यात्रा का दूसरा पड़ाव 

वर्ष 2022 के सितम्बर मास में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू की थी, जो वर्ष 2023 के जनवरी मास में सम्पन्न हुई थी। इस यात्रा में उन्होंने कन्याकुमारी से कश्मीर तक चार हज़ार किलोमीटर का स़फर बड़ी सीमा तक पैदल ही तय किया था। यह यात्रा बड़े ही योजनाबद्ध ढंग से की गई थी। इसमें वह भिन्न-भिन्न वर्गों तथा प्रत्येक स्तर के अनेक लोगों से मिले थे। इसका अन्य कई पक्षों से प्रभाव तो महसूस किया गया था, परन्तु राजनीतिक स्तर पर इसका कांग्रेस को कोई बड़ा लाभ प्राप्त नहीं हुआ था, क्योंकि उसके बाद कुछ राज्यों के हुए चुनावों में एक राज्य के अतिरिक्त कांग्रेस को निराशा ही मिली थी। अब जबकि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं, उस समय कांग्रेस के रूह-ए-रवां बने राहुल गांधी की दो महीने की इस यात्रा का क्या उद्देश्य हो सकता है, इस बारे में ठोस रूप में उभर कर कुछ भी सामने नहीं आया है। इस दूसरी यात्रा के दिन तो कम हैं, परन्तु इसका स़फर लम्बा है। पहली यात्रा 4080 किलोमीटर की थी और अब यह 6713 किलोमीटर की होगी, परन्तु इसमें अधिक सफर बस के माध्यम से ही किया जाएगा और इसकी समाप्ति मुम्बई में 20 मार्च को होगी। 
पहली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ अब ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के नाम पर शुरू की गई है। कांग्रेस के अनुसार यह यात्रा चाहे राजनीतिक पार्टी द्वारा शुरू की गई है, परन्तु इसका मुख्य उद्देश्य सैद्धांतिक होगा, चुनावी नहीं। पूर्व से पश्चिम की ओर की जाने वाली इस यात्रा में उन मुद्दों को उभारा जाएगा, जिनके आधार पर गत 10 वर्षों से विपक्षी पार्टियों द्वारा केन्द्र सरकार की आलोचना की जाती रही है। इसके अतिरिक्त  विपक्षी पार्टियां स्वतंत्रता, समानता, न्याय तथा भाईचारक सांझ की बात करती रही हैं। इन विषयों पर वे अक्सर केन्द्र सरकार को निशाना बनाती रही हैं। उनका यह प्रचार रहा है कि मोदी सरकार धर्म के नाम पर समाज में दरारें डालने का यत्न कर रही है। उनके अनुसार ऐसे यत्नों से चाहे भाजपा को राजनीतिक लाभ मिला है परन्तु इस क्रिया ने देश में भाईचारक सांझ को बड़ी ठेस पहुंचाई है। समुदायों के नाम पर पड़ी दरारें और भी गहरी हुई हैं। समाज के अलग-अलग वर्गों में आपसी ऩफरत की भावनाएं बढ़ी हैं। बाबरी मस्जिद को गिराने के बाद और राम मंदिर के निर्माण तक देश में जिस प्रकार का माहौल बनाया गया है, वह बड़ी संख्या में देश भर के श्रद्धालुओं को धार्मिक तौर पर ज़रूर आकर्षित करता है लेकिन इससे संविधान की धर्म-निरपेक्ष भावना पर बड़ा संकट भी आया है। चाहे विगत समय में देश ने तेज़ी के साथ हर पक्ष से तरक्की ज़रूर की है लेकिन इसके साथ ही बढ़ती हुई बेरोज़गारी ने बड़ी चिंता भी पैदा की है। 
इस संदर्भ में राहुल गांधी की यह यात्रा यदि देशवासियों में समरसता की चेतना पैदा करने में सहायक होती है तो इसको राहुल गांधी और कांग्रेस की एक अच्छी उपलब्धि ज़रूर माना जा सकेगा। इस समय जब अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा, 22 जनवरी को राम मन्दिर का उद्घाटन किये जाने की चर्चा पूरे ज़ोरों पर है, उस समय राहुल गांधी की यह यात्रा कितनी भावपूर्ण साबित हो सकेगी, इसका लेखा-जोखा तो आने वाले समय में ही किया जा सकेगा।
    —बरजिन्दर सिंह हमदर्द