पंथक गुटों को ट्रक चालकों की एकता से सबक लेने की ज़रूरत

चाहे यह कथन ‘झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिये’ सदियों से भारतीय सभ्याचार एवं संस्कृति का हिस्सा है परन्तु ये शब्द स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 9 फरवरी, 2014 को जब वह अभी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार ही थे, चेन्नई (मद्रास) में एस.आर.एम. विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए दोहराये थे, परन्तु श्री मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के उपरांत जिस तरह का व्यवहार किया है, वह यह प्रभाव देने लग पड़ा है कि श्री मोदी एक बार जिस बात का फैसला कर लेते हैं, फिर उससे पीछे नहीं हटते। हालांकि कई बार ऐसा हुआ है कि उन्हें पीछे हटना भी पड़ा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण किसान आन्दोलन को माना जाता रहा है। जिस कारण भारत सरकार को कृषि तथा व्यापार के संबंध में बनाये गये तीन कानून वापिस लेने के लिए विवश होना पड़ा था, परन्तु यह लगभग सवा-डेढ़ वर्ष चले लम्बे संघर्ष के बाद ही सम्भव हो सका था। इस दौरान सैकड़ों किसानों की जानें भी गईं परन्तु किसानों की शेष मांगें अभी भी अधर में ही हैं।
परन्तु विगत दिवस ट्रक ड्राइवरों के आन्दोलन ने सिर्फ एक दिन में ही बिना कोई जान गंवाये, बिना किसी तोड़-फोड़ के केन्द्र सरकार को पीछे हटने या झुकने के लिए विवश करके एक नई तथा बड़ी एकता का प्रमाण दिया है कि एकता में कितनी शक्ति है। अबुल मुजाहिद के शब्दों में :
एक हो जायें तो बन
सकते हैं खुर्शीद-ए-मुबीं,
वरना इन बिखरे हुये तारों
से क्या काम बने।
अभिप्राय: एकता आपको चढ़ता सूरज बना देती है और फूट से तो कुछ भी नहीं होता। ़खैर, ट्रक चालकों की एक दिवसीय हड़ताल ने ही सरकार को हिला कर रख दिया। उनकी इस जीत के पीछे की कहानी भी बहुत दिलचस्प है, जो पाठकों के साथ साझा करनी बनती है। हमारी जानकारी के अनुसार ट्रक चालकों की संस्था ए.आई.एम.टी.सी. के प्रधान अमृत लाल मदान के नेतृत्व में इस संस्था ने 27 दिसम्बर, 2023 को ही सभी विपक्षी दलों तथा देश के सभी सांसदों को इस कानून के खिलाफ लिखा, परन्तु एक जनवरी, 2024 को जब इसके विरोध में देश भर में हड़ताल की गई तो लगभग 70 प्रतिशत ट्रकों का पहिया रोक दिया गया तथा सरकारी एजेन्सियों ने इस हड़ताल के और फैलने तथा इसके प्रभावों संबंधी, विशेष रूप से चुनाव नज़दीक होने के कारण इसके राजनीतिक प्रभावों के संबंध में संकेत दिये तो भारत के गृह सचिव अजय भल्ला ने अमृत लाल मदान को फोन किया कि 2 जनवरी को 11 बजे दिल्ली बैठक में पहुंचें। अमृत लाल मदान ने कहा कि वह मुम्बई में हैं, 9 बजे की फ्लाइट से आएं, तो भी वह 12 बजे पहुंचेंगे परन्तु इससे पहले उन्हें अपनी संस्था के पदाधिकारियों के साथ बैठक करनी पड़ेगी, उसके बाद ही बैठक की जा सकती है। हमारी जानकारी के अनुसार जब वह दिल्ली पहुंचे तो इन्टैलीजैंस ब्यूरो के कुछ उच्च अधिकारी उनसे मिले जिस कारण आई.बी. के पंडारा रोड स्थित कार्यालय में मदान तथा ट्रक चालकों के अन्य नेताओं की आई.बी. के उच्च अधिकारियों के साथ बैठक हुई। इसके बाद यह संकेत दे दिया गया कि सरकार की ओर से ‘हिट एंड रन’ का नया कानून वापिस लिये अथवा रोके बिना हड़ताल नहीं रुकेगी। इसके बाद ए.आई.एम.टी.सी. के नेताओं की एक बैठक चैम्सफोर्ड क्लब में हुई, जिसमें संस्था के उप-संयोजक मलकीत सिंह बल्ल तथा जसपाल सिंह दिल्ली सहित 12 नेता शामिल हुये तथा एक ऑनलाइन ‘ज़ूम’ बैठक द्वारा देश भर के प्रदेश पदाधिकारियों से बैठक लगभग दोपहर डेढ़ बजे हुई। बैठक में पूरी एकता के साथ अपनी बात पर डटे रहने का निर्णय हुआ। इस बीच भारत के गृह मंत्री अमित शाह की भी अमृत लाल मदान से टैलीफोन पर बातचीत होने की चर्चा है, जिसमें अमृत लाल ने गृह मंत्री को यह कानून रोके जाने या वापस लिये जाने के बिना हड़ताल वापस लेने से असमर्थता व्यक्त की। पता चला है कि गृह मंत्री ने मदान को कहा कि अब बैठक शाम को सात बजे है, आप उसमें अवश्य आएं। शाम सात बजे नार्थ ब्लाक में बैठक हुई, जिसमें गृह मंत्रालय के अधिकारियों के अतिरिक्त अन्य विभागों के उच्चाधिकारी भी शामिल हुये। ए.आई.एम.टी.सी. के नेता ‘हिट एंड रन’ की नई क्लाज़ नये कानून से हटाने पर अडिग रहे। पता चला है कि इस बीच भारत के गृह सचिव अजय भल्ला बैठक से उठ कर गृह मंत्री अमित शाह के पास गये और एक लिखित नोट लेकर आये कि आपकी सहमति के बिना यह कानून लागू नहीं किया जायेगा। इसके बाद एक प्रैस कान्फ्रैंस की गई और घोषणा की गई कि अभी यह कानून लागू नहीं होगा। 
इसके बाद केन्द्रीय व्यापार एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने ए.आई.एम.टी.सी. के नेताओं को व्यापार एवं उद्योग मंत्रालय के वाणिज्य भवन में रात्रिभोज पर बुलाया और इस बीच रात के 12 बजे तक अनौपचारिक बातचीत में ट्रक आप्रेटरों की अन्य मांगों पर विचार-विमर्श होता रहा, जिसमें अधिकतर मांगें माने जाने के मौखिक आश्वासन भी मिले बताये जाते हैं, अर्थात दुनिया झुकती है जब कोई झुकाने वाला आ जाता है, परन्तु शर्त सिर्फ आपसी एकता की होती है।    
सिख कब समझेंगे?
एका है तो जीत तुम्हारी पक्की है,
फूट पड़ी तो किस्मत भी फिर फूट गई।
(लाल फिरोज़पुरी)
सिखों की किस्मत पहले दिल्ली पर कब्ज़े के समय पड़ी जरनैलों की फूट के समय फूटी, फिर महाराजा रणजीत सिंह के निधन के बाद पड़ी फूट। वैसे इससे भी पहले बाबा बंदा सिंह बहादुर का शासन भी सिखों की आपसी फूट के कारण ही गया था, परन्तु आज़ाद भारत में अकाली दल में मास्टर तारा सिंह तथा संत फतेह सिंह के नेतृत्व में अकाली दल की गुटबाज़ी जो सिखों की आपसी लड़ाई बन गई और जट्ट-भापे का प्रश्न पैदा कर गई, सिखों का भाग्य खराब करने का आधार बनी। इसके बाद जब जत्थेदार जगदेव सिंह तलवंडी ने बंदूकों तथा हथियारों के बल पर जत्थेदार मोहन सिंह तुड़ से अकाली दल की प्रधानगी छील ली तो मझैल तथा मलवई का विवाद भी शुरू हुआ। इसके बाद चाहे अकाली दल ने शासन किया परन्तु उनमें भी आंतरिक फूट कायम रही। कभी बादल-टोहरा-तलवंडी तथा कभी कुछ और। इस बीच खाड़कू गुटों में भी आपसी फूट ही सिखों का बड़ा नुकसान करती रही। सरकार तो चाहे सिखों के सदैव खिलाफ ही रही। 1984 का नरसंहार तथा श्री दरबार साहिब पर हमला किसी भी सिख नेता को बरी-उल-जिम्मा नहीं करता। गलतियां सभी ने कीं, जिनके पास सरकार थी, स्वाभाविक तौर पर उनकी गलतियां बड़ी मानी जाती हैं। सिमरनजीत सिंह मान के उभार के समय भी एकता नहीं  हुई, सिर्फ ड्रामे ही हुए। कई लोग जो उस समय बादल दल की सरकार में थे, अब अकाली दल से बाहर जाकर सिर्फ बादल को दोष दे रहे हैं, यह उचित नहीं है। उन्होंने यदि पार्टी के भीतर कोई विरोध किया भी है तो उसका कोई मूल्य इसलिए नहीं, क्योंकि वे सत्ता का लगातार आनंद लेते भी रहे। इस बीच जब भी अकाली दल में एकता हुई तो यह एकता सिर्फ सामयिक तौर पर समय आने पर दूसरे गुट की टांग खींचने की नीयत से ही होती रही। हम समझते हैं कि गलतियां सभी ने की हैं, किसी ने कम और किसी ने अधिक।
आज स्थिति यह है कि सिखों के पास कोई सर्व-स्वीकार्य नेता नहीं। नि:संदेह अभी भी सबसे अधिक ताकतवर गुट सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व वाला अकाली दल ही है। चाहे इस बीच सिमरनजीत सिंह मान ने लोकसभा सीट जीत कर उपलब्धि प्राप्त की है, परन्तु वह अभी भी हाशिये पर ही चल रहे हैं। 
एक घटना याद आ रही है। मार्च 1947 की बात है। उस समय पंजाब के प्रधानमंत्री (मुख्यमंत्री) मलिक ़िखज्ऱ हयात खान थे जो सिखों तथा हिन्दू विधायकों की मदद से मुख्यमंत्री बने थे। उस समय मुस्लिम लीग को पास 69 विधायक थे और ़िखज्ऱ हयात खान की यूनियनिस्ट पार्टी के पास सिर्फ 10 विधायक थे। ़िखज्ऱ हयात ने मुस्लिम लीग के दबाव तथा सिख विधायकों द्वारा समर्थन वापस लेने के खतरे के दृष्टिगत त्याग-पत्र दे दिया। उल्लेखनीय है कि ़िखज्ऱ हयात खान तथा उनके पिता स्वर्गीय प्रधानमंत्री पंजाब सर सिकंदर हयात खान की यूनियनिस्ट पार्टी लगातार अखंड भारत के पक्ष में तथा पाकिस्तान के विरोध में रही थी, परन्तु गौर करें कि उस समय लाहौर में मुस्लिम लीग का अधिवेशन चल रहा था और जब ़िखज्ऱ हयात खान के त्याग-पत्र की बात पहुंची, इसे पाकिस्तान की स्थापना के लिए बड़ी बात समझते हुए मंच से नारे लगाए गये : 
नयी ़खबर ये आई है,
़िखज्ऱ हमारा भाई है।
साफ है कि पाकिस्तान के समर्थक मुसलमानों ने सारी उम्र परिवार द्वारा पाकिस्तान का विरोध करने वाले ़िखज्ऱ को वापस लौटने पर अपना भाई करार दे दिया, परन्तु हमें समझ नहीं आती कि जब हम इतिहास के सिख नेतृत्व की अनुपस्थिति के सबसे भयानक दौर में से गुज़र रहे हैं तो हम एकता क्यों नहीं कर सकते। हम समझते हैं कि अब जब सुखबीर सिंह बादल अपनी गलतियों की माफी मांग कर चाहे विवश होकर ही सही, सिख मांगों तथा सिख परम्पराओं की ओर लौट रहे हैं तो उनका स्वागत करना चाहिए, क्योंकि हमारे पास अभी कोई ऐसा अन्य संगठन नहीं जिसके पास बादल दल जितनी ताकत बची हो। नोट करने वाली बात है कि यदि हम बादल दल को समाप्त कर देते हैं तो हमसे कोई नया नेतृत्व भी नहीं उभरेगा, तो यह स्थिति सिख कौम को और भी रसातल की ओर ले जाएगी।इस बीच पता चला है कि संयुक्त अकाली दल के अध्यक्ष सुखदेव सिंह ढींडसा की कल गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक हुई है। चर्चा है कि शाह ने अकाली दल बादल के साथ किसी समझौते की सम्भावना से फिर इन्कार कर दिया है। 
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