहे थे कि वसुंधरा राजे जैसी अनुभवी को ही प्रदेश में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाना चाहिए। प्रदेश की खराब वित्तीय स्थिति का सामना वसुंधरा राजे जैसी अनुभवी नेता ही कर सकती है। उनको दो बार सरकार चलाने का अनुभव है। वह पूरे प्रदेश से अच्छी तरह वाकिफ है। मगर वसुंधरा राजे के किसी भी समर्थक की एक भी नहीं सुनी गई और भजनलाल के नाम की घोषणा हो गई। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि जब जयपुर में वसुंधरा राजे विधायकों के साथ शक्ति प्रदर्शन कर रही थी। तब उनके सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह पर भी जयपुर के एक होटल के हाडौती के कुछ विधायकों की बाड़ेबंदी करने की खबरें आई थी। तब भाजपा आलाकमान सतर्क हो गया और वसुंधरा राजे को दिल्ली बुलाया गया। दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा व गृहमंत्री अमित शाह ने वसुंधरा राजे को दो टूक शब्दों में समझा दिया था कि इस बार उनको मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा रहा है। पार्टी नए लोगों को आगे करेगी ऐसे में आपको पार्टी का साथ देना चाहिए। चर्चा है कि पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा व अमित शाह ने वसुंधरा राजे को कड़ाई से कह दिया था कि उन्होंने एक लंबी राजनीतिक पारी खेल चुकी है। इसलिए अब उनको विश्राम करना चाहिए। यदि वह पार्टी के निर्णय के साथ रहेगी तो उनके सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह को पार्टी में आगे बढ़ाया जाएगा।
चर्चा है कि अपने पुत्र दुष्यंत सिंह जो झालावाड़ सीट से चौथी बार सांसद है। उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर वसुंधरा राजे ने पार्टी आलाकमान के निर्णय के साथ रहने में ही अपनी भलाई समझी और उन्होंने चुपचाप पार्टी के निर्देशों का पालन किया। वसुंधरा राजे का पुत्र दुष्यंत सिंह चार बार के सांसद है तथा आगे उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री बनाए जाने की भी संभावना व्यक्त की जा रही है। बहरहाल वसुंधरा राजे ने तो अपने पुत्र के मोह में पार्टी नेतृत्व के समक्ष हथियार डाल दिए हैं। मगर उनको मुख्यमंत्री बनाने की मांग को लेकर बारां अंता के विधायक कंवरलाल मीणा, कालीचरण सर्राफ, प्रताप सिंह सिंघवी, बहादुर सिंह कोली जैसे लोग खुलकर सामने आ चुके हैं। इससे उनकी छवि ज़रूर पार्टी नेतृत्व के सामने दागदार हुई है। हो सकता है आने वाले समय में उन्हें पार्टी द्वारा सरकार या संगठन में कोई जिम्मेदारी भी नहीं दी जाए। पार्टी आलाकमान के निर्देश पर ही वसुंधरा राजे ने भजनलाल शर्मा के मुख्यमंत्री पद का कार्यभार ग्रहण करते समय सचिवालय जाकर उनके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते कि फोटो भी खिंचवाकर आल इस वेल का सन्देश भी दे चुकी हैं। वसुंधरा इतना सब अपने पुत्र कि खातिर ही कर रही हैं। वरना उनकी विद्रोही छवि व लड़ाकू स्वभाव से हर कोई वाफिक हैं।
अब पार्टी ने भी उनके स्थान पर राजपूत नेता के तौर पर जयपुर राजघराने की दीया कुमारी को उप-मुख्यमंत्री बना कर प्रदेश की राजनीति में आगे बड़ा दिया है। दीया कुमारी उनकी तरह बड़े राजपरिवार की बेटी के साथ महिला भी हैं। दीया कुमारी राजसमंद से सांसद व दूसरी बार विधायक बनी है। उन्होंने विधाधर नगर सीट पर राजस्थान में सबसे बड़ी जीत दर्ज की है। दूसरा उप-मुख्यमंत्री अनुसूचित जाति के डा. प्रेमचंद बैरवा को बनाया गया हैं। जो वसुंधरा गुट के माने जाते थे। मगर अब बैरवा सरकार में शामिल हो गये हैं। इसी तरह अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर वसुंधरा के साथ रहने वाले विधायक भी अब एक-एक कर खिसकने लगे हैं।
वसुंधरा राजे स्वयं इस समय पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है। भाजपा में जिस तरह से आलाकमान प्रभावी है। उसको देखकर नहीं लगता है कि वसुंधरा राजे को आगे चलकर पार्टी में कोई और अधिक बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी। मौजूदा संकेतों से तो वसुंधरा राजे का राजनीतिक भविष्य गुमनामी की ओर ही जाता दिख रहा है। उनके कई समर्थकों का इस बार टिकट भी काट दिया गया। मौजूदा हालात को देखकर तो लगता है कि आने वाले समय में वसुंधरा राजे के अन्य समर्थकों को भी पार्टी में प्रभावहीन कर दिया जाये तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। 
बहरहाल राजस्थान में जहां हर बार सरकार बदलने की परंपरा इस बार भी कायम रही है। वही एक बार वसुंधरा राजे एक बार अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनने का सिलसिला टूट गया है। भाजपा ने वसुंधरा राजे के स्थान पर भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनकर पुरानी परंपराओं को समाप्त कर प्रदेश में एक नई राजनीति की शुरुआत की हैं। यह कितनी सफल रहेगी इसका पता तो आने वाले समय में ही चल पाएगा।