चांद-सूर्य के बाद ब्रह्मांड के रहस्यमयी राज़ खोलेगा इसरो

पहले चंद्रमा, फिर सूर्य और अब सौरमंडल के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 2024 का आगाज एक और शानदार उपलब्धि के साथ किया है। 2023 में चंद्रयान-3 मिशन के जरिये चांद पर पहुंचने और आदित्य एल-1 मिशन के जरिये सूर्य तक चुनौतीपूर्ण सफर की शुरुआत के बाद इसरो द्वारा इस साल अंतरिक्ष क्षेत्र में पहला कदम बढ़ाते हुए 1 जनवरी को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से अपने बाहुबली ‘पीएसएलवी’ के जरिये ‘एक्सपोसैट’ (एक्सरे पोलारिमीटर सैटेलाइट) सफलतापूर्वक लांच किया गयाए जो सौर मंडल में ब्लैक होल का अध्ययन करेगा। इसरो का यह सैटेलाइट 650 किलोमीटर की ऊंचाई पर निर्धारित पृथ्वी की निचली कक्षा में तैनात हो चुका है, जो ब्रह्मांड के 50 सर्वाधिक चमकने वाले स्रोतों का गहन अध्ययन करेगा। देश का यह पहला और दुनिया का दूसरा मिशन है, जो एक्स किरणों का डेटा संग्रहीत कर ब्लैक होल और न्यूटॉन तारों का अध्ययन करेगा। इस मिशन की लांचिंग के साथ ही भारत दुनिया का दूसरा ऐसा देश बन गया है, जिसने ब्लैक होल और न्यूट्रॉन तारों के अध्ययन के लिए विशेष खगोल विज्ञान वेधशाला को अंतरिक्ष में भेजा है। इससे पहले अमरीका की नेशनल एयरोनॉटिक्स स्पेस एजेंसी (नासा) ने सुपरनोवा विस्फोटों के अवशेषों, ब्लैक होल द्वारा उत्सर्जित कण धाराओं और अन्य ब्रह्मांडीय घटनाओं के अध्ययन के लिए दिसम्बर 2021 में इमेजिंग एक्सरे पोलरिमेट्री एक्सप्लोरर (आईएक्सपीई) मिशन लांच किया था, जिसके जरिये वर्तमान में ब्लैक होल सहित अंतरिक्ष में मौजूद अन्य चीजों का अध्ययन किया जा रहा है।
‘एक्सपोसैट’ को लांच करने के लिए इसरो ने 44.4 मीटर लम्बे और 469 किलोग्राम वजनी अपने भरोसेमंद पीएसएलवी रॉकेट (पीएसएलवी-सी58) का उपयोग किया, जिसकी यह 60वीं उड़ान थी। इससे पहले पीएसएलवी की 59 उड़ानें हो चुकी हैं, जिनमें से केवल दो लांच ही असफल रहे थे। सौरमंडल के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए इसरो ने अपने मिशन की शुरुआत 2017 में की थी, जिस पर कुल साढ़े नौ करोड़ रुपये का खर्च आया है। खगोल विज्ञान के सबसे बड़े रहस्यों में से एक ब्लैक होल के बारे में जानकारी जुटाने के लिए इसरो द्वारा लांच किए गए करीब 1100 किलोग्राम वजनी सैटेलाइट एक्सपोसैट में दो पेलोड्स हैं, ‘पोलिक्स’ (पोलरीमीटर इंस्ट्रूमेंट इन एक्सरे) तथा ‘एस्पेक्ट’ (एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी और टाइमिंग) और यह सैटेलाइट ब्लैक होल, न्यूट्रॉन तारे (तारे में विस्फोट के बाद उसके बचे अत्यधिक द्रव्यमान वाले हिस्से), एक्टिव गैलेक्टिक न्यूक्लियाई, पल्सर इत्यादि विभिन्न खगोलीय स्रोतों की जांच करेगा, जिसकी मिशन अवधि करीब पांच वर्ष है। ब्लैक होल ब्रह्मांड में मौजूद ऐसा ऑब्जेक्ट है, जिसका गुरुत्वाकर्षण बल सबसे ज्यादा होता है जबकि न्यूट्रॉन सितारों का घनत्व सबसे ज्यादा होता है। ब्लैक होल में गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा होता है कि उसमें से प्रकाश भी नहीं निकल पाता। इसलिए हम उसे देख नहीं पाते। चूंकि वे दिखते नहीं हैं, इसलिए उनके अध्ययन के लिए विशेष चीजों की ज़रूरत होती है। एक्सरे टेलीस्कोप ब्लैक होल्स के साथ कुआसार्स, सुपरनोवा और न्यूट्रॉन तारों जैसी दूसरी एक्सरे छोड़ने वाली चीजों के अध्ययन में मदद करता है। ब्रह्मांड और इसके कामकाज के रहस्यों को समझने के लिए इन चीजों का अध्ययन ज़रूरी है। एक्सपोसैट एक तरह से रिसर्च के लिए इसरो की एक वेधशाला है, जो अंतरिक्ष से ब्लैक होल और न्यूट्रॉन तारों के बारे में ज्यादा जानकारी जुटाएगी।
एक्सपोसैट में लगा पहला उपकरण ‘पोलिक्स’ रमन शोध संस्थान द्वारा बनाया गया है जबकि ‘एक्सपेक्ट’ को यूआर राव उपग्रह केंद्र बेंगलुरू ने बनाया है। पोलिक्स 8.30 केवी सीमा के ऊर्जा बैंड का अध्ययन करेगा जबकि एस्पेक्ट पेलोड 0.8-15 केवी सीमा में स्पेक्ट्रोस्कोपिक जानकारी देगा। पोलिक्स को एक्स-रे उत्सर्जन के ध्रुवीकरण को मापने के लिए जबकि एस्पेक्ट को एक्स-रे उत्सर्जन के स्पेक्ट्रम और समयावधि को मापने के लिए डिजाइन किया गया है। पोलिक्स एक ध्रुवमापी उपकरण है, जो एक्स-रे उत्सर्जन के ध्रुवीकरण को मापता है और एक बड़े क्षेत्र के दर्पण और एक संवेदनशील संसूचक का उपयोग करता है। इसी प्रकार एक्सपेक्ट एक स्पेक्ट्रोस्कोप और एक समय मापक है, जो एक्स-रे उत्सर्जन के स्पेक्ट्रम और समयावधि को मापता है। पोलिक्स एक्स-रे फोटॉन पर ध्रुवीकरण फिल्टर का उपयोग करके उनके कम्पन की दिशा का पता लगाएगा। यह मध्यम एक्स-रे ऊर्जा सीमा (8-30 केवी) में 0.5 प्रतिशत धु्रवीकरण मापन का पता लगा सकता है, जिससे ब्रह्माण्डीय चुंबकीय क्षेत्रों, ब्लैक होल के जेट वक्रों और सुपरनोवा अवशेषों के ध्रुवीकरण आचरण का अध्ययन करने में आसानी होगी। एक्सपेक्ट उच्च-रिज़ॉल्यूशन ग्रेटिंग का उपयोग करके एक्स-रे उत्सर्जन के स्पेक्ट्रम को अलग करने के साथ फोटॉनों के आगमन समय को रिकॉर्ड करेगा। यह 0.8-15 केवी की ऊर्जा सीमा में उच्च-रिजॉल्यूशन स्पेक्ट्रम और मिली सैकेंड समय रिजॉल्यूशन प्रदान करेगा, जिससे एक्स-रे बाइनरी प्रणालियों में सामग्री के प्रवाह, न्यूट्रॉन तारों के भौतिक गुण और ब्लैक होल के निकटवर्ती वातावरण के अध्ययन में मदद मिलेगी।
एक्सपोसैट के साथ इसरो द्वारा 10 अन्य पेलोड्स की भी लांचिंग की गई है, जिनमें स्पेस कम्पनी ‘टेक मी 2’ द्वारा बनाया गया ‘रेडिएशन शील्डिंग एक्सपेरिमेंट मॉड्यूल’, एलबीएस महिला तकनीकी संस्थान द्वारा तैयार किया गया महिलाओं का बनाया उपग्रह, केजे सोमैया तकनीकी संस्थान द्वारा शौकिया तौर पर बनाया गया रेडियो उपग्रह ‘बिलीफसैट’, इंस्पेसिटी स्पेस लैब द्वारा बनाया गया ‘ग्रीन इम्पल्स ट्रांसमीटर’, ध्रुव स्पेस कम्पनी द्वारा बनाया गया टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर उपग्रह ‘लांचिंग एक्सपीडिशंस फॉर एस्पायरिंग टेक्नोलॉजीज’, बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस द्वारा विकसित किए गए दो उपग्रह रुद्र 0.3 एचपीजीपी और आर्का 200, इसरो के पीआरएल द्वारा बनाया गया ‘डस्ट एक्सपेरिमेंट’, विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र द्वारा बनाया गया फ्यूल सेल पावर सिस्टम और सिलिकॉन आधारित उच्च ऊर्जा सेल शामिल हैं।
एक्सपोसैट के प्रमुख उद्देश्यों में एक्स-रे उत्सर्जन के ध्रुवीकरण के अध्ययन से ब्रह्मांड के बारे में समझ को बेहतर बनानाए एक्स-रे खगोलीय स्रोतों की प्रकृति और उत्पत्ति को समझनाए खगोलीय घटनाओं के दौरान एक्स-रे उत्सर्जन में परिवर्तन का अध्ययन करना इत्यादि शामिल हैं। एक्सपोसैट एस-बैंड संचार प्रणाली सौर पैनलों के जरिये कार्य करेगा। एस-बैंड टेलीमेट्री और ट्रैकिंग डेटा प्रणाली वास्तविक समय और संग्रहीत डेटा को पृथ्वी स्टेशनों तक पहुंचाता है। इसरो द्वारा विकसित विशेष सॉफ्टवेयर ध्रुवीकरण और स्पेक्ट्रम डेटा का विश्लेषण करते हुए वैज्ञानिक परिणाम तैयार करेंगे। ईशाना, श्रीहरिकोटा, बेंगलुरु इत्यादि इसरो के विभिन्न ग्राउंड स्टेशन एक्सपोसैट के साथ संचार बनाए रखेंगे। एक्सपोसैट के ध्रुवीकरण माप ब्रह्मांड में ऊर्जा के प्रसार के बारे में हमारी समझ को बेहतर बनाने में मदद करेंगे जबकि एक्सपोसैट के स्पेक्ट्रम और समयावधि के माप एक्स-रे खगोलीय स्रोतों की प्रकृति और उत्पत्ति को समझने में सहायक होंगे। कुल मिलाकर, एक्सपोसैट के माप खगोलीय घटनाओं के दौरान एक्स-रे उत्सर्जन में परिवर्तन का अध्ययन करने में वैज्ञानिकों की बड़ी मदद करेंगे।
बहरहाल, एक्सपोसैट मिशन भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान में एक बेहद महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है, जो एक्स-रे खगोलीय विज्ञान के क्षेत्र में हमारे ज्ञान को बढ़ाने में मदद करेगा। इसरो का यह मिशन मर चुके तारों को समझने की कोशिश करेगा और एक्स-रे फोटोन तथा पोलराइजेशन की मदद से एक्सपोसैट ब्लैक होल और न्यूट्रॉन सितारों के पास रेडिएशन का अध्ययन करेगा। वैज्ञानिकों द्वारा उम्मीद जताई जा रही है कि एक्सपोसैट वैश्विक स्तर पर खगोल विज्ञान समुदाय को पर्याप्त लाभ पहुंचाएगा। एक्सपोसैट द्वारा जुटाया गया डेटा भविष्य में लांच होने वाले और ज्यादा उन्नत एक्स-रे ध्रुवीकरण मिशनों के लिए आधार तैयार करेगा और एक्सपोसैट के अनुभव का उपयोग करके भारत भविष्य में अन्य प्रकार के खगोलीय मिशनों को विकसित कर सकता है। एक्सपोसैट द्वारा प्राप्त ज्ञान खगोल भौतिकी, ब्रह्मांड विज्ञान और अन्य वैज्ञानिक क्षेत्रों में हमारे ज्ञान को व्यापक बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा। भारत अपने इस मिशन के जरिए ब्रह्मांड के सबसे अनोखे रहस्यों को उजागर करने की कोशिश करेगा।

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