़गलत परम्परा की शुरुआत है मुफ्त की योजनाएं

देश में पिछले दिनों पांच विधान सभा चुनाव के परिणाम आये जिसमें तीन राज्यों में भाजपा को सफलता मिली। तेलंगाना में कांग्रेस की जीत हुई जो होना ही था क्योंकि वहां की जनता बदलाव चाहती थी। दूसरी तरफ  कांग्रेस ने वहां छह गारंटियां जनता को दीं, उससे भी जनता प्रभावित हुई क्योंकि कर्नाटक में इसी तर्ज पर वहां कांग्रेस की सरकार बनी थी। जनता आजकल गैस के सिलेंडर या बिजली बिल की माफी के नाम पर वोट देने लगी है। पंजाब एवं दिल्ली इसके उदाहरण हैं। आजकल जनता रेवड़ी संस्कृति से प्रभावित हो रही है। कोई पार्टी आये या जाए, उससे जनता को कोई लेना देना नहीं है,  बल्कि उसे तात्कालिक क्या फायदा हो रहा है, उससे ही मतलब है। मध्य प्रदेश में लाडली बहना योजना से भाजपा को फायदा हुआ। महिलाओं ने जमकर भाजपा के पक्ष में वोट दिया। राजस्थान में वहां की सरकार कुछ भी कर ले, लेकिन वहां की जनता हर पांच साल बाद शासन में परिवर्तन कर ही देती है। गहलोत की सरकार ने बहुत लोक-लुभावन वायदे किए लेकिन वहां की जनता ने उनको वहां से उखाड़ फेंका। 
वहीं हाल छत्तीसगढ़ का हुआ। वहां भी बघेल सरकार को जाना पड़ा जबकि उन्होंने भी जनता के हित में अच्छे काम किये थे, लेकिन कुछ घोटालों जैसे शराब और गोबर खरीद घोटालों के कारण सरकार की छवि धूमिल हुई और रही सही कसर महादेव ऐप ने पूरी कर दी। मिज़ोरम में भी नई नवेली पार्टी ने बाजी मार ली। अब उस पार्टी को वहां काम करके दिखाना होगा। कुल मिलाकर देखा जाए तो सभी राज्यों के परिणाम एक जैसे ही रहे। चार राज्यों में सत्ता परिवर्तन हुआ तो वहीं मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी में वापसी ज़ोरदार तरीके से हुई। सभी जगह एक ही फार्मूला लागू नहीं हुआ। मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के खिलाफ  कोई आक्रोश जनता में कतई नहीं था। वैसे उनको सत्ता से हटाया जाना सही नहीं है। मध्य प्रदेश भाजपा का गढ़ बन चुका है। बाकी राज्यों में भाजपा की उतनी पकड़ नहीं है जितनी मध्य प्रदेश में है। दरअसल सब खेल दलों द्वारा दी गई गारंटियों पर ही कमोबेश हुआ है जिसकी दाल जहां गल गई, वहीं खेल हो गया। इस बार भाजपा ने कर्नाटक की हार से सबक सीख लिया था। इसलिए राजस्थान में सिलेंडर 450 रुपये में देने की गारंटी दे दी। मध्य प्रदेश में लाडली बहना के खाते में चुनाव के बाद 3000 रुपये तक देने की बात थी। मुफ्त की रेवड़ी जनता को बहुत पसंद आ रही है। अब राजनीतिक दलों में मुफ्त की योजनाओं की होड़ सी मची हुई है, लेकिन इसकी भी एक सीमा है, एक दिन इसका घातक परिणाम आएगा।
दुनिया में कोई भी चीज मुफ्त में नही बांटी जा सकती। यह अर्थशास्त्र के सिद्धांत के खिलाफ  है। केन्द्र सरकार ने आगामी पांच साल के लिए 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त में राशन लिए देने की घोषणा कर दी है। यह ऐसी योजना हो गई है कि इसे भी आरक्षण की तरह आने वाली कोई सरकार समाप्त नहीं कर सकती बल्कि इसका दायरा धीरे-धीरे बढ़ता जाएगा। यह गलत परम्परा की शुरुआत हुई है। इससे बाकी जनता पर बहुत बड़ा बोझ पड़ गया है। इससे महंगाई में भी इजाफा होगा। सरकार द्वारा अनाज के समर्थन मूल्य में वृद्धि करने से महंगाई पर सीधा असर होता है।
राज्य सरकार और केंद्र सरकार की इन्हीं नीतियों के कारण देश में इतनी महंगाई है। कोई भी नीति ऐसी होनी चाहिए जिसका देश के सभी नागरिकों को लाभ मिले। अम्बानी से लेकर गांव के मजदूर तक सबको फायदा हो। किसी से लेकर किसी और को देना कोई अच्छी बात नहीं है। आज सभी राजनीतिक दलों को तात्कालिक फायदे के बजाय दीर्घकालिक फायदे के लिए आगे आना होगा। मुफ्त की योजनाएं देश की आर्थिकता पर विपरीत प्रभाव डालती हैं। 
इसका उदाहरण कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश है, जहां कांग्रेस अपने वायदे पूरे करने में सक्षम नहीं दिखाई दे रही। यही कारण था कि तीन राज्यों में कांग्रेस के चुनावी घोषणा-पत्र पर किसी को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन उसके विपरीत तेलंगाना में इन्हीं चुनावी घोषणा-पत्र पर जनता ने विश्वास करके वोट दिया, लेकिन सिर्फ  यही कारण नहीं था बल्कि बीआरएस से जनता ऊब चुकी थी। वहां एंटी इन्कम्बेंसी फैक्टर भी काम कर रहा था। भाजपा के वोट प्रतिशत में इजाफा उसके के लिए सुखद बात रही है। कर्नाटक और तेलंगाना से ही भाजपा को दक्षिण में प्रवेश करने का रास्ता मिल सकता है। (युवराज)