सिख राजनीति के स़फल व्याख्याकार डा. साधु सिंह हमदर्द

जन्मदिन पर विशेष 

साधु स्वभाव स. साधु सिंह ‘हमदर्द’ ने साधुओं की भांति साधना की। पूरी उम्र पढ़ाई की, लेखन किया, परीक्षाएं पास कीं, डिग्रियां हासिल कीं, परन्तु सबसे अधिक लोगों को पढ़ा, जन-जीवन से ज्ञान की बूंद-बूंद एकत्रित करके अपने अनुभव द्वारा लोगों के लिए कलम चलाई और लोगों की हमदर्दी प्राप्त की। वास्तविक ज्ञान यह था। पंजाब में पंजाबी की बात चली तो पंजाब, पंजाबी तथा पंजाबियत के लिए ऐसा अडिग हुए कि जनहित के पहरेदार बन कर लोगों के ‘हमदर्द’ बन गए। अपने जीवन के अंतिम श्वास तक साधु मस्ती में विचरण करते हुए लोगों की हमदर्दी से साधु सिंह ‘हमदर्द’ अपना स़फर चढ़दी कला में रहते हुए सम्पूर्ण कर गए। 
डा. साधु सिंह ‘हमदर्द’ का जीवन पगडंडियों से चलता हुआ मुख्य धारा तक पहुंचा और यह लोगों के लिए प्रेरणादायक बन गया। आप जी का जन्म 1 जनवरी, 1916 को पिता लब्भू राम जी तथा माता खुशहाल कौर के घर गांव पद्दी मट्ठवाली, तहसील बंगा, ज़िला शहीद भगत सिंह नगर में हुआ। आप जी के जन्म के तीन माह पहले ही आपके पिता का निधन हो गया था। 
साधु सिंह बचपन में बड़े ही संजीदा एवं शर्मीले थे। पढ़ाई में अपने सहपाठियों से मेधावी तथा विशेषकर उर्दू भाषा में उनकी रुचि हद से ज़्यादा थी। साधु सिंह की उर्दू की लिखाई भी बहुत सुन्दर थी। उन्हें पुस्तकें पढ़ने का भी बहुत शौक था। बचपन में धार्मिक अस्थान पर कविता पढ़ी तो उत्साह एवं हौसला मिला। स. साधु सिंह ने अपनी पुस्तक ‘याद बनी इतिहास’ में बचपन के समय की यादों को ताज़ा करते हुए बचपन समय के मित्रों तथा कुछ रोचक घटनाओं का ज़िक्र भी किया है। कहा जाता है कि जो समझदार बच्चे अपने घर के हालात को समझते हैं, वे अपने जीवन का मार्ग स्वयं ही बना लेते हैं। साधु सिंह को स्कूल के समय ही देश-प्रेम की लगन लग गई थी और युवा होते इन्कलाबी लहरों का प्रभाव कबूल किया। स. साधु सिंह का पूरा जीवन संघर्षमयी था। 
स. साधु सिंह ‘हमदर्द’ ने सूझवान विद्वानों तथा लोक-मामलों से घुल-मिल कर जीवन जीने वाली शख्सियतों से  गहरी रमज़ें तथा नुक्ते एकत्रित किए। ‘हमदर्द’ जी ने अपने ज़माने के विवेक बुद्धि वाले ज्ञानी शेर सिंह की संगत का आनंद लिया, जो धर्म तथा राजनीति के एक ऐसे उच्चकोटि के विशेषज्ञ थे। स. साधु सिंह पर ज्ञानी शेर सिंह की शख्सियत का गहरा प्रभाव था। देश की आज़ादी के समय ज्ञानी शेर सिंह ने ‘आज़ाद पंजाब’ की रचना की थी। इसी कारण ही समय की नज़ाकत के देखते हुए एक पुस्तक ‘हमदर्द’ जी ने भी लिखी थी। दरवेश राजनीतिज्ञ ज्ञानी करतार सिंह के साथ पिता-पुत्र जैसे संबंध थे। स. साधु सिंह ‘हमदर्द’ ज्ञानी जी के विश्वासपात्र रहे, उनकी राजनीतिक समझ के उपासक तथा व्याख्याकार अनेक प्रशंसकों में से अपनी मिसाल स्वयं थे।  
ज्ञानी करतार सिंह ने साधु सिंह के लिए भी काफी कुछ किया होगा, साधु सिंह जी ने ज्ञानी करतार सिंह बारे कौम का दिमाग, फकीर राजनीतिज्ञ आदि शब्द निर्मित करके इतने ज़ोर से दोहरा-दोहरा कर इस्तेमाल किए कि आम जन तथा विशेषकर सिखों में ज्ञानी करतार सिंह के प्रति स्वाभाविक सम्मान पैदा कर दिया। ज्ञानी जी की राजसी सूझ-बूझ के सूक्ष्म नुक्तों की तस्वीरें बना कर ‘हमदर्द’ जी ने खूब पेश कीं। चाहे अमर सिंह दोसांझ, ज्ञानी शादी सिंह होई भी ज्ञानी करतार सिंह की कृपा के कम पात्र नहीं रहे तथा उन्होंने भी ज्ञानी जी के साथ चलने में कोई कसर नहीं छोड़ी, परन्तु साधु सिंह ‘हमदर्द’ जी का रंग-ढंग अपना ही था।
स. साधु सिंह ‘हमदर्द’ मास्टर तारा सिंह के भी नज़दीक रहे, लड़ते-झगड़ते भी रहे। मास्टर जी के नेतृत्व को चुनौती देना उस समय में कोई आसान बात नहीं थी, परन्तु हमदर्द जी के लिए ऐसा करना एक सामान्य बात थी। मास्टर जी के साथ बढ़ रहे मतभेदों के कारण ‘प्रभात’ समाचार पत्र को छोड़ दिया तथा लम्बे विचार-विमर्श के बाद फिर प्रवाह व जोश के साथ ऐसा जुटे कि अपना समाचार पत्र ‘अजीत पत्रिका’ निकालना शुरू कर दिया। ‘उर्दू अजीत’ के बंद होने के बाद उन्होंने उसी पत्र को ‘पंजाबी अजीत’ बना दिया, जो इस समय पंजाबी का सिरमौर समाचार पत्र है तथा जिसे पंजाबी समाचार पत्रों में सबसे अधिक पढ़ा जाता है।
स. साधु सिंह वास्तव में उर्दू के पत्रकार थे तथा पत्रकारिता के लिए अपना गुरु स. लाल सिंह कमला अकाली को मानते थे। स. हमदर्द जी इतने सूझवान थे कि वह ऐसी विधियां जानते थे कि अ़खबार नवीस जो कहना चाहता है, कह भी दे तथा विरोधी के कुछ हाथ भी न आए। महाशा कृष्ण नानक चंद नाज़ ज़िमींदार अ़खबार के मौलाना ज़़फर अली में कई किस्म की नोक-झोक होती थी। सिखों का यह युवा पत्रकार भी उनके साथ टकराने लगा। जिस समय अकाली नेताओं ने ‘आज़ाद पंजाब’ का नारा लगाया, उस समय महाशा पत्रकारों के हमलों का मुकाबला करने वाले साधु सिंह ‘हमदर्द’ कलम के योद्धा समझे जाते थे।
‘अजीत’ पहले साप्ताहिक के रूप में हाल बाज़ार अमृतसर से प्रकाशित होता था। डा. हरनाम सिंह वोहर, स. महिन्दर सिंह भाटिया मास्टर जी के अनन्य भगत तथा समाचार पत्र के कर्ता-धर्ता समझे जाते थे। प्रिंसीपल गंगा सिंह, मास्टर अजीत सिंह उस समाचार पत्र के मुख्य लेखक थे।
स. साधु सिंह का जालन्धर से प्रभात समाचार पत्र छोड़ने के पीछे स्वतंत्र ‘अजीत पत्रिका’ प्रकाशित करने में बहुत बड़ा जोखिम था। उनकी पत्नी ‘निरंजन कौर’ मुख्य सहायक बने तथा अपने नाक-कान के आभूषण देकर ‘हमदर्द’ जी को भेंट करके मैदान में कूदने का हौसला दिया। ‘हमदर्द’ जी कलम के साधक बन कर डट गए। एक बड़े समाचार पत्र निकालने की सीधी उपलब्धि कर दिखाई तथा अपनी योजना के अनुसार शिखरों को छू लिया।
स. साधु सिंह ‘हमदर्द’ पंजाब की राजनीति की बारीकी समझने वाले तथा सिख राजनीति के आचार्य थे। स. साधु सिंह जी को राजनीतिक शख्सियतों के टकराव से भी स्वयं को बचा कर निकल जाने की समझ थी। साहित्य के क्षेत्र में उन्हें पंजाबी देश-भगत परन्तु पुरातन काव्य भेदों से अवगत तथा रसीया मुणशा सिंह ‘दुखी’ के शार्गिद होने पर गर्व था। केन्द्रीय लेखक सभा के संकटों के समय प्रधान भी बनें, ़गज़ल के मैदान में उन्होंने पंजाबी में बहुत ही लोकप्रियता हासिल की। उन्होंने ऐतिहासिक रंग की पृष्ठ भूमि रख कर नावल लिखे। स. साधु सिंह ‘हमदर्द’ ने अनेक सम्मान प्राप्त किये, राजनीतिक नेताओं के साथ विदेशी दौरे किए। पंजाबी में रोज़ाना ‘अजीत पत्रिका’ को नवम्बर, 1955 ई. को जालन्धर से जारी किया।
‘हमदर्द’ जी आरम्भ से ही इसके सम्पादक थे। ‘अजीत पत्रिका’ 17 जनवरी, 1959 ई. से ‘अजीत’  के नाम से प्रकाशित होना शुरू हुआ तथा ‘हमदर्द’ जी अंतिम समय तक रोज़ाना ‘अजीत’ पंजाबी के मुख्य सम्पादक रहे।
श्री दरबार साहिब अमृतसर पर जून, 1984 ई. को घटित हुआ ‘साका नीला तारा’ ‘भारत’, पंजाब तथा सिख पंथ के इतिहास में बड़ा दु:खद घटनाक्रम था। इस दुखांत का ‘हमदर्द’ जी के दिल पर बहुत प्रभाव पड़ा। उन्होंने रोष स्वरूप जून 1984 को भारत सरकार को ‘पदमश्री अवार्ड’ वापिस कर दिया। सिखों की राजनीति के व्याख्याकार, धर्म के पक्षों से अवगत, झूठी बातों तथा पाखंडियों का पर्दाफाश करने वाले एक निष्काम पहरेदार 66 वर्ष की उम्र में 29 जुलाई, 1984 ई. को गुरु चरणों में विलीन हो गए। स. साधु सिंह ‘हमदर्द’ जी ने पंजाब, पंजाबी तथा पंजाबियत की ज्योति जलाई थी। आज उनके सुपुत्र डा. बरजिन्दर सिंह ‘हमदर्द’ उस ज्योति में मेहनत रूपी तेल डाल कर विश्व भर में और प्रचंड कर रहे हैं। आज विश्व भर में रहते समूचे पंजाबी जहां स. साधु सिंह ‘हमदर्द’ जी को श्रद्धा के पुष्प अर्पित करते हैं, वहीं अकाल पुरख वाहेगुरु के आगे अरदास करते हैं कि वाहेगुरु स. बरजिन्दर सिंह ‘हमदर्द’ को इतनी शक्ति प्रदान करें कि वह कलम की धार से पंजाब को खुशहाली  के मार्ग पर पुन: ला सकें।

-बठिंडा
मो. 98155-33725