2024 के अभियान हेतु सड़क पर उतरेंगे नितीश!

जब से बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने पार्टी की कमान सम्भाली है, तब से महागठबंधन के भागीदार सोच में हैं कि क्या यह फैसला जानबूझ कर कुमार के लिए एक बार फिर से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में जाने के अनुकूल माहौल बनाने के लिए तैयार किया गया था या ‘इंडिया’ गठबंधन पर दबाव डालने के लिए या सिर्फ राष्ट्रीय मंच पर सुर्खियां बटोरने के लिए। हालांकि नितीश के जद (यू) की कमान संभालने से यह सुनिश्चित हो जाएगा कि ‘इंडिया’ गठबंधन के संचालन, विपक्ष की गतिविधियों को प्रभावित करने तथा मार्गदर्शन करने में उनकी प्रमुख भूमिका होगी। ललन सिंह कोई दिग्गज नेता नहीं रहे हैं। उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता जो नितीश को प्राप्त है। जद (यू) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपनाये गए राजनीतिक प्रस्तावों में नितीश को ‘इंडिया’ गठबंधन का वास्तुकार बताया गया, उनकी नेतृत्व योग्यताओं को उभारा गया और ‘गठबंधन में बड़ी पार्टियों की अधिक ज़िम्मेदारी है’ की अपील की गई है। इसने नितीश को ‘पिछड़े, अति पिछड़े, वंचित वर्गों, अल्पसंख्यकों तथा करोड़ों बेरोज़गार नौजवानों की उम्मीद’ के रूप में भी प्रशंसा की गई। ऐसे प्रतीत हो रहा है कि अपनी अनदेखी से परेशान नितीश ने विपक्ष में अपना नेतृत्व कायम करने के लिए स्वयं ही सड़क पर उतरने का फैसला किया है। के.सी. त्यागी ने कहा, ‘राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने फैसला किया कि नितीश तथा पार्टी देश भर में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव बनाने हेतु जनवरी के मध्य से (लगभग उसी समय जब राहुल गांधी अपनी भारत न्याय जोड़ो यात्रा शुरू करने वाले हैं) देशव्यापी अभियान चलाएगी।’ त्यागी ने कहा, ‘जनवरी के मध्य में नितीश बिहार की भांति राष्ट्रीय स्तर पर जाति आधारित जनगणना करवाने की मांग के लिए झारखंड से एक देशव्यापी अभियान शुरू करेंगे।’ बैठक में पार्टी ने बिहार से बाहर उत्तर प्रदेश, झारखंड तथा कुछ अन्य राज्यों में कुछ सीटों पर चुनाव लड़ने का भी फैसला किया है। बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण को ‘ऐतिहासिक पहल’ करार देने वाला एक प्रस्ताव भी पारित किया गया। नितीश को अपनी पार्टी के मामलों पर सीधा नियंत्रण मिलने को जद (यू) के समूह नेताओं को एकजुट रखने के उद्देश्य से उठाया गया एक कदम माना जा रहा है, इस संभावना के दौरान कि मौजूदा भागीदार आर.जे.डी.  तथा मित्र से दुश्मन बनी भाजपा दोनों नितीश के गुट में सेंध लगाने की कोशिश कर सकते हैं। 
‘आप’ और कांग्रेस के बीच गठबंधन मुश्किल
सीटों के विभाजन को लेकर ‘आप’ और कांग्रेस के बीच खींचतान काफी बढ़ गई है, क्योंकि कांग्रेस ने पंजाब में 8 और दिल्ली में 3 सीटों की मांग की है। इस संदर्भ में समझा जाता है कि कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब कांग्रेस विधायक दल के नेताओं, प्रताप सिंह बाजवा और पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पी.पी.सी.सी.) के प्रधान अमरिन्दर सिंह राजा वडिं़ग के साथ आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन की संभावना बारे चर्चा करने के लिए बैठक की है। इसके विपरीत कांग्रेस की पंजाब इकाई ‘आप’ के साथ गठबंधन के प्रस्ताव का पुरज़ोर विरोध करती आ रही है। 
विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि हमेशा कैडर चुनाव लड़ता है, लेकिन पार्टी वर्कर ही प्रदेश में ‘आप’ के साथ गठबंधन को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। पार्टी के कुछ नेता कुल 13 सीटों में से कम से कम 8 सीटों की मांग कर रहे हैं, जिसमें 6 मौजूदा सांसदों (आनंदपुर साहिब से मनीश तिवाड़ी, अमृतसर से जी.एस. औजला, फतेहगढ़  साहिब से डा. अमर सिंह, फरीदकोट से मुहम्मद सदीक, खडूर साहिब से जे.एस. गिल और लुधियाना से रवनीत सिंह बिट्टू) की सीटें शामिल हैं।
सीटों के विभाजन के लिए योजना तैयार
कांग्रेस बिहार और उत्तर प्रदेश में सीटों के विभाजन की व्यवस्था के लिए सक्रिय तौर पर चर्चा में लगी हुई है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने 80 लोकसभा सीटों में से 21 पर एक मज़बूत चुनाव रणनीति बनाने के लिए कमर कस ली है। 40 लोकसभा क्षेत्रों वाले प्रदेश बिहार में कांग्रेस 10 से 12 सीटों पर चुनाव लड़ने के बहु अभिलाषी लक्ष्य के लिए पूरी तरह तैयार है। कांग्रेस का लक्ष्य महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक मत आधार वाले चुनाव क्षेत्रों में अपनी हाज़िरी का लाभ उठाना है, जो समाजवादी पार्टी के लिए भी अनुकूल क्षेत्र है। कांग्रेस उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छुक है, जिनमें रायबरेली, अमेठी, सुलतानपुर, लखनऊ, मुरादाबाद, बिजनौर, प्रतापगढ़, कानपुर, अलीगढ़, फारूखाबाद, झांसी, बाराबंकी, गौंडा, धौरहरा, खेड़ी, सहारनपुर, बहराइच आदि शामिल हैं। हालांकि यू.पी. कांग्रेस नेताओं ने प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ संभावित गठबंधन को देखते हुए पार्टी को सीटों का अच्छा हिस्सा मिलने पर शक प्रगट करते हुए, तीन हिन्दी भाषायी राज्यों में कांग्रेस की हाल ही में हुई हार के मद्देनज़र समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के साथ कड़ी सौदेबाज़ी की संभावना जताई है। इस दौरान सूत्रों के मुताबिक समाजवादी पार्टी राज्य में कांग्रेस के लिए 12 से अधिक सीटें छोड़ने को तैयार नहीं है, लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस सीटों के विभाजन के लिए 2009 को आधार बनाना चाहती है।
‘इंडिया’ गठबंधन में बसपा की चर्चा  
बसपा को लेकर ‘इंडिया’ गठबंधन के भीतर चर्चा अभी भी जारी है, कथित तौर पर कांग्रेस इसे लेकर काफी उत्साहित है, परन्तु समाजवादी पार्टी (सपा) इसे रोक रही है। सूत्रों के अनुसार दोनों पक्ष एक बार फिर एक-दूसरे के सम्पर्क में हैं, हालांकि मायावती के घोषणा की थी कि उनकी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। जबकि कांग्रेस का मानना है कि बसपा से गठबंधन करने से दोनों पार्टियों को दलित वोट अपने पक्ष में एकजुट करने में मदद मिलेगी और साथ ही यह भी सुनिश्चित बन सकेगा कि मुस्लिम वोट किसी तरह भी न विभाजित हों। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बसपा तथा कांग्रेस में किसी भी संभावित गठबंधन से संसदीय चुनाव से पहले नये राजनीतिक समीकरण बनने की संभावना है। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी कुल 80 में से 65 सीटें अपने लिए चाहती है, जबकि कांग्रेस के लिए 10 तथा राष्ट्रीय लोक दल  (आर.एल.डी.) के लिए 5 सीटें छोड़ती है। उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में सीटें समाजवादी पार्टी को कमांडिंग स्थिति में रख सकती हैं। (आई.पी.ऐ.)