क्या लक्षदीप को पर्यटन का केन्द्र बनाया जा सकता है? 

ह मारे देश में मनमोहक, सुंदर और प्राकृतिक उर्जा से भरे देखने योग्य और एक सैलानी के लिए आकर्षण से भरे स्थानों की कोई कमी नहीं है। एक ओर स्वर्ग सा सुंदर कश्मीर है तो पूरे भारत में दूसरे ऐसे पर्यटक स्थल हैं जो दुनिया भर के लोगों का मन मोह लेने के लिए काफी हैं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लक्षद्वीप यात्रा ने सैर सपाटा करते रहने वाले लोगों के मन में यह इच्छा जगाई कि एक बार तो यहां जाया जाये। परंतु इसे विशाल पर्यटक स्थल बनाने से पहले कुछ सावधानियां ज़रूरी है।
प्राकृतिक छटा
सन् 2016 के सितंबर माह के अंतिम सप्ताह में लक्षद्वीप जाना हुआ। विज्ञान प्रसार के इंडिया साइंस चैनल के लिये समुद्री पानी से पीने का पानी और बिजली प्राप्त करने की टेक्नोलॉजी पर फिल्म बनानी थी। यह संयंत्र यहां नेशनल इंस्टिटयूट ऑफ  ओसियनोग्राफी के सहयोग से लगाया गया है। इस टेक्नोलॉजी से यह संभव हो पाएगा कि यहां जीवन के लिए अनिवार्य ये दोनों चीजें मिल सकें।
जान-पहचान
कोच्चि से हवाई यात्रा कर अगाति हवाई अडडे पहुंचे तो उतरने पर एहसास हुआ कि प्रकृति की गोद में आ गए हैं। एकदम नीला आसमान और ताजी हवा के झोंके अपनी मंद गति से बहुत सुखकर लग रहे थे। लाउंज में आये तो स्थानीय लोगों ने इस तरह स्वागत किया कि हम उनके कोई पुराने परिचित हैं। यह बता दें कि यहां आने के लिए परमिट लेना पड़ता है और उसमें जरूरी यह है कि यहां रहने के सीमित साधनों में कोई स्थान उपलब्ध है या नहीं, अगर नहीं तो फिर लंबा इंतजार भी करना पड़ सकता है। हालाकि हम सरकारी संस्थान के लिए फिल्म बनाने आये थे फिर भी काफी जुगाड़ करना पड़ा, लेकिन यहां पहुंचने पर सब परेशानी भूल गए।
हमें कावरात्ती जाना था तो हमें अगाति से फैरी लेनी पड़ी। कावरात्ती पहुंच कर वाहन से बाहर का नज़ारा देखते हुए होटल पहुंचे जो एक बहुमंज़िला इमारत थी पर लिफ्ट की सुविधा नहीं थी। रास्ते में जो दृश्य था, उसमें मामूली तौर से बनी सड़क, किनारों पर झाड़ियों के झुंड और जब खुले में आते तो दूर समुद्र की लहरों के स्वर, एकदम शांत वातावरण, सड़क पर दूसरे वाहन दिख जाते जो सवारियों को ला या ले जा रहे थे। साइकिल पर स्कूल जाते लड़के लड़कियां और पुरानी शैली के मकान जिनके आंगन में फुलवारी और करीने से लगे पेड़-पौधे। साफ -सफाई अच्छी, गंदगी नहीं, जगह जगह लगे नल से पीने का पानी भरकर ले जाते निवासी। यहां की प्रमुख समस्या है कि घरों में जो पानी आता है, खारा है और उसे पीना मुश्किल है, शेष घरेलू कामों में उसका इस्तेमाल होता है। पेयजल की आपूर्ति टैंकरों द्वारा कोच्चि से की जाती है। बिजली के लिए जनरेटर है और तय वक्त पर घरों में रौशनी की ज़रूरत पूरी होती है।
लगभग बत्तीस किलोमीटर में फैले इस द्वीप को पूरा घूमने के लिए कुछ घंटे ही काफी हैं। लगभग 73000 की जनसंख्या थोड़े से हिस्से में सिमट जाती है। नारियल के पेड़ों की लंबी कतारें दिखाई देंगी, उसी की खेती ज़्यादातर होती है, बाकी साग सब्जी उगा ली या मोटा अनाज पैदा कर लिया। अपनी ज़रूरत का मिल गया और जो बचा, उसे बेचकर घर की दूसरी चीजें खरीद लीं। सभी घरों में फर्नीचर, रेडियो टीवी है और किसी चीज की ज़रूरत हुई तो नाव वाले से कहकर कोच्चि से मंगा लीं। पढ़ाई के मामले में साक्षरता लगभग सौ प्रतिशत है, लड़कियों की पढ़ाई लिखाई में कोई रुकावट नहीं और वे कहीं भी आ जा सकती हैं, छेड़खानी या महिला उत्पीड़न की घटनाओं से यह प्रदेश अछूता है। शादी ब्याह यहीं तय हो जाते हैं, कोई बाहर जाकर बसना चाहे तो कोई रोक-टोक नहीं। बहुत से लोग विदेशों में बस गए हैं और कुछ ने तो राष्ट्रीय सम्मान भी अर्जित किए हैं। मलयालम भाषा है, लेकिन हिन्दी सभी समझते हैं। जब तक हम रहे, लगभग हर रोज ही कोई न कोई अपने घर भोजन का निमंत्रण देता, ऐसे भी जिनका हमसे या उनका हम से कोई काम नहीं था। अतिथियों का स्वागत करना यहां रहने वालों की आदत जैसी है, चाहे कोई भी हो। अपनी व्यस्तता के चलते हम लोग ही उनकी दावत स्वीकार न कर पाये पर उनकी ओर से कोई कमी नहीं थी। जिनके घर जा पाये उनसे मिलकर लगा कि पुराना परिचय है, बस मिलें अब हैं।
बातों का सिलसिला शुरू हो जाता और कोई बुजुर्ग यहां का इतिहास सुनाने लगते। भारतीय राजशाही चेरा के बारे में सुना तो टीपू सुल्तान के बारे में भी, इसके साथ ही पुर्तगाली यहाँ आकर बसे तो उन्हें हराकर अंग्रेज यहाँ अपनी हुकूमत करने लगे। मार्को पोलो और फिर वास्को डीगामा यहां आये। पहले यहां हिंदू थे लेकिन बाद में सभी ने इस्लाम स्वीकार कर लिया। आज यहां पूरी आबादी मुस्लिमों की है और अन्य धर्मों के जो लोग हैं, वे यहाँ नौकरी के कारण रहते हैं या फिर कोई व्यवसाय करते हैं।
समुद्र के नज़ारे
अब समुद्र की ओर चलते हैं। सागर क्या है, अथाह नीले जल का अद्भुत संसार है। बीच पर सफेद रेत जिस पर चलने का अपना ही आनंद। कोई कचरा या गंदगी नहीं, जो भी यहां आता है, उसकी यहां कुछ भी कूड़ा-करकट फैंकने की हिम्मत नहीं होती, जुर्माना लग सकता है। साफ जगह को गंदा करने की वैसे भी कोई जुर्रत नहीं करता। समुद्र का पानी शांत लेकिन दूर से आती लहरें पास आकर भिगो भी सकती हैं, पर उनकी गति या समुद्री शोर इतना नहीं होता जितना कि मुम्बई या चेन्नई के बीच पर देखने को मिलता है। पानी में आगे बढ़ते ही प्रकृति का अविस्मरणीय दृश्य सामने आ जाता है। कोरल ऐसे दिखते हैं कि मानो हाथ बढ़ाकर उन्हें छू सकें, लेकिन गहराई में जाना खतरनाक भी हो सकता है। इसलिए यहां मौजूद गोताखोर अंदर तक ले जाते हैं और आपको वह दुनिया दिखाई देने लगती है जो हमेशा के लिए मन में बस जाती है। रंग-बिरंगी, सुनहरी सफेद, झूमती शर्माती आकृतिया और अगर हाथ या पैर का स्पर्श हो जाये तो पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ जाये। आसपास घूमते छोटी बड़ी मछलियों के झुंड, पास आकर क्षण भर में दूर और न जाने कितने रंगों के जीव गुजर जाते, जैसे हमसे खेल रहे हों। यह सब देखकर आश्चर्यचकित हुए जा रहे थे। कुछ देर बाद गोताखोर किनारे पर ले आया और रेत पर चलते हुए कॉटेज पहुंचे। शाम होते होते पूरा इलाका खाली होने लगता। आम तौर से रात भर रुकने का प्रबंध यहां अभी नहीं है। समुद्र के पास के जंगल हों या दूर दिखाई देते अन्य द्वीपों के दृश्य शाम होते ही विचित्र आकृतियों में बदलते दिखाई देते। लम्बी छायाएं देखकर रोमांच भी होता और कुछ डर भी लेकिन धीमे धीमे बहती वायु और पत्तों की सरसराहट आनंदित भी करती। दिन भर समुद्र की अठखेलियां देखिए और उसके अंदर छिपे रत्नों को निहारिये और घोर अंधेरा होने से पहले बस्ती में लौट जाइए, इतना संजोकर ले जाना बहुत है।
वास्तविकता के दर्शन
अब हम इस बात पर आते है कि क्योंकि यह पूरा क्षेत्र बहुत ही कोमल और कमज़ोर है, थोड़ा भी झटका लगे तो सैंकड़ों वर्षों में बना प्राकृतिक सौंदर्य जरा सी लापरवाही से बर्बाद हो सकता है जिसे दोबारा बना सकना संभव नहीं है। अभी यहां बड़े होटल, रिसोर्ट या आमोद प्रमोद और मनोरंजन के साधन नहीं हैं। अभी तो रेस्ट्रिक्शन इतनी है कि कोई भी निर्माण कार्य करने से पहले बहुत लम्बी प्रक्रिया से गुजरना होता है।
लक्षद्वीप को विशाल पर्यटक स्थल बनाए जाने से किसी को कोई एतराज नहीं हो सकता लेकिन यदि यह काम पर्यावरण और इको सिस्टम की सेंसिटिविटी पर ध्यान दिये बिना किया गया तो इसके दुष्परिणाम निकलने तय हैं।