क्रूरतम अपराध करते नाबालिग : बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति

अभी हाल ही में एक साथ ऐसी कई घटनाएं (अपराध की खबरें) सामने आईं जिन्होंने समाज के एक बड़े वर्ग को दहलाकर रख दिया है। इन घटनाओं में हत्या, वो भी बेहद बर्बर तरीके से, लूट तथा सामूहिक बलात्कार आदि की क्रूरतम घटनाएं भी शामिल हैं। इसमें कक्षा चार में एक बच्चे द्वारा अपने साथ पढ़ रहे अपने सहपाठी को सौ से ज्यादा बार गोद देने जैसे दिल दहला देने वाली घटना भी शामिल है जबकि कक्षा पांच तक तो बच्चों की प्राथमिक शिक्षा ही चलती है।  लगातार हर तरफ से आ रही ऐसे खबरें, ये जघन्यतम अपराध और इन्हें अंजाम तक पहुंचा रहे नाबालिग मगर हिंसक और क्रूर बच्चे भविष्य के समाज के लिए एक बहुत बड़े खतरे की आहट हैं, जिसे गंभीरता से लिए जाने की ज़रूरत है।  
दिल्ली में एक सिरफिरे, शराबी, नाबालिग कहे जाने वाले युवक ने सुनसान गली में दूसरे युवक से मात्र 350 रुपए लूटने के लिए उसे 60 बार चाकुओं से गोद कर मार डाला और फिर विक्षिप्तों की तरह शव के पास नाचता रहा। एक अन्य घटना में उत्तर प्रदेश में कुछ नाबालिगों ने अपनी ही कक्षा की एक नाबालिग सहपाठी छात्रा का अपहरण कर उसका सामूहिक शोषण किया और वीडियो भी बनाई।  
इन अपराधों और इन्हें जिस क्रूर तरीके से अंजाम दिया गया, उससे क्या कोई भी सहज ही यह अनुमान लगा सकता है कि ऐसा व्यवहार नाबालिग/अवयस्क कर सकते हैं। अफसोस लेकिन यही आज का कड़वा सच है। किसी भी देश के समाज का अपने बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों और बेजुबान पशुओं के साथ किया गया व्यवहार ही उस देश एवं समाज की अच्छी अथवा खराब छवि तैयार करता है। बाल मनोविज्ञान पर शोध कर रही एक संस्था इनोसेंट वॉइस ने हाल ही में जारी की गई अपनी एक रिपोर्ट में इस बात की ओर इशारा किया है कि कोरोना बीमारी और उसकी चपेट में आने से असमय मृत्यु के बाद बेसहारा हुए बच्चों को सुरक्षा, संरक्षण न मिल पाने की वजह से भी बच्चों में डर और हिंसा बढ़ी है हालांकि संस्था की रिपोर्ट बच्चों में बढ़ती इस हिंसक प्रवृत्ति के लिए समाज की बदलती प्रवृत्ति, एकल परिवारों और इंटरनेट मोबाइल आदि का बढ़ता प्रभाव जैसे कारकों पर भी विस्तार से बात कही गई है।  
महानगरीय शहरों में जहां बच्चों के प्रति अपराध, शोषण की घटनाएं ज्यादा घटित होती हैं, देखा गया है कि ऐसे ही शहरों, कस्बों में बच्चों विशेषकर किशोरों में नशे, पारिवारिक कलह, अशिक्षा आदि के कारण इनके व्यवहार में बाल सुलभता की जगह समय से पहले आ रही परिपक्वता इन्हें हिंसक और क्रूर बना रही है। अपराध जगत पर अपनी नज़र रखने वाले मनोविज्ञानी मानते हैं कि पिछले दो दशकों में पूरी दुनिया में बच्चों और किशोरों द्वारा किए गए अपराधों में 16 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है और भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों में यह 29 प्रतिशत तक पहुंच गई है। अपराध मनोविज्ञानी इसे गंभीर चिंता का विषय मानते हुए सरकारों द्वारा इस बढ़ती प्रवृत्ति को संजीदगी से नहीं देखे समझे जाने को भी आत्मघाती मानते हैं। भारत में भी बच्चों और अवयस्क किशोरों के बदलते व्यवहार और अपराध में उनकी बढ़ती भागीदारी एक बड़े खतरे का संकेत है। ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले शहरी आबादी में बच्चों को अच्छा परिवेश, शिक्षा, स्वास्थ्य की उपलब्धता के बावजूद किशोरों का अपराध में लिप्त हो जाना भी कई बातों की ओर इशारा  करता है।  
कुछ वर्षों पूर्व राजधानी दिल्ली में हुए एक सामूहिक शोषण की घटना में किशोर की संलिप्तता और किशोरों को कानूनी संरक्षण के कारण उसे सज़ा नहीं दिए जा सकने पर समाज के भारी रोष को देखते हुए किशोर विशेषकर जो क्रूरतम अपराधों को करने लगे थे, उन्हें भी बाल़िग अपराधी मान कर दंडात्मक कार्रवाई और सजा के लिए संविधान संशोधन के बाद अब 16 से 18 वर्ष के किशोर को बाल़िग मान/समझ कर कार्यवाही की जाने लगी है। इसमें बाल न्यायालय आरोपी की मानसिक, शारीरिक स्थिति और किए गए अपराध को देखकर निर्णय लेते हैं।   इन उपरोक्त परिस्थितियों और उनके परिणामों/प्रभावों के लिए सबसे अधिक पारिवारिक परिवेश, सामाजिक माहौल तथा सरकार प्रशासन द्वारा बच्चों की शिक्षा, सुरक्षा और संरक्षण की समुचित व्यवस्था का न हो पाना जिम्मेदार माना जाता है। देश में बिना किसी सुरक्षा संरक्षण के रह रहे अनेक बच्चों की पहचान करके उनके लिए विशेष उपाय किए जाने से बच्चों के अपराधीकरण पर अंकुश लगाया जा सकता है। तेज़ी से अपने व्यवहार में हिंसक भावना और क्रोध लाते ये बच्चे स्वाभाविक रूप से फिर क्रूर और बेहद संवेदनहीन होते जा रहे हैं और ये बेहद चिंताजनक स्थिति है। समाज, बाल मनोविज्ञानी, संबंधित संस्थाओं और सबसे अधिक सरकार एवं पुलिस प्रशासन को इसके लिए कोई बड़ी और दीर्घकालिक नीति बनानी चाहिए।